Friday 13 March 2015

धर्म-परिवर्तनकी समस्या अर्थात् हिंदुस्थान एवं हिंदु धर्मपर अनेक सदियोंसे परधर्मियोंद्वारा होनेवाला धार्मिक आक्रमण ! इतिहासमें अरबीयोंसे लेकर अंग्रेजोंतक अनेक विदेशियोंने हिंदुस्थानपर आक्रमण किए । साम्राज्य विस्तारके साथ ही स्वधर्मका प्रसार, यही इन सभी आक्रमणोंका सारांश था । आज भी इन विदेशियोंके वंशज यही ध्येय सामने रखकर हिंदुस्तानमें नियोजनबद्धरूपसे कार्यरत हैं । यह पढकर धर्म-परिवर्तनकी समस्याके विषयमें हिंदु समाज जाग्रत हो तथा धर्म-परिवर्तनके विदेशी आक्रमणका विरोध कर सके, यही ईश्वरचरणोंमें प्रार्थना !
ईसाई धर्मकी स्थापनाके पश्चात् प्रथम शताब्दीमें (वर्ष ५२ में) सेंट थॉमस नामक ईसाई धर्मोपदेशक हिंदुस्थानके केरल प्रांतमें आया और उसने वहां ईसाई धर्मका प्रचार आरंभ किया ।

इस्लामी सत्ताका काल

इस कालमें हिंदुओंका सर्वाधिक धर्म-परिवर्तन हुआ । उस कालमें कश्मीर, पंजाब, उत्तरप्रदेश और
दिल्ली राज्यों सहित हिंदुस्थानमें सम्मिलित और आगे स्वतंत्र देश बने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, 
कंबोडिया और ब्रह्मदेशके हिंदु धर्म-परिवर्तनसे सर्वाधिक प्रभावित हुए । इस कालमें धर्म- परिवर्तन 
के कार्यको आगे बढानेवालोंके नाम और उनके दुष्कृत्य आगे दिए हैं ।

२ अ. मुहम्मद कासिम

‘इतिहासकार यू.टी. ठाकुरने वर्ष ७१२ में हिंदुस्थानपर आक्रमण करनेवाले इस प्रथम इस्लामी 
आक्रमणकारीका कार्यकाल ‘सिंधके इतिहासका अंधकारपूर्ण कालखंड’, ऐसा वर्णन किया है । 
इस कालखंडमें सिंधमें बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन, देवालयोंका विध्वंस, गोहत्या एवं हिंदुओंका 
वंशविच्छेद अपनी चरम सीमापर था । सर्व प्राचीन और आधुनिक इतिहासकारोंने स्पष्टरूपसे 
कहा है, ‘सिंधके हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन बलपूर्वक ही किया गया था ।’

२ आ. औरंगजेब

इसने दिल्ली हस्तगत करते ही हिंदुओंको मुसलमान बनाकर उन्हें इस्लामकी दीक्षा देनेकी शासकीय
 नीति बनाई और तदनुसार उसने लाखों हिंदुओंका धर्मांतरण किया । उसने छत्रपति शिवाजी महाराजके
 सेनापति नेताजी पालकर, जानोजीराजे पालकर आदि सरदारोंको भी धर्मांतरित किया । छत्रपति संभाजी 
महाराजका इस्लामीकरण करनेका भी उसने अंततक प्रयत्न किया; किंतु संभाजी महाराजके प्रखर 
धर्माभिमानके कारण वह निष्फल हुआ । स्वातंत्र्यवीर सावरकर लिखते हैं, ‘औरंगजेबने हिंदुओंको 
हर संभव उपाय अपनाकर धर्मांतरित करनेका प्रयत्न किया ।’

२ इ. टीपू सुलतान

‘दक्षिणके इस सुलतानने सत्ता हाथमें लेते ही भरी सभामें प्रतिज्ञा की, ‘सब काफिरोंको (हिंदुओंको) मुसलमान
 बनाऊंगा’ । उसने प्रत्येक गांवके मुसलमानोंको लिखितरूपसे सूचित किया, ‘सभी हिंदु स्त्री-पुरुषोंको इस्लामकी 
दीक्षा दो । स्वेच्छासे धर्मांतरण न करनेवाले हिंदुओंको बलात्कारसे मुसलमान बनाओ अथवा हिंदु पुरुषोंका
 वध करो और उनकी स्त्रियोंको मुसलमानोंमें बांट दो ।’ आगे टीपूने मलबार क्षेत्रमें एक लाख हिंदुओंको
 धर्मांतरित किया । उसने हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन करनेके लिए कुछ कट्टर मुसलमानोंकी विशेष टोली 
बनाई । इस्लामका आक्रामक प्रचार करनेके कारण उसे ‘सुलतान’, ‘गाजी’, ‘इस्लामका कर्मवीर’ इत्यादि 
उपाधियां देश-विदेशके मुसलमान और तुर्किस्थानके खलीफाद्वारा दी गई ।’ – जयेश मेस्त्री, मालाड, मुंबई.

२ ई. सूफी फकीर

‘इन हिंदु साधुओंके समान आचरण करनेवाले कुछ कथित मुसलमान संतोंने हिंदुओंका बडी संख्यामें
धर्म-परिवर्तन कराया । ‘हिस्टरी ऑफ सूफीज्म इन इंडिया’ (अर्थात् भारतमें सूफीवादका इतिहास) 
नामक पुस्तकके दो खंडोंमें इसकी जानकारी दी है ।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

२ उ. हैदराबादका निजाम

‘इसके अत्याचारी शासनकालमें सैनिकी अधिकारियोंने सहदााों हिंदुओंका लिंगाग्रचर्मपरिच्छेदन (सुन्नत) 
किया । धर्मांतरण को नकारनेवाले असंख्य हिंदुओंकी हत्या की गई । ‘अत्याचार कर मुसलमान बनाना’,
यह वाक्प्रचार यहांके हिंदुओंने प्रत्यक्ष अनुभव किया ।’
 – पत्रिका ‘हिंदूंनो, वाचा आणि थंड बसा’ (अर्थात् ‘हिंदुओ, पढो और शांत बैठो’) (९.८.२००४)

 पुर्तगालियोंका शासनकाल

३ अ. हिंदुस्थानमें वास्को-डी-गामाके तुरंत पश्चात् ईसाई

मिशनरियोंका आना और यातना, बल एवं कपटद्वारा हिंदुओंको ईसाई बनाना

‘१४९८ में वास्को-डी-गामाके नेतृत्वमें पुर्तगालियोंने हिंदुस्थानकी धरती पर पैर रखा एवं ईसाइयोंके
साम्राज्यवादी धर्ममतकी राजकीय यात्रा आरंभ हुई । वास्को-डी-गामाके तुरंत पश्चात् ईसाई धर्मका प्रचार
 करनेवाले मिशनरी आए । तत्पश्चात् ‘व्यापारिक दृष्टिकोणसे राज्यविस्तार’ इस सिद्धांतकी अपेक्षा ‘ईसाई
धर्मका प्रचार’, यही पुर्तगालियोंका प्रमुख ध्येय बन गया । इससे धर्म-परिवर्तनकी प्रक्रिया आरंभ हुई ।
 ईसाई मिशनरी रात्रिके समय घरके पिछवाडे स्थित कुंएमें पाव (डबलरोटी) डाल देते और प्रातःकाल 
लोगोंके पानी पीते ही कहते, ‘तुम ईसाई बन गए ।’ घबराए हुए हिंदु समझ बैठते कि वे फंस गए और ईसाई
 धर्मके अनुसार आचरण करने लगते । १५४२ में पुर्तगालके किंग जॉन द्वितीयने हिंदुओंके ईसाईकरण
 हेतु सेंट जेवियर नामक मिशनरीको भेजा । उसके आगमनके पश्चात् गोवामें हिंदु धर्मांतरण करें, इसके लिए
 उनपर ईसाई मिशनरियोंने अनन्वित अत्याचार किए

३ आ. सेंट जेवियरकी धर्म-परिवर्तनकी पद्धति !

सेंट जेवियर स्वयं अपनी धर्म-परिवर्तनकी पद्धतिके संदर्भमें कहता है, ‘एक माहमें मैंने त्रावणकोर राज्यमें 
१० सहदाासे अधिक पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चोंको धर्मांतरित कर उनके पुर्तगाली नाम रखे । बप्तिस्मा देनेके
 (ईसाई होनेके समय प्रथम जल व दीक्षा-स्नान, नामकरणसंस्कारके) पश्चात् मैंने इन नव-ईसाइयोंको
 अपने पूजाघर नष्ट करनेका आदेश दिया । इस प्रकार मैंने एक गांवसे दूसरे गांवमें जाते हुए लोगोंको ईसाई 
बनाया ।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर

३ इ. पुर्तगालियोंद्वारा हिंदुओंके धर्मांतरण हेतु किए अत्याचारोंके प्रतिनिधिक उदाहरण

‘१५६० में पोपके आदेशपर ईसाई साम्राज्य बढानेके उद्देश्यसे पुर्तगालियोंकी सेना गोवा पहुंची । उसने 
धर्मांतरण न करनेवाले हिंदुओंपर भयंकर अत्याचार करते हुए सहदााों हिंदुओंको मार डाला । धर्मांतरण
 न करनेवाले इन हिंदुओंको एक पंक्तिमें खडा कर उनके दांत हथौडीसे तोडना, हिंदुओंपर हुए अत्याचारोंका एक प्रातिनिधिक उदाहरण है ।’ – साप्ताहिक ‘संस्कृति जागृति’ (४ से ११ जुलाई २००४)

३ ई. छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा बार्देश (गोवा) क्षेत्रमें ईसाईकरण का षड्यंत्र नष्ट करना

आदिलशाहसे गोवाका बार्देश प्रांत छीन लेनेके पश्चात् पुर्तगालियोंने वहांके हिंदुओंका बलपूर्वक धर्मांतरण किया ।
 धर्मांतरणको अस्वीकार करनेवाले ३ सहदाा हिंदुओंको ‘आजसे दो माहके भीतर धर्म-परिवर्तन करो,
 अन्यथा कहीं और चले जाओ’, ऐसा आदेश पुर्तगालियोंके गोवा स्थित वाइसरायने दिया । यह समाचार
 प्राप्त होते ही छत्रपति शिवाजी महाराजने वाइसरायके आदेशानुसार कार्यवाही होनेमें दो दिन शेष रहनेपर
 २० नवंबर १६६७ को बार्देश प्रांतपर आक्रमण किया और इस आदेशका उत्तर अपनी तलवारसे दिया ।

३ उ. हिंदुओंको छल-कपटसे ईसाई बनानेवाले पुर्तगाली पादरियोंको छत्रपति संभाजी महाराजकी फटकार !

‘छत्रपति संभाजी महाराजने गोवामें पुर्तगालियोंसे किया युद्ध राजनीतिकके साथ ही धार्मिक भी था । 
हिंदुओंका धर्मांतरण करना तथा धर्मांतरित न होनेवालोंको जीवित जलानेकी शृंखला चलानेवाले पुर्तगाली 
पादरियोंके ऊपरी वस्त्र उतारकर तथा दोनों हाथ पीछे बांधकर संभाजी महाराजने गांवमें उनका जुलूस
 निकाला ।’
 – प्रा. श.श्री. पुराणिक (ग्रंथ : ‘मराठ्यांचे स्वातंत्र्यसमर (अर्थात् मराठोंका स्वतंत्रतासंग्राम’ डपूर्वार्ध़)

४. अंग्रेजोंका शासनकाल

४ अ. हिंदुस्थानमें हिंदुओंका ईसाईकरण

करनेकी अंग्रेजोंकी योजनाका जनक चार्ल्स ग्रांट !

‘१७५७ में ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’का बंगालमें राज्य स्थापित हुआ । तत्पश्चात् १८ वीं शताब्दीके अंतमें चार्ल्स
 ग्रांट नामक अंग्रेजने ‘हिंदुस्थानमें ईसाई धर्मका प्रचार किस प्रकार किया जा सकता है’, इस विषयमें 
आलेख ब्रिटिश संसदमें विलियम विल्बरफोर्स, कुछ अन्य सांसद और कैन्टरबरीके आर्चबिशपके पास भेजा । 
चार्ल्स ग्रांटके इस प्रस्तावपर ब्रिटिश संसदमें निरंतर आठ दिन चर्चा होनेके उपरांत ईसाई मिशनरियोंको
 धर्मप्रसारकी अनुमति दी गई ।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
४ आ. ‘१८५७ के पूर्व हिंदुस्थानमें ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’के शासनकालमें मिशनरियोंद्वारा बलपूर्वक हिंदुओंका 
धर्मांतरण किया गया ।’ – शंकर द. गोखले, अध्यक्ष, स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य अभ्यास मंडल, मुंबई.

४ इ. १८५७ के स्वतंत्रता संग्रामके पश्चात् ईसाई मिशनरी

और ब्रिटिश साम्राज्यमें हिंदुओंके धर्मांतरणके विषयमें हुआ एकमत !

‘१८५७ के स्वतंत्रता संग्रामके पश्चात् ईसाई मिशनरी और ब्रिटिश साम्राज्यका संबंध अधिक दृढ हुआ । वर्ष 
१८५९ में ‘भारतमें ईसाई धर्मका प्रचार हम जितना शीघ कर पाएंगे, हमारे साम्राज्यके लिए हितकर होगा’, ऐसा
 लॉर्ड पामरस्टनने वैâन्टरबरीके आर्चबिशपसे कहा था ।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
४ ई. धूर्त अंग्रेजोंने अपने शासनकालमें सत्ता, शिक्षा और सेवाके माध्यमोंसे धर्मप्रचार कर लोगोंको
 ईसाई बनानेका प्रयास किया ।’ – प.पू. स्वामी गोविंददेवगिरी महाराज (पूर्वके पू. किशोरजी व्यास)

४ उ. धर्म-परिवर्तन ही ब्रिटिश शिक्षाविद्

लॉर्ड मैकालेका हिंदुस्थानके विद्यालयोंके अंग्रेजीकरणका उद्देश्य !

‘अंग्रेजोंने हिंदुस्थानमें पैर जमानेके पश्चात् ‘हिंदुस्थानी लोगोंको किस भाषामें शिक्षा दी जाए’, इस संबंधमें
 विचार आरंभ किया । उस समय ब्रिटिश शिक्षाविद् लॉर्ड मैकालेने अपने कट्टर ईसाई धर्मवादी और 
धर्मप्रचारक पिताको पत्र लिखकर बताया, ‘अंग्रेजी भाषामें शिक्षा पानेवाला हिंदु कभी भी अपने धर्मसे एकनिष्ठ
 नहीं रहता । ऐसे अहिंदु आगे चलकर ‘हिंदु धर्म किस प्रकार निकृष्ट है तथा ईसाई धर्म किस प्रकार श्रेष्ठ है’,
 इसका दृढतापूर्वक प्रचार करते हैं एवं उनमेंसे कुछ लोग ईसाई धर्म अपनाते हैं ।’

४ ऊ. धर्म-परिवर्तन रोकनेके लिए छत्रपति

संभाजी महाराजद्वारा अंग्रेजोंसे की गई संधि (समझौता) !

‘वर्ष १६८४ में मराठा और अंग्रेजोंके मध्य संधि हुई । इस संधिमें छत्रपति संभाजी महाराजने अंग्रेजोंके सामने 
प्रतिबंध (शर्त) रखा, ‘मेरे राज्यमें दास (गुलाम) बनानेके लिए अथवा ईसाई धर्ममें धर्मांतरित करनेके लिए
 लोगोंको क्रय करनेकी अनुमति नहीं ।’ – डॉ. (श्रीमती) कमल गोखले (ग्रंथ : ‘शिवपुत्र संभाजी’)

५. स्वतंत्रता और स्वतंत्रताके पश्चात्का काल

५ अ. ‘मुस्लिम लीग’के ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिन योजना’के परिपत्रकमें हिंदुओंको बलपूर्वक धर्मांतरित करनेकी
आज्ञा होन ‘मुस्लिम लीग’ने १६.८.१९४६ को मुसलमानोंको, ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही योजना’के विषयमें जानकारी
 देनेवाला परिपत्रक प्रकाशित किया । उसमें मुसलमानोंको दी गई अनेक आज्ञाओंमेंसे एक आज्ञा थी, 
‘हिंदु स्त्रियों और लडकियोंपर बलात्कार करो तथा भगाकर उनका धर्म-परिवर्तन करो ।’

५ आ. नेहरूके कार्यकालमें ईसाईकृत धर्म-परिवर्तनको प्राप्त राज्याश्रय

५ आ १. स्वतंत्रता प्राप्तिके पश्चात् ईसाइयोंको धर्मप्रचारकी स्वतंत्रता देनेवाले नेहरू !
‘देश स्वतंत्र होनेके पश्चात् प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूने ईसाई मिशनरी संगठनोंको भारतीय संविधानके
 अनुच्छेद ‘२५ अ’ के अंतर्गत धर्मप्रचारकी स्वतंत्रता प्रदान की । फलस्वरूप स्वतंत्रतापूर्व भारतमें ईसाइयोंकी
 जो संख्या ०.७ प्रतिशत थी, वह आज लगभग ६ प्रतिशत हो गई है ।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
५ आ २. गेहूं बेचनेपर ईसाइयोेंके लिए धर्मप्रचार करनेकी अनुमति मांगनेवाली
 ईसाई अमरीका और उसे अनुमति देनेवाले नेहरू !
‘स्वतंत्रताके पश्चात् देशमें खाद्यान्नका भीषण अभाव हो गया । देशकी आर्थिक स्थिति ठीक न होनेके कारण
 रूसने, जहां वस्तुओंका आदान-प्रदान करना (Barter System), इस नीतिके अनुसार देशको गेहूंकी आपूर्ति
की । वहीं अमरीकाने गेहूं बेचनेके लिए कुछ बंधनकारी नियम बनाए । उनमें पहला प्रतिबंध (शर्त) था, ‘ईसाई 
मिशनरियोंको हिंदुस्थानमें धर्मप्रचारकी छूट दी जाए’ । इस नियमका अनेक लोगोंने विरोध किया । इसपर 
नेहरूने न्या. भवानीशंकर नियोगीकी अध्यक्षतामें एक समिति नियुक्त की । ‘समस्या केवल धर्मप्रचारकी नहीं,
 अपितु उसके द्वारा होनेवाले धर्म-परिवर्तनका भी सूत्र विचार करने योग्य है’, यह न्या. नियोगीके कहनेके 
पश्चात् भी गेहूं प्राप्त करनेके लिए अमरीकाका नियम स्वीकारकर संविधानकी ‘धारा ४८०’ में तदनुसार
 व्यवस्था की गई । तबसे ईसाई धर्मका प्रचार, अर्थात् ईसााईकृत धर्म-परिवर्तन मुक्तरूपसे चल रहा है ।’ 
– श्री. वसंत गद्रे
५ आ ३. ‘धर्मप्रचारके पीछे ईसाई चर्च और मिशनरी संगठनोंका राजनीतिक उद्देश्य है’, 
ऐसा सप्रमाण कहनेवाली शासनद्वारा नियुक्त समितिके प्रतिवेदनकी अनदेखी करनेवाले नेहरू !
‘ईसाई मिशनरी संगठनोंके कार्यकी जांच करनेके लिए १९५५ में तत्कालीन मध्यप्रदेश शासनने न्या. 
भवानीशंकर नियोगीकी अध्यक्षतामें समिति बनाई थी । उस समितिने अपने प्रतिवेदनमें अनेक उदाहरण 
और प्रमाणके साथ स्पष्टरूपसे उल्लेख किया था, ‘धर्मप्रचारके पीछे ईसाई चर्च एवं मिशनरी संगठनोंका 
राजनीतिक उद्देश्य है’ और अनुशंसा की थी, ‘उन्हें मिलनेवाली विदेशी धनकी सहायता बंद की जाए’ ।
 नेहरू शासनने उस प्रतिवेदनको कूडेदानमें फेंक दिया ।’

५ इ. इंदिरा गांधीके शासनकालमें अमरीकी ईसाज

संस्थाओंद्वारा धर्म- परिवर्तनके कार्यको गति प्रदान करना

स्वतंत्रताके पश्चात् इंदिरा गांधीने ४२ वें संविधान संशोधनके द्वारा संविधानमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ यह शब्द लाया । 
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतको शासकीय स्तरपर बढावा मिलनेके पश्चात् अनेक अमरीकी संस्थाओंने 
हिंदुस्थानमें ईसाई धर्मप्रचार एवं धर्म-परिवर्तन की गति बढाई ।

५ ई. वर्तमानमें सोनिया गांधीका राजनीतिके सर्वोेच्च

पदपर होनेके कारण धर्म-परिवर्तनको अत्यधिक गति प्राप्त होना

‘ईसाई सोनिया गांधी राजनीतिमें सर्वोच्च पदपर होनेके कारण ही हिंदुस्थानमें ईसाइयोंने हिंदुओंके
 धर्म-परिवर्तनको व्यापक आंदोलनके रूपमें आरंभ किया । इस कार्यमें देशके विविध राज्योंमें ४
सहदाासे अधिक ईसाई मिशनरी सक्रिय हैं ।’ – फ्रान्सुआ गोतीए, फ्रेंच पत्रकार
संदर्भ : हिंदू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’

१. हिंदुस्थानका ईसाईकरण

ईसाइयोंद्वारा धर्म-परिवर्तन करवानेका यह मूल उद्देश्य है । इसीलिए हिंदुस्थानमें ईसाई मिशनरी और 
चर्च कार्यरत हैं, इसका प्रमाण देनेवाले कुछ विचार आगे दे रहे हैं ।

१ अ. पोप जॉन पॉल द्वितीय

‘प्रथम सहदाब्दीमें यूरोपमें ईसाई पंथने पैर जमाए । द्वितीय सहदाााब्दीमें वह अमरीका एवं अफ्रीका खंडोंमें 
बढा । अब तृतीय सहदाााब्दीमें शेष विश्वमें और हिंदुस्थानमें ईसाई पंथ दृढ हो, ऐसी हम प्रार्थना करते हैं ।’
 – पोप जॉन पॉल द्वितीय (१९९९ में भारत-भ्रमणके समय व्हृाक्त किए गए विचार)

१ आ. मदर टेरेसा

‘(लोगोंका) धर्म-परिवर्तन करना, ईसाई मिशनरियोंकी कार्यप्रणालीका प्राण है । वह न हो, तो मिशनरी मृतवत् 
हो जाएंगे ।’ – मदर टेरेसा
ऐसे दृष्टिकोणसे भारतमें सेवाकार्य करनेवाली मदर टेरेसाको धर्मनिरपेक्ष सरकारने देशका सर्वोच्च पुरस्कार
‘भारतरत्न’ प्रदान किया, यह ध्यानमें रखें !

१ इ. फादर जॉन्सन

‘हम पाश्चात्योंपर विश्वको ईसाई बनानेका दबाव रहता है । ‘ईसाई धर्म न माननेवाले नरकमें जाएंगे’, हम 
यह मानते हैं । इस कारण ईसा मसीहका संदेश सर्वत्र पहुंचाते रहते हैं । ‘सर्व धर्म एकसमान हैं’, यह हिंदु 
समझते हैं । इसलिए, हिंदुस्थान धर्म-परिवर्तनके लिए उचित देश है ।’ – फादर जॉन्सन (१०)
भारतमें १० वर्षसे हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन करनेवाले अमरीकी फादर जॉन्सनने अज्ञानी भारतीयोंको
एकल देवताकी उपासना करनेके लिए प्रवृत्त करनेका कार्य किया; इसलिए केंद्रशासनने उनका स्वागत
 किया था, यह ध्यानमें रखिए !

२. हिंदुस्थानका इस्लामीकरण

‘दारुल इस्लाम’ (इस्लामी देशोंका जगत्) और ‘दारुल हरब’ (इस्लामेत्तर देशोंका जगत्) इस प्रकारसे 
मानवजातिका विभाजन इस्लामने किया है । ‘दारुल हरब’का संपूर्ण इस्लामीकरण अर्थात् ‘दारुल इस्लाम’
 होनेतक ‘जिहाद’, अर्थात् धर्मयुद्ध करनेकी शिक्षा इस्लामकी देन है ।’
‘धर्मांतरण भी इस्लामकी दृष्टिसे एक प्रकारका जिहाद है । ‘दारुल-हरब’ हिंदुस्थानको इस्लाममय करनेके
 लिए गत १ सहदाा ३०० वर्षसे तलवार, बंदूक, प्रेमका नाटक (लव जिहाद) आदि माध्यमोंसे हिंदुओंका 
धर्म-परिवर्तन जारी है ।’ साप्ताहिक ‘वङ्काधारी’ (१७.२.२०११)

३. बौद्धमय भारतका निर्माण

हिंदुस्थान बौद्ध राष्ट्र बने, इसके लिए चीन और जापानके धनसे भारतके पिछडे क्षेत्रोंमें ‘ड्रैगन पैलेस’ खडे
 किए जा रहे हैं । इस माध्यमसे हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन किया जा रहा है । विशेषरूपसे दिल्ली, उत्तरप्रदेश 
बिहार आदि राज्योंमें इस प्रकारके प्रयत्न किए जा रहे हैं । हिंदुओंकी कथित पिछडी जातियोंके मनमें कथित 
उच्चवर्णियोंके विषयमें द्वेष उत्पन्न कर उन्हें बौद्ध बनानेका प्रयत्न भी देशके नवबौद्धोंद्वारा किया जा रहा है ।
 प्रत्यक्षमें गौतम बुद्धको हिंदु धर्मने नौवां अवतार माना है ।
संदर्भ : हिंदू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’
हिंदु समाजको धर्म-परिवर्तन करनेका अहिंदुओंका सुनियोजित षड्यंत्र, उसके लिए उन्हें विदेशसे मिलनेवाली 
आर्थिक सहायता, धर्म-परिवर्तनकासामाजिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरपर होनेवाला 
परिणाम इत्यादिके विषयमें इस लेखमें विस्तृत जानकारी दी गई है ।

१. आर्थिक

‘हिंदुस्थानियोंके धर्म-परिवर्तन हेतु पूरे विश्वसे प्रतिवर्ष लगभग १ लाख करोड रुपए व्यय किए जाते हैं ।’ 
– श्री. के.बी. शुरेंद्रन, भारतीय विचार केंद्र.

१ अ. ईसाईकृत धर्म-परिवर्तनके लिए मिलनेवाली विदेशी आर्थिक सहायता !

१ अ १. ‘वर्ष २००८ में केंद्रीय गृह मंत्रालयके प्रतिवेदनके अनुसार पादरियों, धर्मप्रचारकों एवं अन्य धार्मिक 
कार्य हेतु २ करोड १० लाख डॉलरकी (भारतीय मुद्राके अनुसार लगभग ९० करोड रुपयोंकी) विदेशीr सहायता 
मिलती है ।’ – श्री. पी.सी. डोंगरा, सेवानिवृत्त अधिकारी, भारतीय पुलिस सेवा.
१ अ २. ‘मार्च २००९ में केंद्रीय गृह मंत्रालयके प्रतिवेदनके अनुसार हिंदुस्थानमें धर्मप्रचारके लिए कुछ ईसाई 
स्वयंसेवी संस्थाओंको लाखों डॉलरकी (करोडों रुपयोंकी) विदेशी सहायता मिल रही है ।’
१ अ ३. ‘वर्ष २०११ में केंद्रीय गृह मंत्रालयके प्रतिवेदनके अनुसार इस दशकमें विदेशी संगठनोंकी ओरसे २.५ 
अरब डॉलर (भारतीय मुद्रामें ११ सहस्र २५० करोड रुपए) की धनराशि ईसाई संगठनोंको मिली थी ।
१ अ ४. अमरीका, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली और नीदरलैंड, ये पांच प्रमुख देश धर्म-परिवर्तनके लिए हिंदुस्थानमें 
धनराशि भेजत

१ आ. इस्लाम-प्रायोजित धर्म-परिवर्तनके लिए मिलनेवाली विदेशी धनराशि !

१ आ १. दमाम (सऊदी अरब) की ‘इंडियन फ्रेटर्निटी फोरम’ नामक संस्था धर्म-परिवर्तनके कार्यके लिए धन 
एकत्र करती है ।’
१ आ २. अरब राष्ट्रोंसे हिंदुस्थानमें धर्म-परिवर्तनके लिए धन आनेके माध्यम
‘सऊदी अरबसे, ‘वेस्टर्न यूनियन मनी ट्रान्सफर’के माध्यमसे हवालाद्वारा (हवाला एक अवैध एवं अनौपचारिक
 धन-हस्तांतरणकी प्रणाली है । यह धन लेने-देने वाले दलालोंके एक बहुत बडे नेटवर्कके रूपमें काम करती है ।
 हवालाका पूरा काम इस नेटवर्कके ‘विश्वास’ एवं कार्यकुशलतापर आधारित होता है । हवालाका काम मुख्यतः
 मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका एवं दक्षिण एशियामें फैला हुआ है ।) धन आता है । हिंदुस्थानके कुछ आभूषण 
व्यापारियोंकी खाडीके देशोेंमें शाखाएं हैं । उनके द्वारा भी धनका स्थानांतरण किया जाता है । हज यात्रापर
जानेवाले मुसलमान यात्रियोंके माध्यमसे भी धनका लेन-देन किया जाता है; क्योंकि हजयात्रासे लौटनेवाले 
विमान यात्रियोंकी कडी जांच-पडताल नहीं की जाती ।’

२. राष्ट्रीय

२ अ. प्रतिवर्ष ८ लाख हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन होना

देशमें प्रतिवर्ष लगभग साढेतीन लाख हिंदुओंका इस्लामीकरण तथा साढेचार लाख हिंदुओंका ईसाईकरण
 किया जाता है, अर्थात् ८ लाख हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन हो रहा है । वर्ष १९४७ की जनगणनासे आजकी 
जनसंख्याकी तुलना की जाए, तो ईसाइयोंकी जनसंख्या ५ गुना और मुसलमानोंकी जनसंख्या ८ गुना बढी है ।
 देशमें हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन करनेके लिए लगभग १ लाख २० सहस्र इस्लामी और ३ लाख ईसाई 
धर्मप्रचारक प्रयास कर रहे हैं । – दैनिक ‘तरुण भारत’ (२०.११.१९९९)

२ आ. ईसाइयोंकी हिंदुओंके धर्मांतरण हेतु राष्ट्रव्यापी सिद्धता !

२ आ १. हिंदुस्थानमें धर्म-परिवर्तनका कार्य करनेवाले ईसाइयोंके धार्मिक दल !
‘१९९८ की ‘कैथोलिक डाइरेक्टरी’के अनुसार हिंदुस्थानमें १ लाख १९ सहस्र २५० मिशनरी, १५ सहस्र १०१ ईसाई
शिक्षण संस्थाएं एवं उसमें शिक्षा लेनेवाले ४७ लाख विद्यार्थी हैं । ईसाई इतने धर्मांतरण-कार्य हिंदुस्थानमें कर
 रहे हैं ।’
२ आ २. ‘हिंदुस्थानके ७५ सहस्र ‘पिन कोड’के स्थानोंपर ईसाइयोंने अपना ध्यान केंद्रित किया है ।’ 
– फादर जॉन्सन, अमरीका
२ आ ३. हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन करनेके लिए हिंदुस्थानमें कार्यरत विविध चर्च एवं संगठन !
२ आ ३ अ. ऐडवेंटिस्ट चर्च
‘कनाडाके धर्मप्रसारक रॉन वैट १९९७ में हिंदुस्थान आए । उस समय ‘ऐडवेंटिस्ट चर्च’के २ लाख २५ सहस्र 
सदस्य थे । ५ वर्षोंमें यह संख्या ७ लाख हो गई । यह चर्च १० अथवा २५ गावोंका एक समूह बनाकर
 पास्टरके मार्गदर्शनमें धर्म-परिवर्तनका कार्य नियोजनबद्ध पद्धतिसे करता है । तत्पश्चात् स्थानीय कार्यकर्ता 
यह कार्य आगे बढाते हैं । वर्ष १९९८ में १० गावोंके १० समूहोंके माध्यमसे ९ सहस्र ३३७ हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन हुआ । वर्ष १९९९ में ४० समूहोंके माध्यमसे ४० सहस्र हिंदुओंने बप्तिस्मा लिया ।
२ आ ३ आ. मरांथा वालिंटर्स
इस अमरीकी संगठनने हिंदुस्थानमें २०११ और २०१२, इन दो वर्षोंमें ७५० चर्च-निर्माणका लक्ष्य रखा है ।
२ आ ३ इ. किजार्ली : ‘ओरेगॉन’के इस संगठनने प्रतिदिन १ की दरसे १ सहस्र चर्च-निर्माणका लक्ष्य रखा है ।’
 – फादर जॉन्सन, अमरीका
२ आ ३ ईअमरीकाकी ६७ ईसाई संस्थाएं : ‘लप्रसी मिशन’, ‘बाप्टिस्ट बाइबल फेलोशिप इंटरनैशनल’, 
‘दी बाइबल लीग’, ‘वल्र्ड विजन’, ‘ट्रान्स वल्र्ड रेडियो’ इत्यादि ६७ अमरीकी संस्थाएं हिंदुस्थानमें हिंदुओंको 
धर्मांतरित करनेका अबाधित कार्य कर रही हैं ।’ – मासिक ‘एकता’ (फरवरी २००५)

२ इ. हिंदुओंके इस्लामीकरणके लिए १९८६ से सक्रिय मुसलमानोंकी योजना !

१. ‘अशिक्षित, गंवार एवं निर्धन हिंदुओंको, विशेषतः पिछडे वर्गके हिंदुओंको प्रलोभन देकर इस्लाम धर्मीय 
बनाना
२. हिंदु स्त्रियोंसे विवाह करना एवं मुसलमानोंकी संख्या बढाना (इस षड्यंत्रद्वारा गत १५ वर्षोंमें लगभग ५ लाख 
स्त्रियोंका इस्लामीकरण किया गया । इस विषयमें विस्तृत विवेचन ‘हिंदु जनजागृति समिति’की ‘लव
जिहाद’ नामक पुस्तिकामें किया गया है । – संकलनकर्ता)
३. सर्व भाषाओंमें इस्लामी साहित्यका प्रचार करना (इसी षड्यंत्रके एक भागके रूपमें आजकल उनके
 धर्मग्रंथकी प्रतियां सर्व भारतीय भाषाओंमें सर्वत्र निःशुल्क वितरित की जा रही हैं । – संकलनकर्ता)
४. पुरानी मस्जिदोंका नवीनीकरण करना और नई मस्जिदों एवं मदरसोंका निर्माण करना
५. देशमें विभिन्न स्थानोंपर इस्लाम धर्मियोंके अर्ंतराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करना’
– मासिक ‘समन्वय’ (मार्च-अप्रैल १९८६)
इस नियोजित षड्यंत्रका आज हम हिंदु प्रत्यक्ष रूपसे अनुभव कर रहे हैं ।

३. ईसाई और इस्लाम प्रायोजित धर्म-परिवर्तनकी राज्यवार भीषणता !

३ अ. उत्तर हिंदुस्थानके हिंदी भाषिक राज्योंमें

हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन करनेके लिए जोशुआ प्रकल्प !

‘विश्वके सर्व समुदायोंमें चर्चकी घुसपैठ करवानेके लिए नियुक्त लोगों और संगठनोंकी सहायता करना,
 ‘जोशुआ परियोजना’का मुख्य कार्य है । जोशुआ परियोजनाने उत्तर हिंदुस्थानके हिंदी भाषी राज्योंपर अपना
 पूरा ध्यान केंद्रित किया है ।’ – फादर जॉन्सन, अमरीका

३ आ. पंजाबमें धर्म-परिवर्तनके कारण ईसाइयोंकी संख्यामें १ प्रतिशत तक बढना

‘सिख कट्टर पंथाभिमानी होनेके कारण लगभग १५० वर्ष ईसाई धर्मप्रचारक सिख पंथसे दूर थे; परंतु अब
 पंजाबमें ईसाई प्रचारक अत्यंत आक्रामकरूपसे धर्मप्रसार कर रहे हैं । परिणामस्वरूप स्वतंत्रता-प्राप्तिके 
समय जो ईसाई वहांकी जनसंख्यामें ०.१ प्रतिशतसे भी न्यून थे, अब १ प्रतिशत हो गए हैं ।’ 
स्व. मिलिन्द गाडगीळ, वरिष्ठ युद्ध-पत्रकार, मुंबई.

३ इ. धर्म-परिवर्तनके कारण स्वतंत्रता पूर्व २००

ईसाईयुक्त नागभूमि (नागालैंड) देशका सर्वाधिक बडा ईसाई राज्य होना

१९४७ में नागभूमिमें केवल २०० ईसाई थे । अब वही नागभूमि देशका सर्वाधिक बडा ईसाई राज्य बन गया
 है । वर्ष २००१ की जनगणनाके अनुसार वहां ९०.०२ प्रतिशत अर्थात् १७ लाख ९० सहस्र ३४९ नागरिक 
ईसाई हैं । उनमेंसे ७५ प्रतिशतसे अधिक ईसाई ‘बैप्टिस्ट चर्चसे संबंधित होनेके कारण विश्वमें बप्तिस्तोंके
 (दीक्षागुरुओंके) एकमात्र प्रमुख राज्यके रूपमें उसकी ख्याति है । नागभूमिमें अब केवल ७.७ प्रतिशत हिंदु 
शेष हैं ।

३ ई. नागभूमिके पश्चात् दूसरा बडा ईसाई राज्य बना मिजोरम !

ईसाई मिशनरियोंके आक्रामक धर्मप्रचारके कारण मिजोरममें ९० प्रतिशतसे अधिक समाज ईसाई हो गया है । 
‘प्रेसबाइटेरियन’ वहांके ईसाई समाजका प्रमुख पंथ है । अन्य ईसाई चर्चोंका भी राज्यमें प्रभाव है ।

३ उ. हिंदुस्थानमें तीसरा ईसाईबहुल राज्य मेघालय !

स्वतंत्रताके उपरांत मेघालय राज्य भी ईसाईकृत धर्म-परिवर्तनोंके कारण ईसाईबहुल बन गया । 
२००१ की जनगणनाके अनुसार वहांकी जनसंख्यामें ईसाइयोंकी मात्रा ७०.३ प्रतिशत हो गई है । वहां 
जनसंख्या अब केवल १३.३ प्रतिशत है । मेघालयकी सर्व शासकीय समाजकल्याण योजना ईसाई संगठनोंके माध्यमसे चलाई जाती हैं ।

३ ऊ. ईसाई पाठशालाओंके माध्यमसे मणिपुरका ईसाईकरणकी ओर हो रहा मार्गक्रमण !

मणिपुर राज्यमें ईसाईकरण करना सुलभ हो, इस हेतु मिशनरियोंने ‘लिटल फ्लॉवर स्कूल’, ‘डॉन बॉस्को
 हाईस्कूल’, ‘सेंट जोसेप्âस कॉन्वेंट स्कूल’, ‘निर्मला बास हाईस्कूल’ इत्यादि ईसाई पाठशालाएं बीसवीं 
आरंभ कीं । इसीका परिणाम है कि मणिपुरमें ३४ प्रतिशत लोग ईसाई बन गए हैं ।
मइताय जमातके अधिकांश लोगोंने धर्म-परिवर्तन किया है । मणिपुरी भाषाके साहित्यमें केवल बाइबल और
 ईसाइयोंसे संबंधित पुस्तके हैं ।

३ ए. उडीसाका कंधमल नामक वनवासी-बहुल जनपद (जिला) ईसाई-बहुल होनेके मार्गपर !

‘उडीसा राज्यका कंधमल जनपद वनवासी-बहुल है । वर्तमानमें ६ लाख ४७ सहस्र जनसंख्यावाले कंधमलमें
 ईसाइयोंकी संख्या १ लाख ५० सहस्रसे अधिक है । वर्ष १९७१ में ईसाइयोंकी जनसंख्या ६ प्रतिशत थी,
 जो अब २७ प्रतिशत हो गई है । कंधमलकी जनसंख्यामें ८० प्रतिशत ‘कंध’ जनजातिके और २० प्रतिशत ‘पाना’ जमातिके लोग हैं । कंध जनजाति सामाजिक और आर्थिक दृष्टिसे पिछडी हुई है; किंतु ‘पाना’ जमातिका बडी संख्यामें धर्मांतरण होनेके कारण,
 उनकी आर्थिक स्थिति उत्तम है । कंधमलमें धार्मिक वातावरण दूषित करनेमें ईसाई मिशनरियोंका ही हाथ है ।
वे यहांके धर्मांतरित वनवासियोंको आदेश देते हैं कि शेष वनवासी धर्मांतरण करें, इस हेतु उनपर बलप्रयोग 
। उसके अनुसार ये नव-ईसाई पूरी शक्तिसे शेष वनवासियोंपर आक्रमण करते हैं । धर्मांतरित ‘पाना’ जमाति 
कार्यके लिए माओवादियोंसे सहायता लेती है ।’

३ ऐ. गोवा राज्यमें ‘बिलिवर्स’ संगठनद्वारा सहस्रों हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन !

‘गोवा राज्यके चिंबल और मेरशीकी झोपडपट्टियोंमें ‘बिलिवर्स’ नामक संगठनद्वारा १ सहस्रसे अधिक 
हिंदुओंका धर्मांतरण किया गया है । नवीन धर्मांतरित हिंदुओंको प्रतिमाह १ सहस्र ३७५ रुपए दिए जाते हैं ।’

३ ओ. आंध्रप्रदेशमें कांग्रेसके भूतपूर्व मुख्यमंत्रीकी

सहायतासे प्रतिमाह न्यूनतम १० सहस्र हिंदुओंका धर्मांतरण करना

‘ऐडवेंटिस्ट चर्च’ने आंध्रप्रदेश में धर्मांतरणके लिए १० गांवोंका एक और २५ गांवोंका एक, ऐसे गुट बनाकर 
५० गुटोंका चरण पूर्ण करनेका लक्ष्य राज्यके स्वर्गीय मुख्यमंत्री वाई.एस्. राजशेखर
रेड्डीके सहयोगसे रखा था । वहां प्रत्येक माहमें न्यूनतम १० सहस्र हिंदुओंका धर्मांतरण किया जाता है । 
अब प्रतिदिन ५ सहस्र हिंदुओंके धर्मांतरणका लक्ष्य निर्धारित किया गया है । आंध्रप्रदेशमें दिन-प्रतिदिन 
चर्चकी संख्या बढ रही है । तिरुपतिके समीप ही चर्च बनानेके प्रयास हैं ।’ – फादर जॉन्सन, अमरीका

३ ओै. केरलमें हिंदु समाप्त होनेके मार्गपर !

‘केरलमें १९०१ में हिंदुओंकी जनसंख्या ६८.३६ प्रतिशत थी, जो २००१ में ५६.२० प्रतिशत हो गई, अर्थात् 
१२.१६ प्रतिशत घट गई । इसके विपरीत, १९०१ में मुसलमानोंकी जनसंख्या १७.२८ प्रतिशत थी, जो २००१ में
 २४.७० प्रतिशत हो गई, अर्थात् ७.४२ प्रतिशत बढी । वहां १९०१ में ईसाइयोंकी जनसंख्या १३.८२ प्रतिशत 
थी, जो २००१ में १९.१० हो गई, अर्थात् ५.२८ प्रतिशत बढ गई ।’ – ‘केरलाथाईल हिंदु समूह नेरीदुना
वेल्लूविलीकाल’ नामक संस्थाद्वारा किया गया सर्वेक्षण
 (गत १० वर्षमें यह परिस्थिति और भी भयानक हो गई है । – संकलनकर्ता)

३ अं. तमिलनाडुमें ईसाई संगठनोंद्वारा पैसेके बलपर ९७ सहस्र निर्धन हिंदुओंका धर्मांतरण !

‘तमिलनाडुमें ईसाई संगठन अमरीकासे आनेवाली धनराशिके बलपर हिंदुओंका धर्मांतरण कर रहे हैं ।
 तमिल भाषी लोग दरिद्र हैं । उनकी आर्थिक सहायताके लिए ईसाई संगठन आगे आते हैं और उनका
धर्मांतरण करते हैं । वर्ष २०१० तक ९७ सहस्र हिंदुओंको ईसाई बनाया गया ।’

३ क. अंडमान और निकोबार द्वीप समूहपर होनेवाला धर्म-परिवर्तन !

‘ईसाई मिशनरी केंद्रशासित प्रदेश अंडमान-निकोबार द्वीपपर दुर्गम क्षेत्रोंमें रहनेवाले लोगोंकी दरिद्रता,
 अज्ञानता एवं लाचारीका अनुचित लाभ उठाते हैं । वहांके सहस्रों आदिवासियोंका धर्मांतरण हो चुका है ।
 प्रत्येक द्वीपपर ८ से १० ईसाई नन समूहमें दिखाई देती हैं । वे श्वेत, नीले ऐसे विभिन्न रंगोंके पहनावेमें
 होती हैं । वर्तमानमें निकोबार द्वीप पूर्णतः ईसाई हो गया है ।’ – श्री. भास्कर नागरे, नई मुंबई.

४. अर्ंतराष्ट्रीय

४ अ. नेपालके धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बननेपर वहांके १० लाख हिंदुओंका ईसाइयोंद्वारा धर्मांतरण !

‘नेपालके धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बननेके पश्चात् वहांके कारागृहोंमें हिंदु बंदियोंके धर्म-परिवर्तनकी घटनाएं बढी हैं ।
नेपालमें जब राजतंत्र और ‘हिंदुराष्ट्र’का संविधान था, उस समय ईसाई धर्मका प्रचार करनेपर तथा हिंदुओंका
धर्म-परिवर्तन करनेवाले ईसाई धर्मप्रचारकोंपर कार्यवाही होती थी । अब
नेपालमें ईसाई धर्म पैâल रहा है । ‘नेपालकी २ करोड ८० लाख जनसंख्यामें १० लाख ईसाई हैं’, यह अनुमान 
बिशप एंथोनी शर्माने व्यक्त किया है ।’

४ आ. अमरीकाद्वारा आश्रय प्रदान किए नेपाली वंशके निर्वासित

हिंदुओं की असहाय परिस्थितिका लाभ उठाकर उनका धर्मांतरण करनेवाले ईसाई !

‘वर्ष २००९ में भूटानसे निकाले गए नेपाली वंशके ६० सहस्र हिंदुओंको अमरीकाने आश्रय दिया । इन हिंदुओंका
 अमरीकाके ईसाई मिशनरियोंद्वारा धर्मांतरण किया जा रहा है । इसके लिए ईसाई मिशनरी भांद्रा राय नामक
 नेपाली हिंदुका उपयोग कर रही हैं, जो अब ईसाई बन गया है । उसकी सहायतासे नेपाली भाषामें
ईसामसीहकी जानकारी देनेवाले कार्यक्रमोंका आयोजन किया जाता है ।’

४ इ. मलेशियामें कुल जनसंख्याके ७ प्रतिशत हिंदुओंका

धर्म-परिवर्तन करनेका षड्यंत्र रचनेवाला इस्लामी शासन और ईसाई मिशनरी !

४ इ १. मलेशियामें इस्लामी शासनद्वारा हिंदुओंपर अत्याचार होनेके कारण 
उनका धर्म-परिवर्तन तेजीसे होना
        ‘मानवाधिकारोंके लिए कार्यरत अमरीकाके हिंदु संगठनोंने मलेशियाके हिंदुओंपर हो रहे 
संबंधमें संयुक्त राष्ट्र संघको और अन्य अर्ंतराष्ट्रीय संगठनोंको आगे दिया प्रतिवेदन भेजा है –
१. मलेशियामें गत २५ वर्षोंमें १ लाख ३० सहस्र हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन हुआ ।
२. वहां हिंदुओंको दि्वतीय श्रेणीके नागरिकोंका जीवन जीनेके लिए विवश किया जाता है ।
३. वहां उन्हें छोटे-मोटे अपराधोंके लिए भी कठोर दंड दिया जाता है ।
४. मलेशियामें वहांके दंडविधान अनुसार इस्लाम धर्म अपनाए बिना मुसलमान युवतियोंसे हिंदु विवाह 
नहीं कर सकते । किंतु, मुसलमानोंको हिंदु युवतियोंसे विवाह करनेकी पूरी छूट होनेके कारण वहां ३३ 
सहस्र हिंदु युवतियोंका विवाहद्वारा इस्लामीकरण किया गया है ।’
४ इ २. ‘वर्ष २००८ में ईसाई मिशनरियोंने आगामी ५ वर्षोंमें मलेशियामें रहनेवाले हिंदुओंकी 
कुल जनसंख्याके ७८ प्रतिशत हिंदुओंके धर्मांतरणकी योजना बनाई ।’
संदर्भ : हिंदू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’

धर्म-परिवर्तनके दुष्परिणाम

        धर्म-परिवर्तनकी समस्या अर्थात् हिंदुस्थान एवं हिंदु धर्मपर अनेक सदियोंसे परधर्मियोंद्वारा होनेवाला धार्मिक आक्रमण ! इतिहासमें अरबीयोंसे लेकर अंग्रेजोंतक अनेक विदेशियोंने हिंदुस्थानपर आक्रमण किए । साम्राज्य विस्तारके साथ ही स्वधर्मका प्रसार, यही इन सभी आक्रमणोंका सारांश था । आज भी इन विदेशियोंके वंशज यही ध्येय सामने रखकर हिंदुस्तानमें नियोजनबद्धरूपसे कार्यरत हैं । प्रस्तूत लेखद्वारा हम ‘धर्म-परिवर्तन’ के दुष्परिणाम समझ लेंगे ।

१. सामाजिक दुष्परिणाम

१ अ. कंधमलमें (उडीसामें)
वनवासी जनजातियोंके धर्म-परिवर्तनका दुष्परिणाम

        ‘धर्मांतरितोंके रहन-सहनमें विलक्षण परिवर्तन दिखाई देनेके कारण कंधमलमें ईसाई  बनी
 जनजातियां और वहांके परंपरागत समाजमें दूरियां बढ गई हैं ।’ – दैनिक ‘राष्ट्रीय सहारा’ (६.७.२००९)

१ आ. बहुसंख्यक बने ईसाइयोंकी
धर्मांधताका सामाजिक जीवनपर दुष्परिणाम होना

        नागभूमिमें (नागालैंडमें) ईसाइयोंके धार्मिक दिवस रविवारके दिन अन्य कार्यक्रम प्रतिबंधित हैं । 
उस दिन बसें भी बंद रहती हैं । कृषक अपने खेतोंमें रविवारको काम नहीं कर सकते । यदि वे करें, तो 
उन्हें ५ सहस्र रुपए दंड भरना पडता है एवं २५ कोडे खाने पडते हैं ।

१ इ. ईसाई बहुसंख्यक मेघालयमें
केंद्रशासनके नियमोंमें ईसाई धर्मका संदर्भ जोडा जाना

        ‘मेघालय राज्यमें केंद्रशासनके नियमानुसार रविवारको छुट्टी रहती है । किंतु , इस विषयमें मेघालय
 शासनके ग्रामीण विकास विभागकी अप्पर सचिव श्रीमती एम्. मणीने एक लिखित उत्तरमें कहा, ‘हमारा 
राज्य ईसाई होनेके कारण रविवारको यहां सबकी छुट्टी रहती है ।’ मंगरूलनाथके मानवाधिकार
 कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त प्रशासकीय अधिकारी श्री. हरिश्चंद्र पवारको सूचनाके अधिकारके अंतर्गत पूछे
 गए प्रश्नपर यह उत्तर दिया गया ।’

२. सांस्कृतिक दुष्परिणाम

२ अ. मूल नाग-संस्कृतिको भुलाकर
नाग लोगोंका पश्चिमी मानसिकताके प्रभावमें आना

        ‘नागभूमिमें (नागालैंडमें) बाप्तिस्त मिशनरियोंने स्थानीय नाग लोगोंको ईसाई पंथकी दीक्षा
 देकर उनका नाग संस्कृतिसे संबंध तोडा । उनका लोकसंगीत, लोकनृत्य, लोककथा और धार्मिक परंपराओंका
, दूसरे शब्दोंमें उनकी संस्कृतिका विनाश भी इन मिशनरियोंने किया । उन्होंने नाग लोगोंको पूर्णतः 
पश्चिमी मानसिकताके रंगमें रंग दिया ।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर

२ आ. मिजोरममें परंपरागत वाद्योंको,
बहुसंख्यक बने ईसाइयोंद्वारा प्रतिबंधित करना

        मिजोरममें, मिजो राजाके ढोल जैसा परंपरागत वाद्य बजानेपर वहांके ईसाई संगठनोंने प्रतिबंध लगा 
दिया है । वहांके ईसाइयोंने धमकी दी है, ‘यदि राजाने यह परंपरा जारी रखी, तो इसके परिणाम गंभीर होंगे’ ।

२ इ. धर्मांतरित हिंदुओंद्वारा स्वदेश एवं स्वसंस्कृतिका तिरस्कार करना

        ‘धर्मांतरित हिंदु ‘हिंदुस्थान’को नहीं, अपितु ‘रोम’को पुण्यभूमि मान, हिंदुस्थानकी पवित्र नदियां, पर्वत
नागरिक, राष्ट्रभाषा, वेशभूषा और संस्कृतिका तिरस्कार करने लगे हैं ।’ – ईसाई स्वतंत्रता सेनानी राजकुमारी
 अमृत कौर

२ ई. इस्लामी आक्रमणकारियोंद्वारा
नगरोंके नाम भी परिवर्तित कर उनका सांस्कृतिक परिचय नष्ट करना

        धर्म-परिवर्तनके कारण सांस्कृतिक जीवनसे संबंधित संकल्पना भी परिवर्तित होती है, यह नियम
 व्यक्तियोंपर ही नहीं, नगरोंपर भी लागू होता है । इस्लामी आक्रमणकारियोंने ‘औरंगाबाद’, ‘हैदराबाद’, 
‘इलाहाबाद’, ‘फैजाबाद’ जैसे अनेक स्थानोंके हिंदुओंके साथ ही उन नगरोंके नामोंका भी इस्लामीकरण कर 
उनका सांस्कृतिक परिचय नष्ट कर दिया ।

२ उ. संस्कृति पूर्णतः नष्ट होना

२ उ १. आग्निपूजक पारसी लोगोंके मूल स्थान ईरानमें इस्लामी आक्रमणकारियोंने उनपर अत्याचार 
कर उन्हें धर्म-परिवर्तनके लिए बाध्य किया तथा जिन्होंने ऐसा नहीं किया, उन्हें वहांसे भगा दिया । उन 
पारसियोंको हिंदुस्थानने आश्रय दिया । आज ईरानमें पारसी संस्कृतिका एक भी चिह्न शेष नहीं है ।
२ उ २. ईसाईकृत धर्मांतरणके कारण ही रोम और ग्रीक संस्कृतियां नष्ट हुर्इं ।
२ उ ३. अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और रूसकी आदिवासी (मूल) संस्कृतियां नष्ट होना : ईसाई 
धर्मप्रचारकोंने अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और रूसके करोडों भोले-भाले आदिवासियोंका धर्म-परिवर्तन
 कर उनके चरित्र, जीवन-शैली, जीवन-मूल्य एवं उनकी संस्कृति और संस्थाओंका सर्वनाश कर दिया ।

३. राजनीतिक दुष्परिणाम

३ अ. लेबनान देशमें धर्म-परिवर्तनके कारण सत्ता परिर्वतन होना

        लेबनान एक छोटा-सा देश, जो एक समय ईसाई-बहुल था, आज मुसलमान-बहुल है । वहांके ईसाई
 पलायन कर अन्य ईसाई देशोंमें आश्रय ले रहे हैं । १९०० में लेबनानमें ७७ प्रतिशत ईसाई थे, २०११ में उनकी
 संख्या ३९ प्रतिशत हो गई । १९०० में वहां २१ प्रतिशत मुसलमान थे, अब वे ६० प्रतिशत हो गए हैं ।
 १९४३ में स्वतंत्रता मिलनेके पश्चात् बने सर्वदलीय मंत्रीमंडलके प्रमुख विभागोंमेंसे ६ विभाग ईसाइयोंको,
 जबकि ५ विभाग मुसलमानोंको मिले थे । राजकाजमें प्राप्त अधिकारोंका प्रयोग कर मुसलमानोंने लेबनानमें 
अपनी जनसंख्यामें वृाqद्ध की । २००९ में वहांके पारंपरिक ईसाई दलका शासन समाप्त हो गया तथा 
इस्लामी विचारधाराके ‘हिजबुल्लाह’ दलका शासन स्थापित हुआ । इस प्रकार लेबनानमें धर्म-परिवर्तनसे 
सत्ता-परिवर्तन हुआ ।

४. राष्ट्रीय दुष्परिणाम

४ अ. धर्मांतरितोंकी मानसिकता राष्ट्रविरोधी बनना

४ अ १. ‘अनेक व्यक्ति, जिनका धर्म-परिवर्तन हो चुका है, अब वे राष्ट्रविरोधी हो गए हैं ।’ – ईसाई स्वतंत्रता
 सेनानी, राजकुमारी अमृत कौर
४ अ २. ‘आज मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और मणिपुरका पर्वतीय भाग एवं अरुणाचल प्रदेशके कुछ भागोंमें 
धर्मांतरित जनजातियोंमें राष्ट्रविरोधी भावना तीव्र है ।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर

४ आ. धर्म-परिवर्तनसे राष्ट्र परिवर्तन

        स्वातंत्र्यवीर सावरकरने अनेक वर्ष जनजाग्रति करते समय चेतावनी दी, ‘धर्म-परिवर्तन राष्ट्र परिवर्तन है ।
’ उनकी यह चेतावनी कितनी अचूक थी, यह आगे दिए हुए सूत्रोंसे और स्पष्ट हो जाएगी ।
४ आ १. नागालैंड
४ आ १ अ. ईसाई धर्ममें धर्मांतरित विद्रोहियोेंके कारण नागालैंडका निर्माण होना
        ‘हिंदुस्थान स्वतंत्र होनेके पश्चात् तुरंत ही ‘अंगामी जापो फीजो’ नामक ईसाईके नेतृत्वमें नाग
 विद्रोहियोंने भारतके विरुद्ध सशस्त्र विद्रोहकी घोषणा कर दी । ‘नागालैंड फॉर क्राईस्ट’, यह उनकी धर्मांध
 युद्धघोषणा थी । इन नाग विद्रोहियोंको शस्त्रोंकी और अन्य प्रकारकी सहायताका दुष्कर्म माइकल 
स्कॉट नामक ईसाई मिशनरीने किया । बौप्टस्ट मिशनरियोंके दबावमें आकर धर्मनिरपेक्ष शासनने इन 
फुटीर पृथकतावादियोंकी सर्व मांगें मान लीं और नागालैंड राज्यका निर्माण हुआ ।’
– श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
४ आ १ आ. ‘नागालैंडमें ‘Nagaland belongs to Jesus Christ ! Bloody Indian dogs get lost !’ !’
 अर्थात् ‘नागालैंड ईसा मसीहकी भूमि है ।
मूर्ख भारतीय कुत्तों, यहांसे निकल जाओ !’ इस प्रकारकी घोषणाएं जगह-जगहपर लिखी हुई मिलती हैं ।’
४ आ १ इ. ‘स्वतंत्र ईसाई राज्य मिलनेके पश्चात् फुटीरतावादी ईसाइयोंने स्वतंत्र नागालैंड राष्ट्रकी मांग 
करनेके लिए देशके विरुद्ध सशस्त्र विद्रोहकी घोषणा की ।’
– डॉ. नी.र. व हाडपांडे (दैनिक ‘तरुण भारत’, १५.६.२००८)
४ आ २. कश्मीर
४ आ २ अ. मुसलमान-बहुल कश्मीरका हो रहा राष्ट्रांतर !
        हिंदुस्थानको स्वतंत्रता-प्रााqप्तके पश्चात् कश्मीरमें बहुसंख्यक मुसलमानोंने कश्मीरके लिए पृथक 
संविधान एवं दंडविधान (कानून) बनानेका अधिकार प्राप्त कर लिया । कश्मीरके प्रथम मुख्यमंत्री शेख 
अब्दुल्लाका ध्येय था, ‘स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र’ । इसके लिए उन्होंने राष्ट्रविरोधी कृत्य कर पाकसे साठगांठ की ।
 फलस्वरूप कश्मीरी मुसलमानोंमें फुटीरतावादी मानसिकता दृढ हुई । फुटीरतावादी ‘हुरियत कॉन्फ्रेंस’ 
संगठनने ‘आजाद कश्मीर’का प्रचार आरंभ किया । स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्रकी स्थापना हेतु, ‘जम्मू 
कश्मीर मुक्त मोर्चा’ (जेकेएल्एफ्) आदि आतंकवादी संगठनोंका जन्म हुआ । इस कारण, आज वहां 
राष्ट्रीय त्यौहारोंके दिन राष्ट्रध्वज फहराना भी कठिन हो गया है ।
४ आ ३. अंतरराष्ट्रीय उदाहरण
४ आ ३ अ. ईस्ट टिमोर : ‘२०.५.२००२ को इस्लामी राष्ट्र इंडोनेशियाका विभाजन कर ‘ईस्ट टिमोर’ नामक 
एक छोटे-से ईसाई राष्ट्रका निर्माण किया गया ।
४ आ ३ आ. दक्षिण सूडान
        ९.७.२०११ को इस्लामी राष्ट्र सूडानका विभाजन कर, ‘दक्षिण सूडान’ नामक नए ईसाई राष्ट्रका 
निर्माण किया गया । २० वर्षतक अमरीकाके ईसाई  धर्मगुरुओंने सूडानके दक्षिणी भागमें रहनेवाले 
दरिद्र मुसलमानोंका ईसाईकरण किया । इस क्षेत्रमें ईसाइयोंकी जनसंख्या ९० प्रतिशत होनेपर वहांकी 
चर्चने सूडानसे पृथक स्वतंत्र ईसाई राष्ट्र बनानेकी मांग की ।’

५. धार्मिक दुष्परिणाम

५ अ. धर्मांतरित अधिक कट्टर होते हैं ।
इससे हिंदु समाजके शत्रुओंमें वृद्धी हुई है ।

५ अ १. ‘हिंदु समाजका एक व्यक्ति मुसलमान अथवा ईसाई बनता है, तो इसका अर्थ इतना ही नहीं होता कि
 एक हिंदु घट गया; इसके विपरीत हिंदु समाजका एक शत्रु और बढ जाता है ।’ – स्वामी विवेकानंद
५ अ २. धर्मांतरित हिंदुओंद्वारा हिंदु संतोंकी स्मृतियोंका विरोध
५ अ २ अ. तमिलनाडु राज्यमें ईसाई बने मछुआरे समाजने स्वामी विवेकानंदका स्मारक बनानेका विरोध 
किया ।
५ अ २ आ. कालडी (केरल) नामक आदिगुरु शंकराचार्यके इस गांवमें उनके नामसे अभ्यास वेंâद्र बनानेका 
ईसाई बने वहांके ग्रामीणोंने विरोध किया है ।
५ अ ३. धर्मांतरित मुसलमानोंद्वारा कट्टरतापूर्वक हिंदुओंके हत्याकांड एवं धर्मांतरण !
        इस्लामी आक्रमणोंके समय प्राणभयसे अथवा धनके लोभसे धर्मांतरण करनेवाले धर्मभ्रष्ट हिंदुओंने ही
 आगे कट्टरतापूर्वक हिंदुओंका नरसंहार किया और असंख्य हिंदुओंको मुसलमान बनाया । अलाउद्दीन 
खिलजीका सेनापति मलिक कपूर, जहांगीरका सेनापति महाबत खां, फिरोजशाहका वजीर मकबूल खां, 
अहमदाबादका सुलतान मुजफ्फरशाह और बंगालका काला पहाड मूलतः हिंदु थे । उन्होंने मुसलमान
 बननेके पश्चात् हिंदु धर्मपर कठोर आघात और हिंदुओंपर निर्मम अत्याचार किए ।
५ अ ४. धर्मांतरित गांधीपुत्रद्वारा कट्टरतापूर्वक हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन !
        ‘मोहनदास गांधीके पुत्र हरिलालने मुसलमान बननेके पश्चात् अनेक हिंदुओंको मुसलमान बनाया । 
उसने यह प्रतिज्ञा की थी, ‘पिता मोहनदास और मां कस्तूरबाको भी मुसलमान बनाऊंगा ।’ 
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी
५ अ ५. धर्मांतरित मुसलमानके कारण कश्मीरमें हिंदुओंका वंश-विच्छेद !
        इस्लामी आक्रमणकारियोंकी मार-काटमें अधिकांश कश्मीर घाटी धर्मांतरित हुई । इन धर्मांतरित
 मुसलमानोंकी आगामी पीढियोंने वर्ष १९८९ में हिंदुओंको चेतावनी दी, ‘धर्मांतरित हों अथवा कश्मीर छोडो ।’
फलस्वरूप साढेचार लाख हिंदुओंने कश्मीर छोडा, तथा १ लाख हिंदु जिहादियोंद्वारा मारे गए । आज कश्मीरमें 
हिंदु पूर्णतः समाप्त होनेके मार्गपर हैं ।

५ आ. हिंदुओंका वंशनाश होनेका संकट !

        ‘हिंदुओंका धर्मांतरण इसी गति से चलता रहा, तो जिस प्रकार १०० वर्षोंके पश्चात् आज हम कहते हैं,
 ‘किसी काल में पारसी पंथ था’, उसी प्रकार यह भी कहना पडेगा, ‘हिंदु धर्म था’; क्योंकि धर्मपरिवर्तनके 
कारण देशमें जब हिंदु अल्पसंख्यक हो जाएंगे, उस समय उन्हें ‘काफिर’ कहकर मार डाला जाएगा ।’ 
– डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था.

६. वैश्विक अशांति

६ अ. ‘अनेक प्रकारके संघर्ष, जिनसे हम बच सकते हैं, धर्म-परिवर्तनके कारण ही उत्पन्न होते हैं ।’
 – म. गांधी
६ आ. ‘धर्म-परिवर्तन ही विश्वमें संघर्षका मूल कारण है । यदि विश्वमें धर्म-परिवर्तन न हो, तो निश्चित ही 
संघर्ष भी नहीं होगा ।’
– श्री. एम्.एस्.एन्. मेनन (साप्ताहिक ‘ऑर्गनाइजर’, ६.५.२००७)
६ इ. ‘मध्ययुगके अनेक युद्ध धर्म-परिवर्तनके कारण ही हुए हैं ।’ – (पत्रिका ‘हिन्दू-जागृति से संस्कृति रक्षा’)
६ ई. विश्वमें सर्वाधिक रक्तपात धर्म-परिवर्तनके कारण !
        ‘विश्वमें अबतक हुए युद्धोंमें जितना रक्तपात नहीं हुआ होगा, उससे कहीं अधिक रक्तपात ईसाई 
और मुसलमान इन दो धर्मियोंद्वारा किए गए धर्म-परिवर्तनके कारण हुआ ।’ – श्री. अरविंद विठ्ठल
 कुळकर्णी, ज्येष्ठ पत्रकार, मुंबई.
संदर्भ : हिंदु जनजागृति समितीद्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’









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