Monday 23 March 2015

पढ़ते वक्त गुस्सा और आंसुओ को थामे रखियेगा 

चरखे से निकलीं कुछ रस्सियों ने तेरी मौत लिख दी "बेख़ौफ"..
तेरी चिता की आँच से वतन के गद्दारों का चूल्हा जलता रहा..... 
दोस्तों ब्रिटिश अंपायर में ऐसा नियम था की अगर वो किसी को फाँसी देंगे तो कम से कम 5 लोग गवाह के रूप में चाहिए होते थे।
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तो उसमे जब गवाही दी गयी तो उसमे 3 भारतीय थे और 2 अंग्रेज। वो जो 3 भारतीय थे जब मैं उनका नाम आपको बताऊंगा तो आपके पैरो के नीचे से जमीन खिसक जायेगी।
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वो पहले थे- किन्ही कारणों से नाम हटाया गया है
दूसरे थे- Mr Sar shobha singh जिनके बेटे सुखवंत सिंह पदम् विभूषण पाये और कांग्रेस की और से राज्य सभा सदस्य रहे। ...
भगत सिंह से की गयी गद्दारी से मिले पैसों और जमीन से खुशवंत सिंह की परवरिश हुई थी... खुशवंत सिंह ने आत्मनिर्भर होने पर (लेखक पत्रकार बनके कमाई करने पर) अपने पिता की जायदाद से (जो गद्दारी के कारण ही बनी थी) खुद को अलग नहीं किया था.
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......खुशवंत सिंह अथवा उनके पिता ने देश से सार्वजनिक माफी भी नहीं माँगी थी.?
......... सोभा singh को गद्दारी के बदले दिल्ली की लूटीयन जोन , विक्टोरिया भवन सहित आधी दिल्ली के सरकारी इमारतो को बनाने का ठेका मिला था
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तीसरे थे- Mr Sarsadi Lal जिनकी मवाना शुगर आज भी पुरे हिंदुस्तान में चीनी सप्लाई कर रही है। मगर शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
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आज ये सोचना है कि इन 3 लोगो ने या इनके पूर्वजो ने जो गवाहियां दी उसके बाद इन लोगो को प्रधानमंत्री, पदम् विभूषण और इतनी-2 बड़ी फर्मो के मालिक बना दिया गया।
लेकिन जिन्होंने सच्चा बलिदान दिया उनके लिए कब सोचेंगे।
..ख़ास बात तीनो ही पंजा गोत्र द्वारा पाले गये ......

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