Saturday 31 January 2015



POP JOHN PAUL ने मदर टरेसा को संत की उपाधि दी !!
आप पूछेंगे किस आधार पर दी ???
आधार ये है की मदर टरेसा ने एक बार किसी महिला के शरीर पर हाथ रखा और उस महिला का गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया तो POP का कहना था की मदर टरेसा मे चमत्कारिक शक्ति है
इसलिए वो संत होने के लायक है !
अब आप ही बताए क्या ये scientific है ???
की उन्होने ने किसी महिला पर हाथ रखा और उसका गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया ?
इस लिए मदर टरेसा संत होने के लायक है !
ये 100% superstition है अंध विश्वास है ! लेकिन भारत सरकार ने इसके खिलाफ कुछ नहीं किया !
अब अगर भारत के कोई साधू -संत ऐसा करे तो वो जेल के अंदर ! क्योंकि वो अंध विश्वास फैला रहे है !!
अब आप ही बताएं मदर टरेसा से बड़ा अंध विश्वास फैलाने वाला कौन होगा ??
अगर उसमे चमत्कारिक शक्ति होती तो उसने pop john paul के ऊपर हाथ क्यों नहीं रखा ???
अजीब बात ये है कि pop john paul को खुद parkinson नाम की बीमारी थी ! और 20 साल से थी !
(इस बीमारी मे व्यकित के हाथ पैर कांपते रहते हैं ! )
तो उस पर हाथ रख मदर टरेसा ने उसको ठीक क्यों नहीं किया ??
मदर टरेसा का एक मात्र उदेश्य सेवा के नाम पर भारत को ईसाई बनाना था !!
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और अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखें !
https://www.youtube.com/watch?v=49dhWxTKT7s


* चूने को प्रयोग करे और इसके गुण देखे .....!
* बिद्यार्थीओ के लिए चूना बहुत अच्छा है जो लम्बाई बढाता है गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला के खाना चाहिए,दही नही है तो दाल में मिला के खाओ,दाल नही है तो पानी में मिला के पियो - इससे लम्बाई बढने के साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है ।
* जिन बच्चों की बुद्धि कम काम करती है यानी कि मतिमंद बच्चे है उनकी सबसे अच्छी दवा है ‪#‎चूना‬ जिन बच्चो में बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे ।
* अगर किसी भाई के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे; और जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दवा है ये चूना ।चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है
* जैसे किसी को पीलिया हो जाये ये जॉन्डिस कहलाता है तो उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है ।
* बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो भी उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना । हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंद हुआ है उनकी सबसे अच्छी दवा है गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना ।
* ये चूना घुटने का दर्द को भी ठीक करता है ,कमर का दर्द ठीक करता है ,कंधे का दर्द ठीक करता है.
* एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो भी चूने से ठीक होता है । कई बार हमारे रीढ़की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दूरी बढ़ जाती है और उनमे गेप आ जाता है उसे भी ये चूना ही ठीक करता है रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चूने से ठीक होता है ।अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है ।चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।
* जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है और चूना केल्शियम का सबसे बड़ा भंडार है । गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए इसे अनार के रस में खिलाए आप अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे एक तो माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगा,और दूसरा फायदा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त होगा तीसरा फ़ायदा ये है कि बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया और अंतिम सबसे बड़ा फायदा ये है कि बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत ही इंटेलिजेंट और ब्रिलियेंट होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।
* जिसके भी मुंह में ठंडा -गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है .
* मुंह में अगर छाले हो गए है तो चूने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है ।
* जब शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए .एनीमिया का सुगम और सस्ता इलाज है . चूना पीते रहो गन्ने के रस में या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में - अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है और बहुत जल्दी खून बनता है बस एक कप अनार के रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ले ।
* जो लोग चूने से पान खाते है, वो बहुत होशियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चूना अमृत है .. तो चूना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चूने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था केन्सर करता है,पान में सुपारी मत डालिए सोंठ डालिए उसमे ,इलाइची डालिए ,लौंग डालिए.केशर डालिए ;ये सब डालिए पान में चूना लगा के पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।
* घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये और हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा खाइए घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे ।
* अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है।
* चूना घी और शहद को बराबर मात्रा में ले कर बिच्छू के काटे गए स्थान पे लगाने से जहर तुरंत ही उतर जाता है .
* हमारे राजीव भाई कहते है चूना खाइए पर चूना लगाइए मत किसको भी ये चूना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है क्युकि आजकल हमारे देश में चूना लगाने वाले बहुत है पर ये भगवान ने खाने के लिए दिया है ।
नोट:-
चूना बुझा हुआ ही ले जो पान की दुकान पे आसानी से मिल जाता है और मात्रा है गेहूं के दाने के बराबर ही ले दिन में एक बार आप इसे दही दाल या अनार के रस के साथ ले सकते है ...
• नानक से पहले कोई सिक्ख नहीं था ।
• जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था ।
• मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान नहीं था ।
• ऋषभदेव से पहले कोई जैनी नहीं था ।
• बुद्घ से पहले कोई बुद्धिस्ट नहीं था । 
• क्लार मार्क्स से पहले कोई वामपंथी नहीं था ।
लेकिन :--
कृष्ण से पहले ।
राम से पहले ।
जमद्गनि से पहले ।
अत्री से पहले ।
अगस्त्य से पहले ।
पतञ्जलि से पहले ।
कणाद से पहले ।
याज्ञवलक्य से पहले ।
सभी सनातन वैदिक धर्मी थे । क्योंकि एक व्यक्ति विशेष के द्वारा तो मत; पंथ; सम्प्रदाय; रिलिजन; आदि चला करते हैं ।
धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं चला करता । वह ईश्वर ने सभी मनुष्यों को समान रूप से वेद के रूप में संविधान दिया है । 
20 मिनिट में चीन ( बीजिंग ) और 5 मिनिट में पाकिस्तान खल्लास - --------
मिसाईल उपलब्धि में विश्व की 5 वीं शक्ति में भारत शुमार हुवा - भारतीय वैज्ञानिकों का देश को बड़ा तोहफा।
5,000 किमी रेंज वाली अग्नि 5 टेस्‍ट में पास - 20 मिनट में तबाह हो सकता है ( चीन ) बीजिंग और 5 मिनिट में पाकिस्तान।
बालासोर - शनिवार को भारत ने डिफेंस टेक्‍नोलॉजी के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल किया जब उसने बालासोर तट से 5,000 किमी वाली अग्नि 5 मिसाइल का सफल परीक्षण कर डाला।
इस मिसाइल के सफल टेस्‍ट के साथ ही भारत दुनिया का पांचवा ऐसा देश बन गया है जिसके पास इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) है।
नई दिल्‍ली और बीजिंग की दूरी 3,778 किमी है चीन के साथ ही भारत को आंख दिखाने वाले दूसरे देशों पाकिस्तान को यह साफ संदेश है कि अगर आंख दिखाई तो सिर्फ कुछ मिनटों में उनका नाम खाक में मिल सकता है।
अमेरिका, चीन और रूस के बराबर भारत अग्नि 5 भारत की पहली इस तरह की मिसाइल है जो आईसीबीएम है और जिसकी रेंज 5,000 किमी तक है।
भारत से पहले अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के पास यह मिसाइल टेक्‍नोलॉजी है।
क्‍या है खासियतें -
डीआरडीओ ने 4 साल में इस मिसाइल को बनाया है।
इस पर करीब 50 करोड़ रुपए की लागत आई है।
इस मिसाइल का वजन 50 टन और इसकी लंबाई 17.5 मीटर है।
यह एक टन का परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है।
सिर्फ 20 मिनट में यह मिसाइल 5,000 किमी की दूरी तय कर सकती है।
चीन और यूरोप के सभी ठिकाने इस मिसाइल की पहुंच में है।
अग्नि-5 दुश्मनों के सैटेलाइट नष्ट करने में भी उपयोगी है।
इससे पहले इस मिसाइल का दो बार सफल परीक्षण किया जा चुका है।
19 अप्रैल, 2012 को इसका पहला सफल परीक्षण किया गया था।
15 सितंबर, 2013 को दूसरा सफल परीक्षण किया गया।
इस बार इसे खास तरह के कनस्तर के सहारे लॉन्च किया गया।
सिर्फ प्रधानमंत्री के आदेश के बाद ही इस मिसाइल को छोड़ा जा सकता है।


अपने समय की हॉलीवुड की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर
फ़िल्म "The Vinci code" को भारत में क्यों बैन कर दिया गया ???
क्या कोई बता सकता है कि ओशो रजनीश ने ऐसा क्या कह दिया था जिससे उदारवादी कहे जाने वाले और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ढिंढोरा पीटने वाला अमेरिका रातों-रात उनका दुश्मन हो गया था और उनको जेल में डालकर यातनायें दी गयी और जेल में उनको "थैलियम" नामक धीमा जहर दिया गया जिससे उनकी बाद में मृत्यु हो गयी ??? क्यों वैटिकन का पोप बेनेडिक्ट उनका दुश्मन हो गया और पोप ने उनको जेल में प्रताड़ित किया ???
दरअसल इस सब के पीछे ईसाइयत का वो बड़ा झूठ है जिसके खुलते ही पूरी ईसाईयत भरभरा के गिर जायेगी और वो झूठ है प्रभु इसा मसीह के 13 वर्ष से 30 वर्ष के बीच के गायब 17 वर्षों का, आखिर क्यों इसा मसीह की कथित रचना बाइबिल में उनके जीवन के इन 17 वर्षों का कोई ब्यौरा नहीं है?
ईसाई मान्यता के अनुसार सूली पर लटका कर मार दिए जाने के बाद ईसा मसीह फिर जिन्दा हो गये थे; तो अगर जिन्दा हो गए थे तो वो फिर कहाँ गए इसका भी कोई अता पता बाइबिल में नहीं है ???
ओशो ने अपने प्रवचन में ईसा के इसी अज्ञात जीवनकाल के बारे में विस्तार से बताया था; जिसके बाद उनको ना सिर्फ अमेरिका से
प्रताड़ित करके निकाला गया बल्कि पोप ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उनको 21 अन्य ईसाई देशों में शरण देने से मना कर दिया गया।
असल में ईसाईयत/Christianity की ईसा से कोई लेना देना नहीं है। अविवाहित माँ की औलाद होने के कारण बालक ईसा समाज में अपमानित और प्रताडित करे गए जिसके कारण वे 13 वर्ष की उम्र में ही भारत आ गए थे। यहाँ उन्होंने हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव में शिक्षा दीक्षा ली। एक गाल पर थप्पड़ मारने पर दूसरा गाल आगे करने का सिद्धान्त सिर्फ भारतीय धर्मो में ही है, ईसा के मूल धर्म यहूदी धर्म में तो आँख के बदले आँख और हाथ के बदले हाथ का सिद्धान्त था। भारत से धर्म और योग की शिक्षा दीक्षा लेकर ईसा प्रेम और भाईचारे के सन्देश के साथ वापिस "जूडिया" पहुँचे। इस बीच रास्ते में उनके प्रवचन सुनकर उनके अनुयायी भी बहुत हो चुके थे। इस बीच प्रभु ईसा के 2 निकटतम अनुयायी "Peter" और "Christopher" थे। इनमें Peter उनका सच्चा अनुयायी था जबकि Christopher धूर्त और लालची था।जब ईसा ने जूडिया पहुंचकर अधिसंख्य यहूदियों के बीच अपने अहिंसा और भाईचारे के सिद्धान्त दिए तो अधिकाधिक यहूदी लोग उनके अनुयायी बनने लगे। जिससे यहूदियों को अपने धर्म पर खतरा मंडराता हुआ नजर आया तो उन्होंने रोम के राजा "Pontius Pilatus" पर दबाव बनाकर उसको ईसा को सूली पर चढाने के लिए विवश किया गया। इसमें Christopher ने यहूदियों के साथ मिलकर ईसा को मरवाने का पूरा षड़यंत्र रचा। हालाँकि राजा Pontius को ईसा से कोई बैर नहीं था और वो मूर्तिपूजक Pagan धर्म जो ईसाईयत और यहूदी धर्म से पहले उस क्षेत्र में काफी प्रचलित था और हिन्दू धर्म से अत्यधिक समानता वाला धर्म है का अनुयायी था। राजा अगर ईसा को सूली पर न चढाता तो अधिसंख्य यहूदी उसके विरोधी हो जाते और सूली पर चढाने पर वो एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या के दोष में ग्लानि अनुभव् करता तो उसने Peter और ईसा के कुछ अन्य विश्वस्त भक्तों के साथ मिलकर एक गुप्त योजना बनाई।
[[[ अब पहले मैं आपको यहूदियों की सूली के बारे में बता दूँ। ये विश्व का सजा देने का सबसे क्रूरतम और जघन्यतम तरीका है। इसमें व्यक्ति के शरीर में अनेक कीले ठोंक दी जाती हैं जिनके कारण व्यक्ति धीरे धीरे मरता है। एक स्वस्थ व्यक्ति को सूली पर लटकाने के बाद मरने में 48 घंटे तक का समय लग जाता है और कुछ मामलो में तो 6 दिन तक भी लगे हैं। ]]]]
गुप्त योजना के अनुसार ईसा को सूली पर चढाने में जानबूझकर देरी की गयी और उनको शुक्रवार को दोपहर में सूली पर चढ़ाया गया। और शनिवार का दिन यहूदियों के लिए शब्बत का दिन होता हैं इस दिन वे कोई काम नहीं करते। शाम होते ही ईसा को सूली से उतारकर गुफा में रखा गया ताकि शब्बत के बाद उनको दोबारा सूली पर चढ़ाया जा सके। उनके शरीर को जिस गुफा में रखा गया था उसके पहरेदार भी "Pagan" ही रखे गए थे। रात को राजा के गुप्त आदेश के अनुसार पहरेदारों ने Peter और उसके सथियों को घायल ईसा को चोरी करके ले जाने दिया गया और बात फैलाई गयी की " इसा का शरीर गायब हो गया और जब वो गायब हुआ तो पहरेदारों को अपने आप नींद आ गयी थी।"
इसके बाद कुछ लोगों ने पुनर्जन्म लिये हुए ईसा को भागते हुए भी देखा। असल में तब जीसस अपनी माँ Marry Magladin और अपने खास अनुयायियों के साथ भागकर वापिस भारत आ गए थे। इसके बाद जब ईसा के पुनर्जन्म और चमत्कारों के सच्चे झूठे किस्से जनता में लोकप्रिय होने लगे और यहदियों को अपने द्वारा उस चमत्कारी पुरुष/ देव पुरुष को सूली पर चढाने के ऊपर ग्लानि होने लगी और एक बड़े वर्ग का अपने यहूदी धर्म से मोह भंग होने लगा तो इस बढ़ते असंतोष को नियंत्रित करने का कार्य इसा के ही शिष्य Christopher को सौंपा गया क्योंकि Christopher ने ईसा के सब प्रवचन सुन रखे थे। तो यहूदी धर्म गुरुओं और christopher ने मिलकर यहूदी धर्म ग्रन्थ "Old Testament" और ईसा के प्रवचनों को मिलकर एक नए ग्रन्थ "New Testament अर्थात Bible" की रचना की और उसी के अधार पर एक ऐसे नए धर्म ईसाईयत अथवा Christianity की रचना करी गयी जो यहूदियों के नियंत्रण में था। इसका नामकरण भी ईसा की बजाये Christopher के नाम पर किया गया।
ईसा के इसके बाद के जीवन के ऊपर खुलासा जर्मन विद्वान् Holger Christen ( http:// en.wikipedia.org /wiki/ Holger_Kerste)ने अपनी पुस्तक Jesus Lived In India में किया है।
Christen ने अपनी पुस्तक में रुसी विद्वान Nicolai Notovich की भारत यात्रा का वर्णन करते हुए बताया है कि निकोलाई 1887 में भारत भ्रमण पर आये थे। जब वे जोजिला दर्र्रा पर घुमने गए तो वहां वो एक बोद्ध मोनास्ट्री में रुके, जहाँ पर उनको "Issa" नमक बोधिसत्तव संत के बारे में बताया गया। जब निकोलाई ने Issa की शिक्षाओं, जीवन और अन्य जानकारियों के बारे में सुना तो वे हैरान गए क्योंकि उनकी सब बातें जीसस/ईसा से मिलती थी। इसके बाद निकोलाई ने इस सम्बन्ध में और गहन शोध करने का निर्णय लिया और वो कश्मीर पहुंचे जहाँ जीसस की कब्र होने की बातें सामने आती रही थी।
निकोलाई की शोध के अनुसार सूली पर से बचकर भागने के बाद जीसस Turkey, Persia(Iran) और पश्चिमी यूरोप, संभवतया इंग्लैंड से होते हुए 16 वर्ष में भारत पहुंचे। जहाँ पहुँचने के बाद उनकी माँ marry का निधन हो गया था। जीसस यहाँ अपने शिष्यों के साथ चरवाहे का जीवन व्यतीत करते हुए 112 वर्ष की उम्र तक जिए और फिर मृत्यु के पश्चात् उनको कश्मीर के पहलगाम में दफना दिया गया। पहलगाम का अर्थ ही "गड़रियों का गाँव" हैं। और ये अद्भुत संयोग ही है कि यहूदियों के महानतम पैगम्बर हजरत मूसा ने भी अपना जीवन त्यागने के लिए भारत को ही चुना था और उनकी कब्र भी पहलगाम में जीसस की कब्र के साथ ही है। संभवतया जीसस ने ये स्थान इसीलिए चुना होगा क्योंकि वे हजरत मूसा की कब्र के पास दफ़न होना चाहते थे।
हालाँकि इन कब्रों पर मुस्लिम भी अपना दावा ठोंकते हैं और कश्मीर सरकार ने इन कब्रों को मुस्लिम कब्रें घोषित कर दिया है और किसी भी गैरमुस्लिम को वहां जाने की इजाजत अब नहीं है। लेकिन इन कब्रों की देखभाल पीढ़ियों दर पीढ़ियों से एक यहूदी परिवार ही करता आ रहा है।
इन कब्रों के मुस्लिम कब्रें न होने के पुख्ता प्रमाण हैं। सभी मुस्लिम कब्रें मक्का और मदीना की तरफ सर करके बनायीं जाती हैं जबकि इन कब्रों के साथ ऐसा नहीं है। इन कब्रों पर हिब्रू भाषा में "Moses" और "Joshua" भी लिखा हुआ है जो कि हिब्रू भाषा में क्रमश मूसा और जीसस के नाम हैं और हिब्रू भाषा यहूदियों की भाषा थी। अगर ये मुस्लिम कब्र होती तो इन पर उर्दू या अरबी या फारसी भाषा में नाम लिखे होते।
सूली पर से भागने के बाद ईसा का प्रथम वर्णन तुर्की में मिलता है। पारसी विद्वान्
F Mohammed ने अपनी पुस्तक Jami-Ut-Tuwarikमें लिखा है कि Nisibi (Todays Nusaybin in Turky) के राजा ने जीसस को शाही आमंत्रण पर अपने राज्य में बुलाया था। इसके आलावा तुर्की और पर्शिया की प्राचीन कहानियों में Yuj Asaf नाम के एक संत का जिक्र मिलता है। जिसकी शिक्षाएं और जीवन की कहनियाँ ईसा से मिलती हैं।
यहाँ आप सब को एक बात का ध्यान दिला दू की इस्लामिक नाम और देशों के नाम पढ़कर भ्रमित न हो क्योंकि ये बात इस्लाम के अस्तित्व में आने से लगभग 600 साल पहले की हैं। यहाँ आपको ये बताना भी महत्वपूर्ण है कि कुछ विद्वानों के अनुसार ईसाइयत से पहले "Alexendria" तक सनातन और बौध धर्म का प्रसार था।
इसके आलावा कुछ प्रमाण ईसाई ग्रंथ Apocrypha से भी मिलते हैं। ये Apostles के लिखे हुए ग्रंथ हैं लेकिन चर्च ने इनको अधिकारिक तौर पर कभी स्वीकार नहीं किया और इन्हें सुने-सुनाये मानता है।
Apocryphal (Act of Thomas) के अनुसार सूली पर लटकाने के बाद कई बार जीसस sant Thomus से मिले भी और इस बात का वर्णन फतेहपुर सिकरी के पत्थर के शिलालेखो पर भी मिलता है। इनमे Agrapha शामिल है जिसमे जीसस की कही हुई बातें लिखी हैं जिनको जान बुझकर बाइबिल में जगह नहीं दी गयी और जो जीसस के जीवन के अज्ञातकाल के बारे में जानकारी देती हैं। इसके अलावा उनकी वे शिक्षाएं भी बाइबिल में शामिल नहीं की गयी जिनमे कर्म और पुनर्जन्म की बात की गयी है जो पूरी तरह पूर्व के धर्मो से ली गयी है और पश्चिम के लिए एकदम नयी चीज थी।
लेखक Christen का कहना है की इस बात के 21 से भी ज्यादा प्रमाण हैं कि जीसस Issa नाम से कश्मीर में रहा और पर्शिया व तुर्की का मशहूर संत Yuj Asaf जीसस ही था। जीसस का जिक्र कुर्द लोगों की प्राचीन कहानियों में भी है।
Kristen हिन्दू धर्म ग्रंथ भविष्य पुराण का हवाला देते हुए कहता है कि जीसस कुषाण क्षेत्र पर 39 से 50 AD में राज करने वाले राजा शालिवाहन के दरबार में Issa Nath नाम से कुछ समय अतिथि बनकर रहा। इसके अलावा कल्हण की राजतरंगिणी में भी Issana नाम के एक संत का जिक्र है जो डल झील के किनारे रहा। इसके अलावा ऋषिकेश की एक गुफा में भी Issa Nath की तपस्या करने के प्रमाण हैं। जहाँ वो शैव उपासना पद्धति के नाथ संप्रदाय के साधुओं के साथ तपस्या करते थे। स्वामी रामतीर्थ जी और स्वामी रामदास जी को भी ऋषिकेश में तप करते हुए उनके दृष्टान्त होने का वर्णन है।
विवादित हॉलीवुड फ़िल्म The Vinci Code में भी यही दिखाया गया है कि ईसा एक साधारण मानव थे और उनके बच्चे भी थे। इसा को सूली पर टांगने के
बाद यहूदियों ने ही उसे अपने फायदे के लिए भगवान बनाया। वास्तव में इसा का Christianity और Bible से कोई लेना देना नहीं था। आज भी वैटिकन पर
"Illuminati" अर्थात यहूदियों का ही नियंत्रण है और उन्होंने इसा के जीवन की सच्चाई और उनकी असली शिक्षाओं कोको छुपा के रखा है। वैटिकन की लाइब्रेरी में बाहर के लोगों को इसी भय से प्रवेश नहीं करने दिया जाता क्योंकि अगर ईसा की भारत से ली गयी शिक्षाओं, उनके भारत में बिताये गए समय और उनके बारे में बोले गए झूठ का अगर पर्दाफाश हो गया तो ये ईसाईयत का अंत होगा और
Illuminati की ताकत एकदम कम हो जायेगी।
भारत में धर्मान्तरण का कार्य कर रहे वैटिकन/Illuminati के एजेंट ईसाई मिशनरी भी इसी कारण से ईसाईयत के रहस्य से पर्दा उठाने वाली हर चीज का पुरजोर विरोध करते हैं। जीसस जहाँ खुद हिन्दू धर्मं/भारतीय धर्मों को मानते थे, वहीँ उनके नाम पर वैटिकन के ये एजेंट भोले-भाले गरीब लोगों को वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ लेकर जा रहे हैं जिन्होंने प्रभु Issa Nath को तड़पा तड़पाकर मारने का प्रयास किया था। जिस सनातन धर्म को प्रभु Issa ने इतने कष्ट सहकर खुद आत्मसात किया था उसी धर्म के भोले भाले गरीब लोगों को Issa का ही नाम लेकर वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ ले जा रहा है।
साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक गुफा में पाई गयी महादेव की ६००० साल पुराणी ये रुद्रावतार प्रतिमा
ये है हम हिंदुओ के महादेव जो हर जगह है, कितना भी छिपा लो मिल ही जायंगें इसे ग्रेनाइट नाम के अत्यंत कठोर चट्टान को तराश कर बनाई गयी है, इसे खोजने वाले पुरात्वेत्ता हैरान है की इतनी पुराणी मूर्ति को इतने उन्नत तरीके से कैसे बनाई गयी l
इस से सिद्ध होता है कि सनातन धर्म का परचम पुरे विश्व् में था। अपने स्वार्थपूर्ति हेतु हमारे इतिहास को बदल दिया गया।
जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐॐ—
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— Chandresh Pratap Singh और 80 अन्य लोगों के साथ.


प्राचीन वैदिक भारत की विश्व को देन
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1. जब कई संस्कृतिया 5000 साल पहले ही घुमंतू जंगली और खानाबदोश थी, तब भारतीय सिंधु घाटी (सिंधुघाटी सभ्यता) में
हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की।
2. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का अध्ययन प्राचीन भारत में ही आरंभ हुआ था।
3. ‘स्थान मूल्य प्रणाली’ और ‘दशमलव प्रणाली’ का विकास भारत में 100 बी सी में हुआ था।
4. शतरंज की खोज भारत में की गई थी।
5. विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बनें हैं यह भव्य मंदिर राजा राज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ए डी और 1009 ए डी के दौरान) निर्मित किया गया था।
6. सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस.खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्व
करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस
खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था।
आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु
इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्छे काम
लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम
दोबारा जन्म के चक्र में डाल देते हैं।
7. विश्व का सबसे प्रथम विश्वविद्यालय 700.बी सी में तक्षशिला में स्थापित किया गया था।
इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्ययन करते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय चौथी शताब्दी में स्थापित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है।
8. आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्सा शाखा है। शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक ने 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।
9. नौवहन की कला और नौवहन का जन्म 6000
वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्कृत शब्द नव गति से उत्पन्न हुआ है। शब्द नौ सेना भी संस्कृत शब्द नोउ से हुआ।
10. भास्कराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।
11. भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा ‘पाई’ का मूल्य ज्ञात किया गया था और उन्होंने जिस संकल्पना को समझाया उसे पाइथागोरस का प्रमेय करते हैं। उन्होंने इसकी खोज छठवीं शताब्दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी।
12. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था। चतुष्पद समीकरण का उपयोग 11वीं शताब्दी में श्री धराचार्य द्वारा किया गया था।
ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसे बड़ी संख्या 106 थी जबकि हिन्दुओं ने 10*53 जितने बड़े अंकों का उपयोग (अर्थात 10 की घात 53), के साथ विशिष्ट नाम 5000 बीसी के दौरान किया। आज भी उपयोग की जाने वाली सबसे बड़ी संख्या टेरा: 10*12 (10 की घात12) है।
13. सुश्रुत को शल्य चिकित्सा (surgery) का जनक माना जाता है। लगभग 2600 वर्ष पहले सुश्रुत और उनके सहयोगियों ने मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगना, शल्य क्रिया द्वारा प्रसव, अस्थिभंग जोड़ना, मूत्राशय की पथरी, प्लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्क की शल्य क्रियाएं आदि की।
14. निश्चेतक का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में भली भांति ज्ञात था।
शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, शरीर क्रिया विज्ञान, इटियोलॉजी, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान आदि विषय भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पाए जाते हैं।
15. युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में
किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई।
16. योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यहां 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद हैं।
अब यहां एक पोस्ट मे शून्य, बाइनरी संख्या, परमाणु बम का आईडिया, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का आईडिया,विमान शास्त्र, योग विज्ञान,वास्तुशास्त्र ,खगोलविज्ञान,व्यंजन पाक कला,नृत्य कला,संगीत कला जैसी सैकड़ो अमूल्य पद्धतियो पर लिखना संभव नही है.
इसलिए देखा जाए तो वास्तव मे सनातन धर्म और प्राचीन भारतीय संस्कृति एक ऐसा महासागर है ,जिसमे जितनी बार डुबकी लगाई हर बार एक नया रत्न बाहर निकलता है.
ब्रह्मांड के कई ग्रहों पर मौजूद है एलियंस, पुराणों में छिपा है रहस्य
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नासा के खलोगशास्त्री केविन हैंड कहते हैं- अगले 20 वर्षों में हम यह पता लेंगे कि ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं। 2018 में पृथ्वी-सूर्य के बीच एल-2 प्वाइंट पर शक्तिशाली टेलिस्कोप स्थापित किया जाना है, जो दूसरे सूर्यों-ग्रहों की तस्वीर देगा। अमेरिका में एलियन या बिगफुट को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन के लिए कई केंद्र काम कर रहे हैं।
ब्रह्माण्डा बहवा: सन्ति, ब्रह्माद्या अपि तत्रगा: अर्थात् ब्रह्माण्ड अनेक हैं और उन-उन ब्रह्माण्डों के ब्रह्मा आदि देवता भी अनेक हैं। देवी पुराण (63.23) के इस वाक्य से सिद्ध है कि ब्रह्माण्डों की संख्या कम नहीं है। इसलिए जैसी हमारी धरती है, जैसे इस धरती के जीव हैं, वैसे अन्यत्र भी सम्भावना है। हमारा दर्शन कहता है कि जब ईश्वर सृष्टि करना चाहता है तो परमाणुओं में क्रिया उत्पन्न हो जाती है, दो परमाणु मिलकर द्वयणुक की तथा उन दोनों से त्र्यणुक की उत्पत्ति होते-होते-असंख्य परमाणुओं के मेल से पृथ्वी की रचना होती है। स्पष्ट है, अरबों-खरबों आकाशगंगाओं के बीच महाविस्फोट वाली घटनाएं होती रही होंगी और समानान्तर ब्रह्माण्डों का निर्माण भी होता रहा होगा।
जब अनेक ब्रह्माण्ड होंगे तो हमारे जैसे जीव भी वहां होंगे ही। हां, वातावरण भौगोलिक संरचनाएं समान होने से साम्य हो, पर यह कैसे कहा जा सकता है कि जिस ब्रह्माण्ड के हम एक अंग हैं, दूसरे ब्रह्माण्ड के वासी हम से कम या अधिक विकसित हैं। जैसे हम अन्य ग्रहों के बारे में खोज कर रहे हैं, वे भी करते होंगे, लेकिन देवी पुराण के अनुसार महाकाली ने जब कहा कि पता लगाओ कि किस ब्रह्माण्ड के ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और इन्द्र मेरे लोक में दर्शनार्थ आए हैं तो वे देव चकरा गए। तो हमारी क्या स्थिति होगी।
हमारे यहां धरती से लेकर सत्य तक सात लोक तथा सात पाताल- इन चौदह भुवनों की कल्पना है। सत्यलोक, ब्रह्मलोक है तो उससे ऊपर भी शिव, विष्णु के लोक हैं तथा जहां-जहां जो-जो लोक बताए गए हैं, वहां-वहां के शासक और शासित की भी बात है। फिर तो आज के विज्ञान की सम्भावनाओं को पूर्णत: नकारा हीं जा सकता या यों कहे कि आधुनिक विज्ञान की खोज भारतीय भावनाओं के करीब ही है।
सोचें, यदि पर ग्रहवासी हमसे मिल जाएं तो कितना आश्चर्य होगा, अगर वे दूसरे ग्रह के हमारे जैसे प्रबुद्ध मानव ही निकलें तो हम दोनों का सम्बन्ध स्थापित करने में कितनी कठिनाई होगी। भाव, भाषा, भोजन, रहन-सहन सबसे विलग फिर भी जैसे एकाएक कोई व्यक्ति विश्व के किसी ऐसे कोने में पहुंच जाए, जहां उसकी बात को कोई नहीं समझने वाला हो तो क्या धीरे-धीरे आपसी मेल विचारों का आदान-प्रदान नहीं हो सकता? हो सकता है, क्योंकि हमारा धर्म तो यह मानता है कि जड़-चेतन सबसे हमारा सम्बन्ध है।
चूंकि सभी ईश्वरीय रचना के अंग है, इसलिए तर्पणीय है- 'अाब्रह्म-स्तम्भ-पर्यन्तम्' अर्थात सूक्ष्म से स्थूल तक सबके अंग हम हैं और वे हमारे अंग हैं, एेसे में तथाकथित एलियन ही सही, हमारे बीच आएं और साथ रहना शुरू कर दें तो दोनों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भ्रातृत्व का विकास संभव है।
पहले अमेरिका हमसे बहुत दूर था। विज्ञान ने एेसा जोड़ा कि कहां कौन क्या कर रहा है, सब जान लेते हैं। वस्तुत: 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की भारतीय अवधारणा प्रत्येक पिण्ड में ही ब्रह्माण्ड का साक्षात्कार करती है, इसलिए हमारे अंदर भी महाविस्फोट, सृष्टि, विकास की क्रिया चलती रहती है। देव-दानवों का युद्ध, अनेक प्रतिकृतियों की उत्पत्ति भी होती रहती है। समन्वयवादी हमारी संस्कृति दुराव नहीं, लगाव को स्वीकार करती है।
ऐसे में अनेक ब्रह्माडों और परग्रहवासियों से परिचय प्राप्त हो जाए तो हमारा विकास कार्य और गतिमान हो जाएगा। फिर तो जो आज के दूर देश है, वे कल के पड़ोसी और अन्य ब्रह्माण्डीय देश अमेरिका-इंग्लैण्ड जैसे दूरस्थ हो जाएंगे, परन्तु दूरी-दूरी नहीं होती। दूरस्थोअपिन दूरस्थो यो यस्य हृदये स्थित:।


मानव इतिहास के 10 लाख सालों में एक ही समय पर इतना सारे महान वैज्ञानिक कैसे पैदा हो गए..न इससे पहले न इसके बाद कोई नया मौलिक सूत्र या नया नियम नहीं आया!!
--( ये सवाल बिलकुल बाजिब है । हमारे मनमें भी यह सवाल उठा था लेकिन आगेकी बात पढी तो किस्सा समज में आ गया ।)----
ऐसा लगता है जैसे उस समय ब्रिटिश, पड़ोसी व मित्र देशों में विज्ञान की लौटरी लग गई हो ! ये सवाल तो कोई हिन्दुस्तानी ही उठा सकता है... समझदार लोग अपने ऊपर गर्व करें ..बाकी पुरातन भारत का इतिहास पढ़े ...कुछ प्रारंभिक तथ्य प्रस्तुत है -
जिस समय न्यूटन के पूर्वज जंगली लोग थे, उस समय महर्षि भाष्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर एक पूरा ग्रन्थ रच डाला था किन्तु आज हमें सिखाया जाता है कि ब्रिटेन के उस वैज्ञानिक ने ये बनाया जरमनी के उस वैज्ञानिक ने वो बनाया ....
जबकि सच ये है कि भारत से चुरा कर ले जाए ग्रन्थ इन लोगो के हाथ लग गए थे ..और ये उन पर टूट पड़े थे ..हमारे विज्ञान में कोई पेटेंट कराने की जरूरत नहीं थी क्यूंकि तब ब्रहम्मांड के रहस्य हम ही जानते थे किन्तु चोर ने जब चोरी कर ली ...तो चोरी के माल को अपना बताने के लिए वो कागजी रजिस्ट्रेशन का सहारा लेने लगा ....
पिता भारत, मां भारती का कोमेन्ट
आप को अचरज हुआ लेकिन ये सच्चाई है । वो रेनेसां पिरियड था, युरोप में नव जागृति काल । प्रिन्टिंग टेक्नोलोजी और प्रिन्ट मिडिया आ जाने से सामान्य मानवी तक ज्ञान पहुंचने लगा । पढाई लिखाई पर ध्यान गया, बडे बडे पुस्तक छपने लगे, बडे बडे विचारक पैदा होने लगे, बुध्धिजीवियों के क्लब खूलने लगे । आज की तरह ऐसा नही होता था की मायकल दारू पी के दंगा करते थे । वो सब आपस में मिल के ज्ञान की, अपने नए विचार की, अपनी नयी खोज की बातें करते थे । नया ज्ञान था ना, तो उत्साह था । उस युग को ज्ञान का विस्फोट युग भी कहा जाता है । आज की दुनिया को जो भी अच्छा बूरा मिला उस समय का परिणाम है ।
भारत के विज्ञान के लिए इस तरह इतराना ठीक नही । उन लोगों के पूरखें भी सनातनी हिन्दु ही थे, हिन्दु ज्ञान उनकी लाइब्रेरी में पहले से ही मौजुद था, उन की युरोपिय भाषा में ही था सब । ग्रीस का हिन्दुत्व सायन्स पर ज्यादा भार देता था, भगवान कृष्ण का हिन्दुत्व था । द्वारिका डुबने से पहले भगवान के वारिस यादव सेना लेकर ग्रीस तक अश्वमेध का घोडा लेकर चले गए थे । भारत के धनपतियों ने इजराईल के धनपतियों की संगत में आकर सोने के सिक्कों के बल पर भारत के हिन्दुत्व को आसमान की सैर करने को भेज दिया, योग और जुठे चमत्कारों में डाल दिया । जब की जमीनी काम के लिए ग्रीस और युरोप के हिन्दुत्व को खतम करने के बाद धनपतियों के प्यादे इसाईयों ने हिन्दुओं का सायन्सवाला हिस्सा अपने पास रख लिया और बाकी बहुत सा ज्ञान एलेक्जांड्रिया लाईब्रेरी में था वो पूरी लायब्रेरी ही जला डाली ।
पता नही कब भारत के लोग आसमान से जमीन पर आएन्गे । अपना संभाल नही सके और दुसरे लोग करते हैं तो अपना होने का दावा ठोक देते हैं । वो भी सनातनी लोगों के वारिस है, धनपति राक्षसों ने उनकी आस्था बदल दी है और हिन्दुओं के दुश्मन बनाकर अपने पक्ष में कर लिए हैं ।
ये सत्य है उस नव जागृतिकाल में बडे बडे विज्ञानिक और विचारक पैदा हो गए थे लेकिन तुरंत ही धनपति राक्षस डर गए थे और हरकत में आ गए थे । अच्छे अच्छों को खरीद लिया और मिडिया को अपने कंट्रोल में कर लिया था । विज्ञानिकों को अपने नौकर बना कर अपने व्यापार हेतु खोजबीन करवाने लगे जो आज तक जारी है । बुध्धिजीवियों को खरीद कर हिन्दुत्व खतम करने के काम में लगा दिया ।
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दोनो की बात अपने अपने हिसाब से सही है । साला कुछ ही समय में इतने विज्ञानिक पैदा कैसे हो सकते थे !
महान विज्ञानिक निकोला टेस्ला प्रेरणा के लिए एक ग्रंथ हाथ में लेकर बैठा रहता था । वो कोइ इसाई का लिखा ग्रन्थ नही था, हिन्दु ग्रंथ था । हमारा हिन्दुत्व या उनका हिन्दुत्व कहने का कोइ मतलब नही है । हिन्दुत्व सनातन है और सर्वव्यापी था । आज उसका व्याप घटकर आधे भारत में भी नही रहा है ।
हिटलर का स्वस्तिक भी उसके पूरखों का था । उस के पूरखे इसाई बन गए थे वो उसका दुर्भाग्य था । 
हिन्दुस्थान वालों को समजना चाहिए कि चिजें भारत की ना कह कर हिन्दुत्व की है ऐसा मानना चाहिए । युरोप और मिडल इस्ट भी कभी हिन्दुओं का स्थान था । अगर आज भी नही संभले, जमीन पर नही आए तो ये व्यापारियों का दानव समाज हमारे बचे हुए हिन्दुंओं का स्थान भी छीन लेंगे ।
इन 6 लोगों के श्राप के कारण हुआ था रावण का सर्वनाश...
हम सब जानते है की रावण बहुत ही पराक्रमी योद्धा था। उसने अपने जीवन में अनेक युद्ध किए। धर्म ग्रंथों के अनुसार उसने अपने जीवन में लड़े कई युद्ध तो अकेले ही जीत लिए थे। इतना पराक्रमी होने के बाद भी उसका सर्वनाश कैसे हो गया? रावण के अंत का कारण श्रीराम की शक्ति तो थी ही। साथ ही, उन लोगों का श्राप भी था, जिनका रावण ने कभी अहित किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण को अपने जीवनकाल में मुख्यतः 6 लोगों से श्राप मिला था। यही श्राप उसके सर्वनाश का कारण बने और उसके वंश का समूल नाश हो गया। जानिए किन-किन लोगों ने रावण को क्या-क्या श्राप दिए थे-
1- रघुवंश (भगवान राम के वंश में) में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।
2- एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।
3- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई। अत: तुम भी स्त्री की वासना के कारण मारे जाओगे।
4- एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।
5- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं। लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो रावण का मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएंगे।
6- रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।...
— Chhotelal Gupta और 58 अन्य लोगों के साथ.

मनु स्मृति को भला-बुरा कहते सुना है| दलित भाई अपनी दुर्दशा का कारण मुख्य रूप से मनुस्मृति को ही मानते हैं और जितने भी उनके साथ जाती के आधार पर अत्याचार हुये या हो रहे है उसका दोष मनु को देते है क्यूँ की मनु ने ही वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया और समाज को चार भागो में बांटा|
आज अगर दलित गरीब है , पिछड़ा है, अशिक्षित है तो उसका दोष मनुवाद को समझता है.....ऐसी ही मानसिकता स्वर्ण की भी है | दलितों को अछूत मानना, उनको मंदिर में प्रवेश न करने देना, शिक्षा से वंचित रखना,सामाजिक तथा आर्थिक शोषण जैसे घ्रणित कार्य करने के लिए मनुस्मृति का सहारा लेता है| ऐसी मानसिकता आम स्वर्ण की ही नहीं बल्कि जो अपने आप को शिक्षित और समझदार कहते है उनकी भी है वो अपने आपको जन्म से श्रेष्ठ मान लेते है|
इसी कथित "मनुवाद" के कारण सनातन धर्म के कई टुकड़े हो गए ....मनुस्मृति जलाई गयी....बड़ी संख्या में धर्मांतरण हुये.... और विदेशी मतों द्वारा आज भी हो रहे |
भारत में लगभग १००० साल तक विदेशियों का शासन रहा है ८०० साल मुगलों का और २०० साल ईशाइयों का | मुगलों ने हजारो मंदिर तोड़े....भारतीय संस्कृति को नष्ट किया .....जबरन इस्लाम कबूलावाया....ताक्शिला (takshila ) जैसे विश्वविख्यात विद्यालय को नष्ट करदिया.....तो क्या ये संभव नहीं है की उन्होंने मनुसमृति में फेरबदल कर दी हो ताकि हिन्दू समाज बंटा रहे और वो आसानी से राज कर सके?
मनु जिसको प्रथम पुरुष भी कहा जाता है सब उसकी ही संतान कही जाती है तो वो भला जाती क्यों बनाने लगा? क्या कोई बाप अपने एक बेटे को दलित और एक बेटे को स्वर्ण बना सकता है?
क्या कोई बाप अपने एक बेटे को मंदिर का मालिक बना दे और दूसरे को मंदिर में प्रवेश करने पर उसको खौलते तेल में डालने को कहे?क्या कोई बाप अपने एक बेटे को वेदों को पढने के लिए कहे और दूसरा बेटा अगर गलती से सुन भी ले तो उसके कानो में पिघला शीशा डालने को कहे?
कुछ उदहारण मनु स्मृति से दे रहा हूँ जिसमे जन्म आधारित जाती को नाकारा गया है| शुद्र -क्षत्रिय -वेश्य -ब्रह्मण ये कार्य आधारित वर्ण है न की जन्म आधारित|
१- मनु स्मृति (10 .65 ) के अनुसार ब्रह्मण शुद्र का कार्य कर सकता है और शुद्र ब्रह्मण का( इसी प्रकार क्षत्रिय वैश्य का)
२-मनु स्मृति (4 :245 ) यदि ब्रह्मण बुरी सांगत या आचरण करता है तो वो शुद्र है|
३-मनु स्मृति (2 :238) यदि कोई शुद्र वर्ण में पैदा हुआ पर ज्ञानी है तो वो ब्रह्मण वर्ण में विवाह कर सकता है |
४-मनु स्मृति (2 ;28 ) ब्रह्मण उसे कहा गया है जिसके पास दया, ज्ञान, शुद्ध आचरण, शिक्षा देने और ग्रहण कने की क्षमता, योग, सयमं अदि गुण हो अन्यथा वो ब्रह्मण नहीं है|
इसी तरह कुछ और उधर जिसमे एक वर्ण का व्यक्ति दूसरा वर्ण ग्रहण कर सकता था.
१-मातंग ऋषि जोकि एक चंडाल के पुत्र थे ब्रह्मण बने ( महाभारत, अनुशासन पर्व अध्याय ३)
२-रावण ब्रह्मण कुल में पैदा होने के बाद भी राक्षस कहलाया|
३-त्रिशंकु क्षत्रिये कुल में पैदा होने के बाद भी चंडाल कहलाया|
रोज पिएंगे तांबे के बर्तन
का पानी तो इन 10 बड़े
रोगों की छुट्टी हो जाएगी
कहते हैं कि रात को तांबे के पात्र में
पानी रख दें और सुबह इस पानी को पिएं
तो अनेक फायदे होते हैं। आयुर्वेद में कहा गया है
कि यह पानी शरीर के कई दोषों को शांत
करता है। साथ ही, इस पानी से शरीर के
जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं। रात को इस
तरह तांबे के बर्तन में संग्रहित
पानी को ताम्रजल के नाम से जाना जाता है।
ये ध्यान रखने वाली बात है कि तांबे के बर्तन में
कम से कम 8 घंटे तक रखा हुआ
पानी ही लाभकारी होता है। जिन
लोगों को कफ की समस्या ज्यादा रहती है, उन्हें
इस पानी में तुलसी के कुछ पत्ते डाल देने चाहिए।
बहुत कम लोग जानते हैं कि तांबे के बर्तन
का पानी पीने के बहुत सारे फायदे हैं। आज हम
आपको बताने जा रहे हैं तांबे के बर्तन में रखे
पानी को पीने से होने वाले कुछ बेहतरीन
फायदों के बारे में...
स्किन को बनाए स्वस्थ-
अधिकतर लोग
हेल्दी स्किन के लिए तरह-तरह के कॉस्मेटिक्स
का उपयोग करते हैं। वो मानते हैं कि अच्छे
कॉस्मेटिक्स यूज करने से त्वचा सुंदर हो जाती है,
लेकिन ये सच नहीं है। स्किन पर सबसे अधिक
प्रभाव आपकी दिनचर्या और खानपान
का पड़ता है। इसीलिए अगर आप अपनी स्किन
को हेल्दी बनाना चाहते हैं तो तांबे के बर्तन में
रातभर पानी रखें और सुबह उस पानी को पी लें।
नियमित रूप से इस नुस्खे को अपनाने से स्किन
ग्लोइंग और स्वस्थ लगने लगेगी।
थायराइड को करता है नियंत्रित-
थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण
थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के
प्रमुख लक्षणों में तेजी से वजन घटना या बढ़ना,
अधिक थकान महसूस होना आदि हैं।
थायराइड एक्सपर्ट मानते है कि कॉपर के स्पर्श
वाला पानी शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन
को बैलेंस कर देता है। यह इस
ग्रंथि की कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित
करता है। तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से
रोग नियंत्रित हो जाता है।
गठिया में होता है फायदेमंद-
आजकल कई
लोगों को कम उम्र में ही गठिया और जोड़ों में
दर्द की समस्या सताने लगती हैं। यदि आप
भी इस समस्या से परेशान हैं तो रोज तांबे के
पात्र का पानी पिएं।
गठिया की शिकायत होने पर तांबे के बर्तन में
रखा हुआ जल पीने से लाभ मिलता है। तांबे के
बर्तन में ऐसे गुण आ जाते हैं, जिनसे बॉडी में यूरिक
एसिड कम हो जाता है और गठिया व जोड़ों में
सूजन के कारण होने वाले दर्द में आराम
मिलता है।
हमेशा दिखेंगे जवान-
कहते हैं, जो पानी ज्यादा पीता है उसकी स्किन
पर अधिक उम्र में भी झुर्रियां दिखाई
नहीं देती हैं।
ये बात एकदम सही है, लेकिन क्या आप जानते हैं
कि अगर आप तांबे के बर्तन में जल को रखकर पिएं
तो इससे त्वचा का ढीलापन आदि दूर
हो जाता है। डेड स्किन भी निकल जाती है और
चेहरा हमेशा चमकता हुआ दिखाई देता है।
पाचन क्रिया को ठीक करता है-
एसिडिटी या गैस या पेट की कोई
दूसरी समस्या होने पर तांबे के बर्तन
का पानी अमृत की तरह काम करता है।
आयुर्वेद के अनुसार, अगर आप अपने शरीर से
विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना चाहते
हैं तो तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे रखा हुआ
जल पिएं। इससे राहत मिलेगी और
पाचन की समस्याएं भी दूर होंगी।
खून की कमी करता है दूर-
एनीमिया या खून की कमी एक ऐसी समस्या है
जिससे 30 की उम्र से अधिक की कई भारतीय
महिलाएं परेशान हैं। कॉपर के बारे में यह तथ्य
सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है कि यह शरीर
की अधिकांश प्रक्रियाओं में बेहद आवश्यक
होता है।
यह शरीर के लिए आवश्यक पोषक
तत्वों को अवशोषित करने का काम करता है।
इसी कारण तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने
से खून की कमी या विकार दूर हो जाते हैं।
दिल को बनाए हेल्दी -
तनाव आजकल
सभी की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।
इसीलिए
दिल के रोग और तनाव से ग्रसित
लोगों की संख्या तेजी बढ़ती जा रही है।
यदि आपके साथ भी ये परेशानी है तो तो तांबे के
जग में रात को पानी रख दें।
सुबह उठकर इसे पी लें। तांबे के बर्तन में रखे हुए
जल को पीने से पूरे शरीर में रक्त का संचार
बेहतरीन रहता है। कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में
रहता है और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं।
कैंसर से लड़ने में सहायक-
कैंसर होने पर
हमेशा तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल
पीना चाहिए। इससे लाभ मिलता है। तांबे के
बर्तन में रखा हुआ जल वात, पित्त और कफ
की शिकायत को दूर करता है। इस प्रकार के जल
में एंटी-ऑक्सीडेंट भी होते हैं, जो इस रोग से
लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, कॉपर कई
तरीके से कैंसर मरीज की हेल्प करता है। यह धातु
लाभकारी होती है।
सूक्ष्मजीवों को खत्म करता है-
तांबे
की प्रकृति में ऑलीगोडायनेमिक के रूप में
( बैक्टीरिया पर धातुओं की स्टरलाइज
प्रभाव ) माना जाता है। इसीलिए इसके बर्तन
में रखे पानी के सेवन से हानिकारक
बैक्टीरिया को आसानी से नष्ट
किया जा सकता है।
इसमें रखे पानी को पीने से डायरिया, दस्त और
पीलिया जैसे रोगों के कीटाणु भी मर जाते हैं,
लेकिन पानी साफ और स्वच्छ होना चाहिए।
वजन घटाने में मदद करता है -
कम उम्र में वजन
बढ़ना आजकल एक कॉमन प्रॉब्लम है। अगर कोई
भी व्यक्ति वजन घटाना चाहता है
तो एक्सरसाइज के साथ ही उसे तांबे के बर्तन में
रखा हुआ पानी पीना चाहिए।
इस पानी को पीने से बॉडी का एक्स्ट्रा फैट कम
हो जाता है। शरीर में कोई
कमी या कमजोरी भी नहीं आती है।
बोतल का पानी सेहत का दुश्मन है ।
आप को लगता होगा कि बोतलबंद पानी स्वाथ्य के लिए अच्छा होगा, लेकिन आप गलत हो । एक नए अभ्यास से पता चला है कि पानी के साथ साथ आदमी जहर भी पीता है ।
हाल ही में, एक अनुसंधान अंतरगत मुंबई की 18 कंपनियों की 5-5 बोतल के नमूने का अभ्यास भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर द्वारा किया गया था और बोतलबंद पानी के नमूनों में हानिकारक रसायनों की मौजूदगी का पता लगाया था । पता चला कि 1 लीटर पानी में 27% ब्रोमेट पाया गया है ।
ब्रोमेट की उच्च मात्रा के साथ पैक पानी पीने से कैंसर, पेट के संक्रमण और बाल गिरने जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है । अभी तक माना जाता था कि केवल 10% ब्रोमेट ही पानी की बोतल में होता है ।
WHO के अनुसार, पानी की पॅक में केवल चार मिलीग्राम ब्रोमेट ही चल सकता है ।
खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने कहा है कि हम इस रिपोर्ट को देखेन्गे और पानी को सुरक्षित बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे ।
अमरिका के एक राज्य में बोतल के पानी पर रोक लगाई गई है । ऑस्ट्रेलिया की एक जगह भी रोक है, भारत के मणीपूर के एक गांव में तो पानी की बोतल बेचना भी गुनाह माना जाता है ।
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ब्रोमेट तो आज नया नाम सुना । कंपनी और उसके गोडाउन से, रोड पर ट्रकों में माल पहुंचाने में लगता समय, रिटेल दुकानों में बेचने में लगता समय । काफी दिन लग सकते हैं । एक भी बोतल व्यर्थ नही जानी चाहिए । और इसलिए पानी को ताजा रखने के लिए, उसमें किटाणु ना पड जाए इसलिए जहरिले पदार्थ या क्लोरिज जैसे गॅस का उपयोग होता है ।
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बोतल का पानी पीना जेब और सेहत के लिए भी बूरा होगा ही लेकिन यहां सवाल खडे होते है । WHO और एफडीए अमरिकन फंडा है तो सवाल गहरा जाते है ।
"पानी पर मनवजात का मौलिक अधिकार नही है, पानी मानव को फ्री में नही मिलना चाहिए" पानी को प्राइवेटाईज करने के लिए युनो को ऐसा सुत्र देनेवाली कंपनी नेसले और उस ऐसी बडी कंपनियों के लिए रास्ता तो नही बनाया जा रहा है, भारत की छोटी कंपनियों को हटाकर, खूद का एकाधिकार तो नही बनाना चाहते?
नयी सरकार बनी है तब से पानी के आसपास बहुत कुछ हो रहा है ।
प्रथम तो मोदी को माता गंगा ने बुलाया । पानी !
फिर जाडू चला । जाडू शौचालय पर केंद्रित हुआ । गांवों में लोग शौचालय तो बना रहे हैं पर आदत या पानी की कमी के कारण उसका उपयोग बराबर नही होता है । तो पंचायत के मकान में माइक लगाए और महिलाओं को बैठा दिया अगर कोइ लोटा लेकर दिखाई दे तो उसका नाम माईक में बोले और पूरे गांव को सुनाए और आदमी को शर्मिन्दा करे । फिर पानी ! पानी का कंजप्शन बढाना ।
अचानक टीवी में एक सिरियल शुरु हो जाता है । कुंभ मेला और गंगापुत्रों को बदनाम करे ऐसे शैतानी खेल खेलते पंडाओं और उनका पोलिटिक्स बताया जाने लगा । देशवासियों के मन शंकाएं पैदा कर मानसिक रूप से गंगाघाट से दूर करना....
अमरिका में रहकर भारत की संस्कृति के विरुध्ध, हिन्दु धर्म के विरुध्ध लिखनेवाले एक बुढे गद्दार नास्तिक गुजराती ने "राम तेरी गंगा मैली" लेख लिखा था । उस में लगभग बीस साल का फोटो कलेक्शन उस लेख में डाला था । असल में वो लेख नही आल्बम था । मानव सहित अनेक प्राणीयों की सडी हुई तैरती लाशें, पानी में बहाए फुलों के ढेर, घाट पर जलती चिताएं, पानी में नहाते लोग । ये सब अचानक एक साथ नजर में आ जए तो जरूर झटका लगेगा और गंगा मैली लगेगी । लेकिन वो हकिकत में एक साथ नही था । अलग अलग समय और सालों में ली गई फोटो थी ।
ऐसा ही झटका दो दिन पहले लगाया गया । आजादी के बाद कभी नही और अभी इस माहोल में पहलीबार सौ सवासौ मुर्दे एक साथ गंगा नदी में दिखा दिए । ऐसा भी नही किया गया के मुर्दों के बीच कुछ किलोमिटर का फासला रख्खें । किसी ट्रक में लाकर एक जगह डाल दिए हो ऐसा लगा । हेतु? नागरिक के मन में ठसा देना कि वाकई में गंगाके साथ प्रोब्लेम है । सरकार जो करती है बराबर करती है । और सरकार ने बराबर कर भी लिया । फतवा आ गया है कि गंगा में लाशें ना बहाई जाए ।
यमुना में तो फुल बहाने के लिए पांच हजार का जुर्माना लगा दिया है ।
आम जनता को पता नही होता है कि नदियों की भी अपनी अलग दुनिया है, उनको भी अपनी जीव सृष्टि है । छोटे जंतु से लेकर बडे बडे मगर मच्छ तक नदी में बहती सडन पर तो जिन्दा रहते हैं । प्राणीजन्य या वनस्पतिजन्य कचरा नदी में बहता है वो सेन्दिय कचरा है और वो सडता है और वो नदी के जीवों का खाद्य पदार्थ है, उसे खा कर तो सब जीव जीते हैं । और नदी को भी उस हिसाब से साफ करते रहते हैं । गांवों में कुएंका पानी साफ रखने के लिए कुएं में कछुए डाले जाते हैं । गंगा नदी पर वन विभाग का कछुए का संरक्षित एरिया है, झाडूधारियों को वहां से भगाया गया था और सरकार का उस मामले में विरोध भी किया था, लेकिन वो मामला दब गया ।
रासायणिक कचरा जीवों का खाद्यपदार्थ नही पर जहर है तो वैसे कचरे के कारण जीव मर जाते हैं ।
देश की प्रमुख प्राथमिकताएं, मेहंगाई, लाकाबाजारी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्षलवाद और देश की सुरक्षा को साईड कर के बडे बडे वीआईपीओं को मोडेल बनाकर झाडू उठाना, माता गंगा को याद करना और माता गाय का कतल करना, राजकाज छोड एक गद्दार एनजीओ की तरह रोडपर आ जाना क्या साबित करता है?
यही कि दानवों ने बताए अगले कदम पर देश चल पडा है ।
उनके आनेवाले कदम यह है कि नागरिक को पानी के मूलभूत अधिकार से वंचित कर दे । पानी के सभी संसाधन नागरिक से छीन कर उसका कबजा कर लिया जाए । नदी तालाब मल्टिनेशनल कंपनियों को बेच दें । वो कंपनियां ही नागरिकों को पानी देगी, नेहर से, पाईप से या बोटल और ड्रम से । आदमी ने कुआं भी खोदा तो परमीशन लेनी पडेगी और रोयल्टी देनी पडेगी । एकाधिकार ! जैसे आदमी नोट नही छाप सकता, इकोनोमी खराब होती है, जेल में जाना पडता है । ऐसे ही फोगट में कुआं नही खोदा जा सकेगा, पानी की व्यवस्था तुटती है, जेल जाना पडेगा ।
Beware! Packaged water harmful to health 

अमेरिका में सन 1935 में 94 प्रतिशत किसानों के पास गायें थीं



कोलंबस ने सन 1492 में जब अमेरिका की खोज की तो वहां कोई गाय नही थी, केवल जंगली भैंसें थीं।
जिनका दूध निकालना लोग नही जानते थे, मांस और चमड़े के लिए उन्हें मारते थे।
कोलंबस जब दूसरी बार अमेरिका गया तो वह अपने साथ चालीस भारतीय गायें और दो भारतीय सांड लेता गया ताकि वहां गाय का अमृतमयी दूध मिलता रहे।
सन 1525 में गाय वहां से मैक्सिको पहुंची।
1609 में जेम्स टाउन गयी,
1640 में गायें 40 से बढ़कर तीस हजार हो गयीं।
1840 में डेढ़ करोड़ हो गयीं।
1900 में चार करोड़,
1930 में छह करोड़ साढ़े छियासठ लाख और
1935 में सात करोड़ 18 हजार 458 हो गयीं।
अमेरिका में सन 1935 में 94 प्रतिशत किसानों के पास गायें थीं, प्रत्येक के पास 10 से 50 तक गायों की संख्या थी।
गर्ग संहिता के गोलोक खण्ड में भगवद-ब्रह्म-संवाद में उद्योग प्रश्न वर्णन नाम के चौथे अध्याय में बताया गया है कि जो लोग सदा घेरों में गौओं का पालन करते हैं, रात दिन गायों से ही अपनी आजीविका चलाते हैं, उनको गोपाल कहा जाता है।
जो सहायक ग्वालों के साथ नौ लाख गायों का पालन करे वह नंद और जो 5 लाख गायों को पाले वह उपनंद कहलाता है।
जो दस लाख गौओं का पालन करे उसे वृषभानु कहा जाता है और जिसके घर में एक करोड़ गायों का संरक्षण हो उसे नंदराज कहते हैं।
जिसके घर में 50 लाख गायें पाली जाएं उसे वृषभानुवर कहा जाता है।
इस प्रकार ये सारी उपाधियां जहां व्यक्ति की आर्थिक संपन्नता की प्रतीक है, वहीं इस बात को भी स्पष्ट करती हैं कि प्राचीन काल में गायें हमारी अर्थव्यवस्था का आधार किस प्रकार थीं।
साथ ही यह भी कि आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्तियों के भीतर गो भक्ति कितनी मिलती थी.
इस प्रकार की गोभक्ति के मिलने का एक कारण यह भी था कि गोभक्ति को राष्ट्रभ क्ति से जोड़कर देखा जाता था।
गायें ही मातृभूमि की रक्षार्थ अरिदल विनाशकारी क्षत्रियों का, मेधाब ल संपन्न ब्राह्मण वर्ग का, कर्त्तव्यनिष्ठ वैश्य वर्ग का तथा सेवाबल से युक्त शूद्र वर्ग का निर्माण करती थीं।
मेगास्थनीज ने अपने भारत भ्रमण को अपनी पुस्तक ’इण्डिका’ में लिखा है।
वह लिखते हैं कि चंद्रगुप्त के समय में भारत की जनसंख्या 19 करोड़ थी और गायों की संख्या 36 करोड़ थी।
आज सवा अरब की आबादी के लिए गायों की संख्या केवल दो करोड़ हंै.
अकबर के समय भारत की जनसंख्या बीस करोड़ थी और गायों की संख्या 28 करोड़ थी।
1940 में जनसंख्या 40 करोड़ थी और गायों की संख्या पौने पांच करोड़ जिनमें से डेढ़ करोड़ युद्घ के समय में ही मारी गयीं।
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1920 में चार करोड़ 36 लाख 60 हजार गायें थीं।
वे 1940 में 3 करोड़ 94 लाख 60 हजार रह गयीं।
और आज वर्तमान में क्या स्थिति है वो तो सबके सामने है।