Thursday 15 January 2015

sanskar

सायंकाल में देवता के समक्ष दीप क्‍यों जलायें ?

१. संधिकाल और संधिकाल में आचारपालन का महत्त्व

संधिकालकी परिभाषा : ‘प्रातः सूर्योदयके पूर्व और सायंकाल सूर्यास्तके उपरांत ४८ मिनटोंके (दो घटिकाओंके) कालको ‘संधिकाल’ कहते हैं ।
संधिकालका पर्यायवाची शब्द : ‘पर्वकाल’
संधिकालमें आचारपालनका महत्त्व : संधिकाल अनिष्ट शक्तियोंके आगमनका काल है । उनसे रक्षण होनेके लिए धर्मने इस कालमें आचारपालनको महत्त्व दिया है । पर्वकालमें कोई भी हिंसात्मक कृत्य नहीं करते ।
 २. सायंकाल घर में धूप दिखाएं
‘इस आचारद्वारा वास्तुके साथ ही कपडोंकी भी शुद्धि होनेमें सहायता होती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
 ३. सायंकाल देवताके समक्ष दीप जलाकर उसे नमस्कार करें
सायंकाल संध्या करें और देवताके समक्ष दीप जलाएं । इसी समय आंगनमें तुलसीके पास भी दीप जलाएं ।
देवताके सामने २४ घंटे दीप जलाए रखना चाहिए । सायंकाल दीपककी बातीपर आई कालिख निकालें । आजकल अधिकांश लोगोंके घरमें २४ घंटे दीप नहीं जलता है । इसलिए वे सायंकाल होनेपर देवताके समक्ष दीप जलाएं ।
‘संध्यासमय, अर्थात् दीप जलानेके समय देवता और तुलसीके समीप दीप जलानेसे घरके चारों ओर देवताओंकी सात्त्विक तरंगोंका सुरक्षाकवच निर्माण होता है । वातावरणमें अनिष्ट शक्तियोंके संचारसे प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगोंसे घरकी तथा व्यक्तियोंकी इस कवचसे रक्षा होती है । इसलिए यथासंभव दीप जलानेके समयसे पूर्व घर लौटें अथवा दीप जलानेके उपरांत घरसे बाहर न निकलें । अधिकांश लोगोंको संध्यासमय अनिष्ट शक्तियोंकी बाधा सर्वाधिक होती है । अघोरी विद्याके उपासक संध्यासमय वातावरणकी परिधिमें प्रविष्ट अनिष्ट शक्तियोंको अपने वशमें कर उनसे अनिष्ट कृत्य करवाते हैं ।
इसलिए संध्यासमय अधिक मात्रामें दुर्घटनाएं और हत्याएं होती हैं या बलात्कारके कृत्य होते हैं । इस कालको ‘साई सांझ’ अर्थात् ‘कष्टदायक या विनाशका समय’ कहते हैं ।’
४. देवता के पास दीप जलाने के उपरांत श्लोक बोलें ।

४ अ. श्लोकपाठके लाभ

‘शुभं करोति कल्याणं …’ जैसे श्लोक बोलनेसे दीपकी स्तुतिद्वारा अनिष्ट शक्तियोंको निरस्त करनेका मारक कार्य साध्य किया जाता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
‘स्तोत्रपाठद्वारा निर्मित सात्त्विक स्पंदनोंसे घरकी शुद्धि होती है । इसलिए अनिष्ट शक्तियोंकी पीडा भी कम होती है ।
दीप जलानेके उपरांत स्तोत्रपाठ करनेसे बच्चोंकी स्मरणशक्ति बढती है, वाणी शुद्ध होती है एवं उच्चारण भी स्पष्ट होनेमें सहायता मिलती है ।’


शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ : हे दीपज्योति, तुम शुभ और कल्याणकारी हो, स्वास्थ्य एवं धनसंपदा प्रदान करती हो और शत्रुबुद्धिका नाश करती हो; अतः मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं ।
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ : दीपका प्रकाश परब्रह्मस्वरूप है । दीपकी ज्योति जगत्का दुख दूर करनेवाला परमेश्वर है । दीप मेरे पाप दूर करे । हे दीपज्योति, आपको नमस्कार करता हूं।
 ५. श्लोकपाठ के उपरांत देवता की आरती और प्रार्थना करें ।
दीप जलानेके समय घरके सभी सदस्य उपस्थित रहें । सभी उपस्थित रहनेके लाभ :
अ. ‘दीप जलानेके समय घरके सभी सदस्य उपस्थित रहनेसे छोटे बच्चोंपर अच्छे संस्कार होते हैं ।
आ. प्रार्थनाके समय परिवारके सभी व्यक्तियोंका एकत्र होना, छोटोंका बडोंको अभिवादन करना, एक-दूसरेकी पूछताछ करना, कोई त्यौहार हो, तो उसका महत्त्व छोटे बच्चोंको समझाना इत्यादि घरके वातावरणको बनाए रखनेमें सहायक होते हैं ।
आजकल दूरचित्रवाहिनीके शोर-गुलमें स्तोत्रपाठ की ध्वनि कहीं खो गई है । आज विभक्त परिवारपद्धतिके कारण हो रही हानि हम देख ही रहे हैं । इसके लिए कौन उत्तरदायी है ? दूरदर्शन, माता-पिता, अध्यात्मविहीन शिक्षाप्रणाली, समाज या प्रत्येक व्यक्ति ?’
 ६. संध्या समय छोटे बच्चों का लगी कुदृष्टिका प्रभाव उतारना (नजर उतारना)
छोटे बच्चोंपर कुदृष्टिका प्रभाव शीघ्र पडता है । कुदृष्टि-निवारणका अर्थ है – कुदृष्टिके कारण देहमें निर्माण हुए कष्टदायक स्पंदनोंको विशिष्ट पदार्थोंमें खींचकर, उनके माध्यमसे व्यक्तिका कष्ट दूर करना । कुदृष्टि उतारनेके लिए खडा नमक-राई, खडा नमक-लाल मिर्च, पानीवाले नारियल इत्यादिका प्रयोग करते हैं । जिसे अनिष्ट शक्तिका कष्ट है, उसकी भी कुदृष्टि इसी पद्धतिसे उतार सकते हैं ।
 ७. सायंकाल के संधिकाल में बताई गई निषिद्ध बातें
संधिकालमें अनिष्ट शक्तियां प्रबल होनेके कारण इस कालमें निम्नलिखित बातें निषिद्ध बताई हैं ।
अ. सोना, खाना-पीना और भोजन करना
आ. शुभ कार्यका प्रारंभ
इ. वेदमंत्रोंका पाठ
ई. दूसरेको श्वेत वस्तु देना
उ. धनका लेन-देन
ऊ. अश्रुमोचन (रोना)
ए. यात्राके लिए निकलना
ऐ. शपथ लेना; गालियां देना; झगडे करना और अभद्र एवं असत्य बोलना
ओ. गर्भवती स्त्री यह न करे –
१. चौखटपर खडे रहना : इससे गर्भको हानि होती है ।
२. सायंकाल घर लौटनेवाले प्राणियोंको देखना : भूत-पिशाच प्राणियोंके पैरोंमें प्रवेश कर घरमें घुसनेका प्रयत्न करते हैं । इसलिए सायंकाल घर लौटते हुए प्राणियोंको न देखें ।
औ. अग्निहोत्रियोंके लिए : अग्निहोत्री संधिकालके पूर्व ही अग्नि प्रज्वलित करते हैं; परंतु संधिकाल बीतनेके उपरांत होम करते हैं ।
अं. यथासंभव गंगाके अतिरिक्त अन्य नदियोंके तटपर न बैठें ।
आरोहणं गवां पृष्ठे प्रेतधूमं सरित्तटम् ।
बालतपं दिवास्वापं त्यजेद्दीर्घं जिजीविषुः ।

– स्कंदपुराण, ब्रह्म. धर्मा. ६. ६६-६७
अर्थ : जो दीर्घकाल जीवित रहना चाहता है, वह गाय-बैलकी पीठपर न बैठे, चिताका धुंआ अपने शरीरको न लगने दे, (गंगाके अतिरिक्त दूसरी) नदीके तटपर न बैठे, उदयकालीन सूर्यकी किरणोंका स्पर्श न होने दे तथा दिनके समय सोना छोड दे ।
यथासंभव संध्यासमय गंगाके अतिरिक्त अन्य नदियोंके किनारे न बैठनेका आधारभूत शास्त्र
‘गंगा नदीको ‘गंगोत्री’ (सात्त्विक तरंगोंका शिवरूपी स्रोत प्रदान करनेवाली)’ भी कहते हैं । गंगाके जलसे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगोंके कारण गंगातटका वायुमंडल शुद्ध और चैतन्यमय बना रहता है । इसलिए इस वातावरणमें अनिष्ट शक्तियोंद्वारा पीडा होनेकी आशंका अत्यल्प होती है । इसके विपरीत, अन्य नदियोंके तटपर सात्त्विकता अपेक्षाकृत कम होती है । इसलिए नदीके किनारे बैठे जीवको अनिष्ट शक्तियोंके संचारके कारण कष्ट होनेकी आशंका अधिक होती है । नदीके किनारे विचरनेवाली कनिष्ठ स्तरकी अनिष्ट शक्तियोंमें पृथ्वी और आपतत्त्व प्रबल होनेसे, ये शक्तियां पृथ्वी और आपतत्त्वोंसे बनी मानवीय देहके साथ अल्पावधिमें एकरूप हो सकती हैं । इसलिए यथासंभव संध्या समय नदीके तटपर न बैठें एवं नदीके तटपर घूमनेसे बचें ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

८. रात्रिकाल में पालन करने योग्य आचार

८ अ. रात्रिकाल में दर्पण न देखें !

दर्पणके प्रतिबिंबपर वातावरणमें प्रबल अनिष्ट शक्तियां तुरंत ही आक्रमण कर सकती हैं; इसलिए रातमें दर्पण देखना निषिद्ध
‘रातका समय रज-तमात्मक वायुसंचार हेतु पूरक होता है । अतः वह सूक्ष्म रज-तमात्मक गतिविधियों और अनिष्ट शक्तियोंकी सजगतासे संबंधित होता है । दर्पणमें दिखाई देनेवाले देहका प्रतिबिंब देहसे प्रक्षेपित जीवकी सूक्ष्म-तरंगोंसे अधिक संबंधित होता है, इसलिए इस प्रतिबिंबपर वातावरणमें स्थित प्राबल्यदर्शक अनिष्ट शक्तियां तुरंत ही आक्रमण कर सकती हैं ।
इसके विपरीत सवेरे वायुमंडल सात्त्विक तरंगोंसे युक्त होता है । अतः दर्पणमें दिखाई देनेवाले सूक्ष्म-प्रतिबिंबपर, वायुमंडलमें स्थित सात्त्विक तरंगोंकी सहायतासे आध्यात्मिक उपाय होते हैं और स्थूलदेह अपनेआप ही हलका हो जाता है । इसलिए प्रातः दर्पणमें प्रतिबिंब देखना लाभदायक है, तथापि वही प्रतिबिंब रज-तमात्मक गतिविधियोंके लिए पूरक रात्रिकालमें देखना हानिकारक हो सकता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
दर्पणमें प्रतिबिंबपर वातावरणकी प्राबल्यदर्शक अनिष्ट शक्तियोंद्वारा आक्रमणका व्यक्तिपर क्या परिणाम होता है ?
‘प्रतिबिंबमें जीवसे संबंधित तरंगें उसके सूक्ष्मदेहसे अधिक संलग्न होती हैं । इस कारण अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणका अधिक परिणाम, जीवको आध्यात्मिक स्तरपर अनिष्ट शक्तिकी पीडा होनेमें होता है । इस आक्रमणका परिणाम जीवके शरीर और मनपर होता है । प्राणशक्ति कम होना, थकान होना, अस्वस्थ लगना, मनमें आत्महत्याके विचार आना, अनिष्ट शक्तिका देहमें प्रवेश होना, अनिष्ट शक्तिके प्रभावके कारण अपना अस्तित्व कम होना इत्यादि आध्यात्मिक कष्टोंका जीवको सामना करना पड सकता है ।’ – सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
प्रत्यक्ष व्यक्तिपर आक्रमण करनेकी अपेक्षा व्यक्तिके प्रतिबिंबके माध्यमसे व्यक्तिपर आक्रमण करना अनिष्ट शक्तियोंके लिए अधिक लाभदायक क्यों होता है ?
‘व्यक्तिके प्रतिबिंबके माध्यमसे अनिष्ट शक्तियोंको जीवका एक सूक्ष्म-रूप ही प्रत्यक्ष दर्शरूपमें मिल सकता है । जीवके सूक्ष्म-रूपपर आक्रमण करनेसे उसका परिणाम दीर्घकालतक बना रहता है । परिणामस्वरूप देहपर गहरा प्रभाव पडनेसे उसका अनुचित लाभ उठाकर अनिष्ट शक्तियोंके लिए जीवके देहके सूक्ष्म-कोषोंमें काली शक्तिका स्थान बनाना सरल होता है । इसके लिए स्थूलदेहपर आक्रमण करनेकी अपेक्षा व्यक्तिके प्रतिबिंबके सूक्ष्म-रूपका उपयोग कर जीवको दीर्घकालतक कष्ट देना और उसके देहमें प्रत्यक्ष प्रवेश करना अनिष्ट शक्तियोंके लिए सरल हो सकता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
अनिष्ट शक्तियोंद्वारा दर्पणमें उभरे व्यक्तिके प्रतिबिंबके माध्यमसे व्यक्तिपर आक्रमण करना और प्रत्यक्ष व्यक्तिपर आक्रमण करना – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

८ आ. होहल्ला न मचाएं अथवा सीटी न बजाएं !

अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट न हो; इसलिए रातके समय होहल्ला मचाना अथवा सीटी बजाना निषिद्ध : ‘होहल्ला मचाने’ को मांत्रिककी भाषामें ‘चित्कार’ कहते हैं । इस प्रकारकी ध्वनि उत्पन्न कर मांत्रिक कनिष्ठ स्तरकी दास्य अनिष्ट शक्तियोंको बुलाते हैं । अघोरी विधिद्वारा सीटी समान ध्वनि उत्पन्न कर कनिष्ठ स्तरकी अनिष्ट शक्तियोंकी शक्ति जगाते हैं और उन्हें अनिष्ट कर्म करनेके लिए प्रेरित करते हैं । इसलिए ‘होहल्ला मचाना’ तामसिकताका अर्थात् अनिष्ट शक्तियोंका आवाहन करनेका, जबकि ‘सीटी बजाना’ रजोगुणका, अर्थात् अनिष्ट शक्तियोंमें विद्यमान कार्यशक्तिको जगानेका लक्षण है । अतः रज-तमोगुणके लिए पोषक रात्रिकालमें सीटी न बजाएं अथवा होहल्ला न मचाएं ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
 ८ इ. मद्यपान कर नाच-गानेसे बचें !
रात्रिके समय मदिरा पीकर नाचना, गाने गाना इत्यादिके कारण व्यक्तिको अनिष्ट शक्तियोंका तीव्र कष्ट होकर उसके आस-पास और घरका वातावरण दूषित होना : ‘रातके समय मनोरंजन, रुचि अथवा समय बितानेके लिए मद्यपान कर डान्सबारमें (मद्य पीकर संगीतकी तालपर नृत्य करनेका स्थान) नाचने और गाना गानेसे अल्पावधिमें तमोगुण अत्यधिक बढता है । इससे व्यक्तिको अनिष्ट शक्तियोंका तीव्र कष्ट होनेकी आशंका रहती है तथा व्यक्तिमें बढे हुए तमोगुणका परिणाम उसके आस-पासके और घरके वातावरणपर होता है । परिणामस्वरूप वातावरण भी दूषित हो जाता है ।’ – ईश्वर (कु. मधुरा भोसलेके माध्यमसे)
झाडू लगाते समय पूर्व दिशा की ओर कूडा क्‍यों ना ढकेलें ?

१. झाडू कब लगाएं ?

‘यदि घर अस्वच्छ हो गया हो, तो नामजप भावपूर्वक करते हुए क्षात्रभावसे, किसी भी समय झाडू लगाएं । ऐसा करनेसे ही झाडू लगानेकी कृतिसे निर्मित कष्टदायक स्पंदनोंका देहपर प्रभाव नहीं होगा ।
कर्मबंधनके आचाररूपी नियम स्वयंपर लागू कर दिनमें ही, अर्थात् रज-तमात्मक क्रियाका अवरोध करनेवाले समयमें ही यह कर्म कर लें ।

सायंकाल झाडू न लगाना

दिनमें एक बार ही झाडू लगाएं । सायंकालके समय झाडू न लगाएं; क्योंकि इस कालमें वायुमंडलमें रज-तमात्मक स्पंदनोंका संचार अधिक मात्रामें होता है । इसलिए झाडू लगानेकी रज-तमात्मक क्रियासे संबधित इस प्रक्रियासे घरमें अनिष्ट शक्तियोंके प्रवेशकी आशंका अधिक रहती है । दिनमें वायुमंडल सत्त्वप्रधान होता है, इसलिए झाडू लगानेकी रज-तमात्मक क्रियासे निर्मित कष्टदायक स्पंदनोंपर यह वायुमंडल यथायोग्य अंकुश लगाए रखता है । अतः इस क्रियासे किसीको भी कष्ट नहीं होता ।

त्रिकालसंध्यासे पूर्व झाडू लगाना

संकलनकर्ता : दिनभर घरमें एकत्रित हुआ कूडा संध्याके समय निकालनेसे, उसके उपरांत आनेवाले रज-तमात्मक स्पंदन वास्तुमें कम मात्रामें आकृष्ट होते हैं । इसलिए संध्यासमय भी झाडू लगाते हैं । आपने ऐसा क्यों बताया है कि ‘सायंकालमें झाडू न लगाएं ?’
एक विद्वान : कलियुगके जीव रज-तमप्रधान हैं । अतः जहांतक हो सके, वे रज-तमात्मक स्पंदनोंको आकृष्ट करनेवाले कर्म सायंकालमें न करें । सायंकालमें वायुमंडलमें रज-तमात्मक तरंगोंका संचार बढ जाता है । झाडू लगानेकी घर्षणात्मक कृतिद्वारा भूमिसे संलग्नता साध्य होती है । इससे पातालके कष्टदायक स्पंदनोंकी गतिमें वृद्धि हो जाती है ।
कूडा बाहर फेंकनेकी कृतिकी अपेक्षा नादके स्तरपर सूक्ष्म स्वरूपमें वास्तुमें रज-तमात्मक स्पंदनोंके घूमते रहनेकी मात्रा अधिक हो जाती है । इसीलिए जहांतक संभव हो, त्रिकालसंध्याका समय बीतनेपर झाडू न लगाएं । अतः कहा गया है कि, ‘यथासंभव, सायंकालमें झाडू न लगाएं ।’ त्रिकालसंध्यासे पूर्व झाडू लगाते समय उत्पन्न नादसे रज-तमात्मक तरंगें कम आकृष्ट होती हैं ।
ऐसा कहते हैं कि, त्रिकालसंध्याके समय घरमें लक्ष्मी आती है । अर्थात् त्रिकालसंध्यासे पूर्व झाडू लगाकर त्रिकालसंध्याके समय तुलसीके निकट दीप जलानेसे शक्तिरूपी तरंगें दीपकी ओर आकृष्ट होकर वास्तुमें प्रवेश करती हैं । इस तेजदायी देवत्वके कारण सायंकालके कष्टदायक स्पंदनोंसे रक्षण होता है ।’
२. झाडूसे कूडा कैसे निकालें ?

२ अ. झाडू लगाते समय कमरकी दाहिनी ओर झुककर दाहिने हाथमें झाडू लेकर, पीछेसे आगेकी ओर कूडा धकेलते हुए ले जाएं ।

कमर झुकानेसे होनेवाली प्रक्रिया : ‘कूडा निकालते समय कमरसे झुकनेसे नाभिचक्रपर दबाव पडनेसे पंचप्राण जागृत होते हैं । घुटने झुकाकर कभी भी कूडा न निकालें; क्योंकि इस मुद्रासे घुटनेके रिक्त स्थानमें संग्रहित अथवा घनीभूत रज-तमात्मक वायुधारणाको गति प्राप्त होनेकी आशंका रहती है । इस मुद्रासे झाडू लगानेपर पातालसे वायुमंडलमें ऊत्सर्जित कष्टदायक स्पंदन देहकी ओर आकृष्ट होनेका भय रहता है । इसलिए यथासंभव, देहमें रज-तमात्मकताका संवर्धन करनेवाली ऐसी कृति न करें ।
दाहिनी ओरसे झुकनेसे होनेवाली प्रक्रिया : दाहिनी ओर झुककर कूडा निकालनेसे देहकी सूर्य नाडी जागृत रहती है तथा तेजके स्तरपर, भूमिसे उत्सर्जित कष्टदायक स्पंदनोंसे रक्षण होता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २६.१०.२००७, दोपहर ५.२०)

२ आ. पूर्व दिशाके अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशाकी ओर कूडा ढकेलें ।

‘पूर्व दिशाकी ओरसे देवताओंकी सगुण तरंगोंका पृथ्वीपर आगमन होता है । कूडा रज-तमात्मक होता है, इसलिए पश्चिमसे पूर्वकी ओर कूडा ढकेलते समय कूडा और धूलका प्रवाह पूर्व दिशामें होता है तथा इसके माध्यमसे रज-तम कण एवं तरंगोंका प्रक्षेपण होता है । इससे पूर्व दिशासे आनेवाली देवताओंके सगुण तत्त्वकी तरंगोंके मार्गमें बाधा निर्माण होती है । अतः झाडू लगाते हुए पूर्वकी ओर जाना अयोग्य है । पूर्व दिशाके अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशाकी ओर झाडू लगाते हुए जा सकते हैं ।’ – ईश्वर (कु. मधुरा भोसलेके माध्यमसे, २८.११.२००७, रात्रि १०.५५)
झाडू लगाते समय अंदरसे बाहरकी दिशामें, अर्थात् द्वारकी दिशामें ढकेलते हुए आगे ले जाएं ।

२ इ. कूडा आगे ढकेलते समय झाडूको भूमिसे विपरीत दिशामें रगडकर न ले जाएं ।

‘झाडू लगाते समय उसे आगेकी ओर ढकेलते हुए ले जाएं । एक बार कूडा आगे करनेके उपरांत झाडूको पुनः पीछेकी ओर घिसते हुए झाडू न लगाएं; क्योंकि इस घर्षणात्मक क्रियासे भूमिपर घडीकी सुइयोंकी विपरीत दिशामें घूमनेवाले गतिमान भंवरोंकी निर्मिति होती है । झाडू लगाते समय भूमिके निकटके पट्टेसे पातालसे उत्सर्जित कष्टदायक स्पंंदन इन भंवरोंमें घनीभूत होते हैं । इस कारण कूडा निकालनेके उपरांत भी सूक्ष्म दृष्टिसे वास्तुमें अशांति ही रहती है । अतः झाडू विपरीत दिशामें, पीछे ले जाकर कूडा न निकालें । प्रत्येक बार आगेसे पीछे आते समय झाडू भूमिको बिना घिसे उठाकर पीछे ले जाएं, फिर उसे भूमिपर रखकर कूडा निकालें ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

२ ई. झाडू भूमिपर न पटकें और न ही उसे बलपूर्वक घिसकर कूडा निकालें ।

‘कूडा निकालते समय झाडू भूमिपर मारने अथवा बलपूर्वक घिसकर कूडा निकालने जैसी कृतियोंसे कष्टदायक नाद उत्पन्न होते हैं । इससे पातालके तथा वास्तुके कष्टदायक स्पंदन कार्यरत होते हैं । कालांतरसे इन तरंगोंका वातावरणमें प्रक्षेपण आरंभ होता है एवं वास्तुमें अनिष्ट शक्तियोंका संचार भी बढता है । इसलिए ऐसी कृतियां न करें । उपरोक्त सभी कृतियां तमोगुणी वृत्तिकी प्रतीक हैं ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
(‘सन् २००४ में गोवाके फोंडा स्थित सनातनके आश्रममें कूडा निकालनेके संदर्भमें विविध प्रयोग किए गए । तब अनुभव हुआ कि, ऊपर बताए अनुसार कूडा निकालनेपर अधिक लाभ होता है । प्रत्येक बार ईश्वर पहले अनुभूति देते हैं, तदुपरांत ज्ञान देते हैं । २६.१०.२००७ को प्राप्त ज्ञान एक अन्य उदाहरण है ।’ –हिंदू जनजागृति समितीके प्रेरणास्थान, प. पू.  डॉ. जयंत आठवले)
 ३. कूडा एकत्रित करनेवाले निर्वात यंत्रसे (वैक्यूम क्लीनरसे) वातावरणमें रज-तमका प्रदूषण बढना
‘कूडा एकत्रित करनेवाले निर्वात यंत्रसे वायुकी आकर्षणशक्तियुक्त तेज-वायुयुक्त वेगधारी ऊर्जासे भूमिसे संलग्न कूडा संपूर्णतः खींच लिया जाता है । इस प्रकार भूमिको घिसनेवाले तेज-वायुयुक्त प्रवाहसे कण-कण कूडा यंत्ररूपी थैलीमें खींच लिया जाता है । तब भी वायुके भूमिसे होनेवाले (तेज-वायुरूपी घर्षणात्मक स्तरपर) स्पर्शसे पातालकी अनिष्ट शक्तियोंके काली शक्तिके स्थान कार्यरत होते हैं । उसी समय फुवारेके समान वायुमंडलमें काली शक्तिका फुवारा उडाते हैं । अर्थात् बाह्य स्तरपर मनुष्यको लगता है कि ‘पूरा परिसर स्वच्छ हो गया’; परंतु ऐसी प्रक्रिया नहीं होती । संपूर्ण वायुमंडल कष्टदायक वेगधारी ऊर्जासे आवेशित होता है । भूमिसे लगभग पांचसे छः फुट ऊंचाईतक इस कष्टदायक ऊर्जाका कार्यक्षेत्र निर्माण हो जाता है । साधारण पुरुषकी ऊंचाईका क्षेत्र कष्टदायक स्पंदनोंसे आवेशित होता है । इस कारण बाह्यतः इस स्वच्छ परिसरमें विचरण करनेवाला मनुष्य संपूर्णतः काली शक्तिके स्पंदनोंमें रहता है एवं इन काले आवरणोंमें ही दिनभर अपना व्यवहार पूर्ण करता है । इसलिए वह जिस स्थानपर जाता है, उस स्थानके वायुमंडल तथा उसके संपर्कमें आनेवाले मनुष्यदेहको भी सूक्ष्म-स्तरपर दूषित कर देता है ।
इसीलिए विदेशमें प्रचलित स्वच्छताकी यांत्रिक पद्धति सूक्ष्म-स्तरपर वायुमंडलको दूषित बनानेमें ही अग्रसर होती है । इससे यही स्पष्ट होता है कि, वहांका वातावरण बाह्यतः सर्व आधुनिक सुख-सुविधाओंसे युक्त तथा स्वच्छताको प्रोत्साहित करता हुआ प्रतीत होता है; परंतु सूक्ष्म-स्तरपर रज-तमात्मक प्रक्रियाकी निर्मिति करनेके स्तरपर अत्यंत पिछडा हुआ है । यह विदेशमें प्रत्येक जीवको रज-तमात्मक स्पंदनोंसे आवेशित कर नरकप्राप्ति करवाता है ।’
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

आधुनिकताकी ओर नहीं; अपितु विनाशकी ओर ले जानेवाला विज्ञान

विश्वका शोध करनेवाले ऋषि-मुनियोंकी झाडूसे कूडा निकालनेकी पद्धतिको ‘जंगली’ कहकर, उसकी घृणा करनेवाले तथा कूडा एकत्र करनेवाले निर्वात यंत्रका (वैक्यूम क्लीनरका) आविष्कार कर मानवजातिको विनाशकी ओर ले जानेवाले वर्तमान वैज्ञानिक उन्नत नहीं हैं; अपितु पिछडे हुए हैं !
(‘मनुष्य अध्यात्मका जितना आधार लेगा, उतना वह सुखी रहेगा’, यह सभी ध्यान रखें ।’ – हिंदू जनजागृति समितीके प्रेरणास्थान, प. पू.  डॉ. जयंत आठवले)
 ४. कूडेका विनियोग कैसे करें ?
‘कूडा निकालनेके उपरांत उसे घरके बाहर रखे कूडेदानमें डालकर अग्निकी सहायतासे जलाएं ।
कूडा यदि तत्काल बाहर फेंकना संभव न हो तो घरके कोनेमें रखे कूडेदानमें फेंकें । कोनेमें विद्यमान इच्छाशक्तितत्त्वात्मक तरंगोंकी घनीभूत धारणामें कूडेकी कष्टदायक स्पंदनोंको एकत्र करनेकी क्षमता रहती है । इससे कूडेके कष्टदायक स्पंदन सर्वत्र नहीं फैलते ।’
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
 ५. पोंछा कैसे लगाएं ?
कूडा निकालनेके उपरांत तत्काल पोंछा लगाएं ।

५ अ. पोंछा लगानेके लिए उपयोग किए जानेवाले पानीमें चुटकीभर विभूति डालें ।

विभूतिमें सात्त्विक शक्ति होती है । विभूतियुक्त जलसे पोंछा करनेसे, भूमिपर आई अनिष्ट शक्तियोंकी काली परत नष्ट होनेमें सहायता मिलती है ।
जलदेवतासे प्रार्थना : पोंछा लगानेसे पूर्व जलदेवतासे प्रार्थना करें, ‘अनिष्ट शक्तियोंके कारण भूमिपर आया काला आवरण पानीके चैतन्यद्वारा नष्ट होने दें’ ।

५ आ. नीचे झुककर दाहिने हाथसे गीले कपडेसे पोंछा लगाएं ।

झुककर दाहिने हाथसे भूमिपर पोंछा लगानेसे होनेवाली प्रक्रिया
‘झुककर दाहिने हाथसे भूमि पोंछनेपर निर्माण होनेवाली मुद्रासे मणिपूर-चक्रमें विद्यमान पंचप्राण कार्यरत स्थितिमें आते हैं । इससे देहकी तेजरूपी चेतना अल्पावधिमें कार्य करने हेतु तत्पर होती है । इस सिद्धतासे ही सूर्य नाडी जागृत होती है । दाहिने हाथसे तेजका प्रवाह पोंछेके कपडेमें संक्रमित होनेसे वह जलके आपतत्त्वके स्तरपर भूमिसे संलग्न तेजका निर्माण करती है । इसलिए भूमिपर पोंछा लगानेकी यह प्रक्रिया एक प्रकारसे भूमिपर तेजका कवच निर्माण करती है । इससे पातालसे प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनोंका अवरोध होता है तथा वास्तुकी रक्षामें सहायता मिलती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)
भूमि पोंछने हेतु प्रयुक्त गीले कपडेको समय-समयपर स्वच्छ जलसे धो लें ।
भूमि पोंछनेके उपरांत उदबत्ती जलाकर घरमें निर्मित सात्त्विकता बनी रहे, इसके लिए वास्तुदेवतासे प्रार्थना करें ।
 ६. यंत्रकी सहायतासे भूमि पोंछनेसे संभावित हानि

वास्तु दूषित होना

‘यंत्रकी सहायतासे भूमि पोंछनेपर संलग्न घर्षणात्मक नादकी ओर पातालकी कष्टदायक तरंगें तीव्रगतिसे आकृष्ट होती हैं । ये तरंगें जलमें स्थित आपतत्त्वकी सहायतासे भूमिपर प्रसारित होती हैं । इस कारण यांत्रिक पद्धतिसे भूमि पोंछनेसे कष्टदायक तरंगोंका आवरण भूमिपर निर्माण होता है तथा भूमि इन तरंगोंको स्वयंमें घनीभूत करनेके लिए सिद्ध होती है । इससे वास्तु दूषित होती है ।

अस्थि और स्नायुरोग होना

यांत्रिक पद्धतिसे भूमि पोंछनेसे निर्माण होनेवाली कष्टदायक तरंगोंके कारण पैरमें स्नायुरोग, अस्थिरोग, अस्थिक्षय, जोडोंमें वेदना इत्यादि कष्ट हो सकते हैं ।

अनिष्ट शक्तियोंसे अधिक कष्टकी आशंका होना

यंत्रसे भूमि पोंछते हुए शरीर अधिकांशतः झुका हुआ नहीं होता, हम खडे-खडे ही भूमि स्वच्छ करते हैं । ऐसेमें शरीरकी विशिष्ट मुद्राके अभावके कारण सूर्य नाडी जागृत नहीं होती । परिणामस्वरूप यंत्रसे भूमि पोंछनेकी कृतिद्वारा निर्मित कष्टदायक तरंगोंसे देहमंडलका भी रक्षण नहीं हो पाता । इस कारण जीवको अनिष्ट शक्तियोंसे कष्ट अधिक हो सकता है । इसलिए झुककर यंत्रविरहित, अर्थात् दाहिने हाथसे भूमि पोंछना अधिक लाभदायक है ।’
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)











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