Wednesday 30 December 2015

स्त्री_क्या_है
जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे तब उन्हें काफी समय लग गया । आज छठा दिन था और स्त्री की रचना पुरी अभी अधुरी थी
इसिलए देवदुत ने पुछा भगवन आप इस में इतना समय क्यों ले रहे हो...
भगवान ने जवाब दिया क्या तुने इसके सारे गुनधर्म (specifications) देखे है, जो इसकी रचना के लिए जरूरीः है।
यह हर प्रकार की परिस्थितियों को संभाल सकती है
यह एकसाथ अपने सभी बच्चों को संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है ।
यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टुटे हुये दिल के घाव भी भर सकती है ।
यह सब सिर्फ अपने दो हाथों से कर सकती है
इस में सबसे बड़ा गुनधर्म यह है की बीमार होने पर अपना ख्याल खुद रख सकती है एवं 18 घंटे काम भी कर सकती है।
देवदुत चकीत रह गया और आश्चर्य पुछा भगवान क्या यह सब दो हाथों से कर पाना संभव है ।
भगवान ने कहा यह स्टांडर्ड रचना है
(यह गुनधर्म सभी में है )
देवदुत ने नजदीक जाकर स्त्री को हाथ लगाया और कहा
भगवान यह तो बहुत सोफ्ट है ।
भगवान ने कहा हाँ यह बहुत ही सोफ्ट है मगर इसे बहुत strong बनाया है । इसमें हर परिस्थितियों का संभाल ने की ताकत है
देवदुत ने पुछा क्या यह सोच भी सकती है
भगवान ने कहा यह सोच भी सकती है और मजबूत हो कर मुकाबला भी कर सकती है।
देवदुत ने नजदीक जाकर स्त्री के गालों को हाथ लगाया और बोला
भगवान ये तो गीले है। लगता है इसमें से लिकेज हो रहा है।
भगवान बोले यह लिकेज नहीं है। यह इसके आँसू है।
देवदुत: आँसू किस लिए
भगवान बोले : यह भी ईसकी ताकत है । आँसू इसको फरीयाद करने एवं प्यार जताने एवं अपना अकेलापन दुर करने का तरीका है ।
देवदुत: भगवान आपकी रचना अदभुत है । आपने सबकुछ सोच कर बनाया है
आप महान है
भगवान बोले यह स्त्री रूपी रचना अदभुत है । यही हर पुरुष की ताकत है जो उसे प्रोत्साहित करती है। वह सभी को खुश देखकर खुश रहतीँ है। हर परिस्थिति में हंसती रहती है । उसे जो चाहिए वह लड़ कर भी ले सकती है।
उसके प्यार में कोइ शर्त नहीं है
(Her love is unconditional)
उसका दिल टूट जाता है जब अपने ही उसे धोखा दे देते है । मगर हर परिस्थितियों से समझौंता करना भी जानती है।
देवदुत: भगवान आपकी रचना संपूर्ण है।
भगवान बोले ना अभी इसमें एक त्रुटि है
" यह अपना महत्वत्ता भुल जाती है " (" She often forgets what she is worth".)
सभी आदरणीय स्त्रीओँ को समर्पित।

जड़े खोदी जा रही ह। जिसकी अगवाई पतंजलि कर रही है।

क्या आपको पता है कि dove शैम्पू जो 265 का था अब 215 का हो गया है ?
जड़े खोदी जा रही ह।
जिसकी अगवाई पतंजलि कर रही है।
प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के मुकाबले ‪#‎पतंजलि‬ के प्रॉडक्ट की कीमतें काफी कम हैं। यहां पर प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के मुकाबले पतंजलि के एफएमसीजी प्रॉडक्ट्स की कीमतों का जायजा लिया जा रहा है।
पतंजलि स्पेशनल च्यवनप्राश (500 ग्राम)-रुपये 115
डावर च्यवनप्राश-रुपये 160
पतंजलि पाइनऐपल जूस (1लीटर)-रुपये 86
डाबर रियल जूस-रुपये 99
पतंजलि हनी (500 ग्राम)-रुपये 135
डाबर हनी-रुपये 199
पतंजलि सौंदर्य फेशवॉश (60 ग्राम)-रुपये 60
पीयर्स फेश वॉश-रुपये 80
पतंजलि केशकांति ऐंटि डैंड्रफ शैंपू (200 ग्राम)-रुपये 70
हेड ऐंड शोल्डर्स ऐंटि डैंड्रफ शैंपू-रुपये 159
पतंजलि कांतिनीम बाथिंग सोप (75 ग्राम)-रुपये 15
हिमालय नीम ऐंड टरमरिक सोप-रुपये 24
पतंजलि सुपरडिश वॉश बार (175 ग्राम)-रुपये 10
विम डिश वॉश बार-रुपये 15
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पतंजलि डिटर्जेंट पाउडर पॉप्युलर (250 ग्राम)-रुपये 13
रिन डिटर्जेंट पाउडर-रुपये 19
केशकान्ति 70rs का dove 265 का।।
 मृत्यु से भय कैसा ||💐
राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ।
अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था। तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।
राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी
जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी।.
जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा। रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।
वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी ।
वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।
उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।
बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी - कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं। इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।।
इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा। राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।
बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।
राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।
वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।
राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा," परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ?
परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् ! वह कौन राजा
था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी
मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है। "
श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?"
राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
बहनों, वास्तव में यही सत्य है। जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा।और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो ( उस राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं ये कहाँ आ गया ( और पैदा होते ही रोने लगता है ) फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है।
यही मेरी भी कथा है और आपकी भी।
318 किलो वजन उठाकर चेतक दुनिया के सबसे फास्ट दौडने वाला और सबसे लंबी छलांग लगानेवाला घोडा था !.
माना जाता है कि महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो… और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी। यह बात अचंभित करने वाली है कि इतना वजन लेकर चेतक पर बैठकर प्रताप रणभूमि में लड़ते थे।.
बचपन से निडर, साहसी और भाला चलाने में निपुण महाराणा प्रताप जंगल में एक बार शेर से ही भिड़ गए थे और उसे मार दिया था। अपनी मातृभूमि मेवाड़ को अकबर के हाथों जाने से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने एक बड़ी सेना तैयार की थी जिसमें अधिकतर भील लड़ाके थे। यह गुरिल्ला युद्ध में महारत रखते थे।
हल्दी घाटी गुरिल्ला युद्ध :.
अकबर की फौज के पास उस दौर के हर आधुनिक हथियार थे। इधर, महाराणा प्रताप की सेना संख्या में कम थी और उनके पास घोड़ों की संख्या ज्यादा थी। अकबर की सेना गोकुंडा तक पहुंचने की तैयारी में थी। हल्दीघाटी के पास ही खुले में उसने अपने खेमे लगाए थे। महाराणा प्रताप की सेना ने गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करके अकबर की सेना में भगदड़ मचा दी। अकबर की बड़ी सेना लगभग पांच किलोमीटर पीछे हट गई। जहां खुले मैदान में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच पांच घंटे तक भयंकर युद्ध हुआ।.
इस युद्ध में लगभग 18 हजार सैनिक मारे गए। इतना खून बहा कि इस जगह का नाम ही रक्त तलाई पड़ गया। महाराणा प्रताप के खिलाफ इस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व सेनापति मानसिंह कर रहे थे। जो हाथी पर सवार थे। महाराणा अपने वीर घोड़े चेतक पर सवार होकर रणभूमि में आए थे, कहा जाता है कि यह घोड़ा बहुत तेज दौड़ता था।.
मुगल सेना में हाथियों की संख्या ज़्यादा होने के कारण चेतक (घोड़े) के सिर पर हाथी का मुखौटा बांधा गया था ताकि हाथियों को भरमाया जा सके। कहा जाता है कि चेतक पर सवार महाराणा प्रताप एक के बाद एक दुश्मनों का सफाया करते हुए सेनापति मानसिंह के हाथी के सामने पहुंच गए थे। उस हाथी की सूंड़ में तलवार बंधी थी। महाराणा ने चेतक को एड़ लगाई और वो सीधा मानसिंह के हाथी के मस्तक पर चढ़ गया। मानसिंह हौदे में छिप गया और राणा के वार से महावत मारा गया। हाथी से उतरते समय चेतक का एक पैर हाथी की सूंड़ में बंधी तलवार से कट गया।.
चेतक का पांव कटने के बाद महाराणा प्रताप दुश्मन की सेना से घिर गए थे। महाराणा को दुश्मनों से घिरता देख सादड़ी सरदार झाला माना सिंह उन तक पहुंच गए और उन्होंने राणा की पगड़ी और छत्र जबरन पहन लिए। उन्होंने महाराणा से कहा कि एक झाला के मरने से कुछ नहीं होगा। अगर आप बच गए तो कई और झाला तैयार हो जाएंगे। राणा का छत्र और पगड़ी पहने झाला को ही राणा समझकर मुगल सेना उनसे भिड़ गई और महाराणा प्रताप बच कर निकल गए। झाला मान वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी वजह से महाराणा जिंदा रहे।.
कटे पैर से महाराणा को सुरक्षित ले गया चेतक :-.
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक अपना एक पैर कटा होने के बावजूद महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए बिना रुके पांच किलोमीटर तक दौड़ा। यहां तक कि उसने रास्ते में पड़ने वाले 26 फीट के बरसाती नाले को भी एक छलांग में पार कर लिया। राणा को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के बाद ही चेतक ने अपने प्राण छोड़े। जहां चेतक ने प्राण छोड़े वहां चेतक की समाधि है। चित्तौड़ की हल्दीघाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है। चेतक का अंतिम संस्कार महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्ति सिंह ने किया था। .
इस युद्ध में अपने प्रियजनों, मित्रो, सैनिको और घोड़े चेतक को खोने के बाद महाराणा प्रताप ने प्रण किया था कि वो जब तक मेवाड़ वापस प्राप्त नहीं कर लेते घास की रोटी खाएंगे और जमीन पर सोएंगे। अपने जीवनकाल में उन्होंने अपना यह प्रण निभाया और अकबर की सेना से युद्ध करते रहे। उनके जीते जी अकबर कभी चैन से नहीं रह पाया और मेवाड़ को अपने आधीन नहीं कर सका। 57 वर्ष की उम्र में महाराणा ने चावंड में अपनी अंतिम सांस ली। .
एक ताने ने बदली भिखारी की जिंदगी, अब कर रहा है लॉ की पढ़ाई
शिव सिंह की जिंदगी एक ताने ने बदलकर रख दी है। भीख मांगकर जिंदगी गुजर बसर करने वाले 48 वर्षीय शिव सिंह ने राजस्‍थान यूनिवर्सिटी के लॉ कॉलेज की प्रवेश परीक्षा को उत्‍तीर्ण करने के बाद वकालत की पढ़ाई कर रहा है।
शिव सिंह सुबह को घरों, मंदिरों और दुकानों में भीख मांगते हैं। तीन बजे के बाद उनके हाथ में कॉपी किताब नजर आती है और वह कॉलेज कैंपस में छात्रों के साथ पढ़ते हुए नजर आते हैं। कॉलेज प्रशासन के मुताबिक उन्होंने कभी छुट्टी नहीं की। जिस दिन क्लास नहीं लगती, लाइब्रेरी हॉल में अकेले स्टडी करते रहते हैं।
शिव ने बताया कि एक दिन जब किसी से भीख मांगाता हूं तो एक ताना जरूरत मिलता है- जवान है, कुछ काम क्यों नहीं करता। अब कैसे कहूं कि हाथ खराब होने से मजदूरी कर ही नहीं सकता। अखबार में लॉ कॉलेज का विज्ञापन देखा। फार्म भर दिया। भीख के पैसे बचाकर किताब खरीदी। मंदिर के बाहर बैठकर पढाई की। कॉम्पिटिशन दिया और मेरिट लिस्ट में नाम आ गया। अब एक ही जिद है- पढ़ाई पूरी करूंगा। फिर कोर्ट में काम मिल ही जाएगा।
शिव का कहना है कि उसके मां-बाप ने मजदूरी करके ग्रेजुएशन करवाई। इसके बाद उसने शादी की और बच्‍चे हुए। उसने गांव में ठाकुरों के खेत पर मजदूरी की लेकिन पैसे नहीं मिले और जब उसने विरोध किया तो उसे पीटा गा। इसके बाद वह गांव छोड़कर शहर आ गया और यहां भीख मांगकर परिवार का गुजारा करने को मजबूर है।

                "जब किसी को अपने बड़े होने का अहंकार हो जाए तो वो न केवल अपनी गलतियों को देख पाने से प्रतिरक्षित हो जाता है बल्कि अपने अधिकारक्षेत्र में उपलब्ध सभी संसाधनों का प्रयोग अपने वर्चस्व और महत्व को स्थापित करने के लिए करता है ; आत्म मुग्धता के कभी संतुष्ट न होने वाले इस प्रयास के सतत प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उसका स्तर इतना गिर जाता है की उसे स्वयं भी इसका ज्ञान नहीं होता ;और जब गलतियों की स्वीकृति ही समस्या बन जाए तो सुधार असंभव है।
             संघ में सभी स्वयंसेवक ज़मीन पर बैठते हैं, ऐसे इसलिए क्योंकि ज़मीन पर बैठने वालों को गिरने का डर नहीं होता; किसी भी वृक्ष को विकसित व् समृद्ध होने के लिए यह आवश्यक है की वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहे पर अगर वृक्ष को भी हवा में उड़ाने की महत्वकांक्षा में पत्ते वृक्ष की जड़ों को ही काटने लगे तो इसे क्या कहा जाए ? कुछ पत्तों के हस्स्यास्पद महत्वकांक्षा के लिए वृक्ष अपने जड़ों की बलि नहीं दे सकता और न ही देना चाहिए ;
किसी भी व्यक्ति के महत्व का आधार उसका कर्म होता है पर जब महत्व की आकांक्षा से कर्म किये जाएँ तो कर्म का उद्देश्य ही कर्म को गलत सिद्ध कर देगा; ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है की इस पृथ्वी का अस्तित्व करोड़ों वर्षों से है और हम मनुष्य यहाँ एक सीमित अवधि के लिए सम्भावना के रूप में आते हैं. अपने सीमित जीवन काल का प्रयोग अगर हम अपने लिए सुख और सुरक्षा की प्राप्ति में लगाएं तो निश्चित रूप से जीवन संतुष्टि प्राप्त कर पाने से वंचित रहेगी क्योंकि सुख प्राप्ति में है और संतुष्टि देने में;
इस धरती पर हमारा जीवन काल सीमित है ऐसे में, अगर हम अपने जीवन काल का व्यय कृत्रिम महत्व और सुख की प्राप्ति में करें तो वह एक विकल्प होगा पर अगर इस अवधि का प्रयोग हम अपने व्यक्तिगत विशिष्टता का बोध कर उसकी उपयोगिता द्वारा श्रिष्टि के कल्याण में सहायक बनने में करें तो यही सही अर्थों में जीवन का महत्व और जीवन काल की उपलब्धि होगी ; आखिर प्रकृति में विशिष्ट ही तो सामान्य है, फिर प्रतिस्प्रधा कैसा, क्यों न पूरक बनें !
धन महंगा है पर समय अनमोल ऐसे में जीवनकाल के लिए महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए ? जीवन के जन्म से ही मृत्यु तो निश्चित है, अगर हम अपने समझ के विस्तार से जीवन के सही उद्देश्य का निर्धारण करना सीख जाएँ तो यही शिक्षा की सार्थकता होगी !"
Mohan Bhagwat ji

Tuesday 29 December 2015

दर्जनों बच्चे पैदा कर इस दुनिया में मुल्ले सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं
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मुस्लिम समुदाय की आबादी होगी सबसे अधिक इस सदी के अंत तक
भारत में कुछ समय पहले जारी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम समुदाय की आबादी 2001 से 2011 के बीच 10 साल में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 17.22 करोड़ पहुंच गयी, वहीं हिंदुओं की जनसंख्या इस अवधि में 0.7 प्रतिशत कमी के साथ 96.63 करोड़ रह गयीl
वहीं भारत-बांग्लादेश सीमा को लेकर उच्चतम न्यायालय की ओर से गठित एक सदस्यीय हजारिका आयोग ने इस सिफारिश के साथ अपनी रिपोर्ट सौंपी थी कि उच्चतम न्यायालय बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को लेकर चिंता के मुद्दों की एक उच्चस्तरीय जांच का आदेश दे जिससे असम की मूल जनसंख्या के 2047 तक अल्पसंख्यक बन जाने का खतरा उत्पन्न हो गया हैl
मगर अब भारत ही नही पूरी दुनिया में मुस्लिमों की आबादी बेहद तेज गति से बढ़ रही है और इस सदी के अंत तक उनकी जनसंख्या सबसे अधिक हो सकती है। बल्कि यहां तक कि वे ईसाइयों को भी पीछे छोड़ सकते हैं। और ऐसा इतिहास में पहली बार होगा। ये अनुमान प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा जारी रिपोर्ट में लगाया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय पूरी दुनिया के एक तिहाई लोग ईसाई धर्म को मानते हैं। वहीं 2.2 अरब समर्थकों के साथ यह धर्म दुनिया में सबसे आगे है मगर ऐसा बहुत समय तक नहीं रहेगा। और मुस्लिम जिस गति से बढ़ रहे हैं, उस हिसाब से 2050 तक उनकी आबादी दुनिया की 30 फीसदी होगी और 2070 के बाद वे ईसाई धर्म को पार कर सकते हैं।
रिपोर्ट अनुसार ईसाइयों की संख्या कम नहीं हो रही है मगर उनकी आबादी बढ़ने की रफ्तार मुसलमानों जितनी नहीं है। इस कारण 2050 तक ईसाइयों की जनसंख्या 2.9 अरब हो जाएगी, वहीं मुस्लिम 1.6 अरब से 2.8 अरब पर पहुंच जाएंगे। रिपोर्ट में यह संभावना भी जताई कि इस दौरान ईसाइयत का केंद्र यूरोप से हटकर उप सहारा अफ्रीका हो जाएगा।
वहीं रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि नास्तिकों यानी किसी धर्म को नहीं मानने वालों की जनसंख्या 2050 तक बेहद कम होने का अनुमान लगाया गया है। असल में कारण इस आबादी में जन्म दर का बेहद कम होना है।
पटना. आईपीएस अफसर शिवदीप लांडे को दरभंगा इंजीनियर्स मर्डर केस के जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे क्रिमिनल्स के अगेंस्ट कार्रवाई को लेकर चर्चा में रहते हैं। उनके नेतृत्व में एसटीएफ गठित होने के बाद अबतक छह आरोपी अरेस्ट हुए हैं। 

 सैलरी का 60 पर्सेंट गरीब बच्चों के लिए करते हैं डोनेट

- बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं कि लांडे अपनी सैलरी का 60 पर्सेंट सामाजिक संस्था को डोनेट कर देते हैं।
- यह संस्था गरीब लड़कियों की शादी कराती है। इसके अलावा फाइनेंशियली कमजोर बच्चों के हॉस्टल का खर्चा उठाती है।
लड़कियों में काफी पॉपुलर
छेड़खानी करने वाले शोहदों के खिलाफ कार्रवाई करने की वजह से शिवदीप लड़कियों में काफी फेमस हो गए थे। रिपोर्ट्स की मानें तो उनकी फैनफॉलोइंग का आलम यह है कि उन्हें रोजाना करीब 300 मैसेज मिलते हैं।
- 2004 में जब लांडे IRS का हिस्सा थे, तब उन्होंने एक युवक संगठन नाम की एक संस्था बनाई थी, जो गरीब बच्चों के लिए काम करती है। फिलहाल, करीब 70 हजार से ज्यादा कार्यकर्ता लांडे की संस्था से जुड़े हुए हैं।
 
2006 बैच के ऑफिसर हैं शिवदीप
महाराष्ट्र अकोला के मूल निवासी शिवदीप वामन लांडे बेहद पॉपुलर हैं। उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से बीई किया है। 2006 में उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़कर सिविल सर्विसेज का एग्जाम क्वालिफाई कर पुलिस सेवा ज्वाइन किया। फिलहाल रोहतास के सिटी एसपी का चार्ज उनके पास है। इससे पहले वे पटना, अररिया, पूर्णियां और जमालपुर के एसपी रह चुके हैं। इस दौरान आपराधिक मामलों में अपने तरह की कार्रवाई के लिए काफी चर्चित भी रहे।
 

 
Hardik Savani

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सुरेश प्रभु की "ट्वीटर-सिस्टम" का रहस्य ..!! .. पूरा अनालिसिस ...

चाहे चलती ट्रेन में बच्चे को दूध पहुंचाने का मामला हो या बीमार बुजुर्ग के लिए इलाज का इंतजाम करना। एक ट्वीट पर मदद पहुंच जाती है। कैसे हो रहा है ये सब कुछ?
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रेल मंत्रालय की चौथी मंजिल पर कमरा नंबर-454...!! रेलवे का ट्विटर कंट्रोल रूम हैै।
तीन लोगों की टीम है, इस रूम में एक नियम है-एक पल को भी कम्प्यूटर ऑफ नहीं होना चाहिए, क्योंकि न जाने कब किस पैसेंजर की शिकायत आ जाए। एक दिन में 5000+ ट्वीट आते हैं। 30% रि-ट्वीट होते हैं। 20-30% कमेंट आते हैं। इस टीम को निजी कंपनियों, PMO, विदेश मंत्रालय से ट्रेनिंग दिलाई गई है।
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टीम की निगरानी खुद रेल मंत्री Suresh Prabhu करते हैं। रोज रात में उस दिन की रिपोर्ट लेते हैं। साथ ही, मंत्रालय में आने के बाद ट्विटर पर सुबह आए गंभीर मामलों की जानकारी और उस पर लिए गए एक्शन पर चर्चा करते हैं। प्रभु खुद अपने ट्विटर हैंडल सुरेशपीप्रभु और रेलवे के ट्विटर हैंडल रेलमिनइंडिया पर नजर रखते हैं। प्रभु के ट्विटर हैंडल को चार लाख और रेलवे के हैंडल को छह लाख से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं।
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कंट्रोल रूम तीन शिफ्ट में काम करता है। सुबह 6 to 2 और 2 to 10 और रात 10 to 6
सभी का ट्विटर अकाउंट 'रात भर' ऑन रहता है...!!!! रेलवे के 17 ज़ोनल प्रबंधक और 69 मंडल प्रबंधक भी ऑनलाइन रहते हैं...!!! इन्हें पैसेंजर की तुरंत मदद के ऑर्डर दिए गए हैं।

कंट्रोल रूम इंचार्ज के मुताबिक, सामान्य शिकायत पर हम पैसेंजर को यह एडवाइस देते हैं कि वे सुरक्षा वाली शिकायत को रेलवे के हेल्पलाइन नंबर 182 और अन्य शिकायत को 138 पर करें। इसकी वजह यह है कि ये नंबर सीधे GPS से जुड़े हैं। जब कोई शिकायत करता है, तो कंट्रोल रूम को कॉल देने से पहले वह ट्रेन की लोकेशन पता कर लेता है और उसी के लिहाज से अगले आने वाले स्टेशन की जानकारी भी देता है। इससे लोगों को तुरंत मदद मिलती है। जबकि ऐसी शिकायत पर रेलवे बोर्ड से कॉल करने पर लोकेशन दिल्ली आएगी और मदद देने में देरी हो सकती है।
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वहीं, अन्य शिकायत जैसे किसी के साथ छेड़छाड़ या किसी बीमार को तुरंत मदद की जरूरत है या कोई ट्रेन बीच में ही रुकवानी है, तो इन पर पर तुरंत एक्शन लिया जाता है। संबंधित रेलवे के जीएम, डीआरएम और रेलवे स्टेशन मास्टर के साथ ही रेल में चल रहे कंडक्टर और रेलवे सिक्युरिटी टीम को सीधे अलर्ट किया जाता है। उनसे हर पल की जानकारी ली जाती है।
ये है प्रभु की तीन लोगों की टीम :-
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1. एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जन शिकायत अनंत स्वरूप (IRPS Officer-1992) का काम निगरानी का है और रात के समय जब सेल कार्य नहीं करता है, तो उस समय ट्विटर पर निगाह रखना भी इनके जिम्मे है।
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2. स्पेशल अफसर हनीस यादव :- OSD हनीस यादव 2003 में IRSME सेवा में सिलेक्ट हुए। वे मेकैनिकल इंजीनियर हैं। यादव ने रेलवे के ही इंस्टीट्यूट से यह डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने रेलवे से इस्तीफा दिया और आईआईएम से एमबीए किया। वह पढ़ाई के लिए पेरिस और स्विट्जरलैंड भी गए। इसके बाद यादव ने ऑस्ट्रेलिया में कंसल्टेंसी फर्म मैकेंजी ज्वाइन की।
जब प्रभु रेल मंत्री बने तो उनके पिछले और मौजूदा रिकॉर्ड, साथ ही सोशल मीडिया पर पकड़ देखते हुए उन्हें बतौर ओएसडी रेलवे में लाए।
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3. डायरेक्टर इंफो-पब्लिसिटी वेद प्रकाश :- 1998 के IRTS अफसर वेद प्रकाश सोशल मीडिया के जानकार हैं और रेलवे के सोशल मीडिया सेल के प्रमुख हैं। रेलवे के ट्विटर सेल के चीफ भी वही हैं। किसी भी शिकायत, सुझाव या कमेंट पर एक्शन की जिम्मेदारी प्रकाश के पास है।
रेल मिनिस्टर सुरेश प्रभु का बयान : .. "
सिर्फ सफर कराना रेलवे का काम नहीं है। हर पैसेंजर को पूरी सुविधा और सुरक्षा देना भी तो हमारी ही जिम्मेदारी है। रेल बजट के बाद ये कंट्रोल रूम 7x24 घंटे काम करेगा। जल्द ही आपको रेल टिकटों के पीछे "ट्विटर हैंडल" मिलेगा और "हेल्पलाइन नंबर" भी..!!
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मुरुदेश्वर शिव मंदिर : 
विश्व की दूसरी सबसे विशाल शिव प्रतिमा , रामायण काल से जुड़ा है इतिहास

कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिला है, इस जिले की भटकल तहसील में ही मुरुदेश्वर मंदिर है। यह मंदिर अरब सागर के तट पर बना हुआ है। समुद्र तट होने की वजह से यहां का प्राकृतिक वातावरण हर किसी का मन मोह लेता है। बेहद सुंदर होने के साथ-साख यह शिव मंदिर बहुत ही खास भी है, क्योंकि इस मंदिर के परिसर में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति स्थापित हैं। वह मूर्ति इतनी बड़ी और आकर्षक है कि उसे दुनिया की दूसरी सबसे विशाल शिव प्रतिमा माना जाता हैं।

इसलिए है इस जगह का संबंध रामायण काल से

कथाओं के अनुसार, रामायण काल में रावण जब शिवजी से अमरता का वरदान पाने के लिए तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण को एक शिवलिंग दिया, जिसे आत्मलिंग कहा जाता है। इस आत्मलिंग के संबंध में शिवजी ने रावण से कहा था कि इस आत्मलिंग को लंका ले जाकर स्थापित करना, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा। अत: यदि तुम अमर होना चाहते हो तो इस लिंग को लंका ले जा कर ही स्थापित करना।
रावण इस आत्मलिंग को लेकर चल दिया। सभी देवता यह नहीं चाहते थे कि रावण अमर हो जाए इसलिए भगवान विष्णु ने छल करते हुए वह शिवलिंग रास्ते में ही रखवा दिया। जब रावण को विष्णु का छल समझ आया तो वह क्रोधित हो गया और इस आत्मलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया। तभी इस लिंग पर ढंका हुआ एक वस्त्र उड़कर मुरुदेश्वर क्षेत्र में आ गया था। इसी दिव्य वस्त्र के कारण यह तीर्थ क्षेत्र माना जाने लगा है।
मंदिर परिसर में बनी हैं भगवान शिव की विशाल मूर्ति

मुरुदेश्वर मंदिर में भगवान शिव की विशाल मूर्ति स्थापित हैं, जिसकी ऊंचाई लगभग 123 फीट है। यह मूर्ति भगवान शिव की दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति मानी जाती है। इस मूर्ति को इस ढंग से बनवाया गया है कि इस पर दिनभर सूर्य की किरणें पड़ती रहती हैं और यह चमकती रहती है।
बहुत सुंदर है यहां का नजारा

यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना हुई है और इसके तीन ओर अरब सागर है। पहाड़, हरियाली और नदियों की वजह से यह क्षेत्र बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगता है। मंदिर में भगवान शिव का आत्मलिंग भी स्थापित है। मंदिर के मुख्य द्वार पर दो हाथियों की मूर्तियां स्थापित हैं।
जीवन मंत्र डेस्क Dec 28, 2015 Bhaskar News के अनुसार
अमेरिका,यूरोप की एफडीआई से ज्यादा योगदान पाक में बसे भारतीयों का

पाकिस्तान में बसे लाखों भारतीयों ने अमेरिका, जापान सहित दुनिया के बड़े देशों की तरफ से भारत में हुए विदेशी निवेश से ज्यादा रकम भेजा है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक विदेश में बसे भारतीय दुनिया में सबसे ज्यादा रकम अपने देश भेजते हैं। 2015 में भारतीयों ने 72.2 बिलियन डॉलर स्वदेश भेजा है। सबसे ज्यादा 13.2 बिलियन डॉलर की राशि संयुक्त अरब अमीरात से, 11.5 बिलियन डॉलर राशि अमेरिका और 11 बिलियन डॉलर सऊदी अरब से भारतीय स्वदेश भेजते हैं।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाला पाकिस्तान में बसे भारतीयों की तरफ से स्वदेश भेजे जा रही रकम है।
2015 में पाकिस्तान में बसे भारतीयों ने 4.9 बिलियन डॉलर की राशि स्वदेश भेजी है। यह रकम मौजूदा वित्त वर्ष में भारत में कुल एफडीआई इक्विटी अन्तर्वाह की एक चौथाई से ज्यादा है। इस साल अप्रैल से लेकर सितंबर तक कुल एफडीआई इक्विटी अन्तर्वाह 16.631 बिलियन डॉलर का रहा है।
एफडीआई इक्विटी अन्तर्वाह के मामले में दस प्रमुख देशों की बात करें तो मौजूदा वित्त वर्ष में अमेरिका की तरफ से 0.85 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ है। जबकि जापान का निवेश 0.81 बिलियन डॉलर, जर्मनी 0.69 बिलियन डॉलर, ब्रिटेन 3.53 बिलियन डॉलर, फ्रांस 0.25 बिलियन डॉलर और, यूएई 0.26 बिलियन डॉलर का ही निवेश कर पाया है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा 23 लाख भारतीय संयुक्त अरब अमीरात में, 21 लाख भारतीय अमेरिका में, 20 लाख भारतीय सउदी अरब, और 14 लाख भारतीय पाकिस्तान में रहते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनियाभर में अमेरिका, ब्रिटेन सहित सभी विकसित देशों की यात्रा के दौरान भारत की मेक इन इंडिया में विदेशी निवेश की अपील करते हैं। लेकिन मेक इन इंडिया के तहत पिछले साल अक्टूबर से अबतक 32.87 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ है।
विदेश में बसे अपने नागरिकों से रकम अर्जित करने में चीन 63.9 बिलियन डॉलर के साथ दूसरे जबकि फिलिपींस 29.7 बिलियन डॉलर के साथ तीसरे नंबर पर है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश दुनिया के प्रथम दस देशों में शामिल है। विदेश में बसे रूस के नागरिक अपने देश 7.9 बिलियन डॉलर की रकम भेजते हैं।
स्पूतनिक के अनुसार << सूर्य की किरण >>
रामेश्वरम : द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना स्वामीनाथ मंदिर

भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ.

रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है. यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है. यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है. इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है. रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है. यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है. शंखाकार रामेश्वरम् एक द्वीप है, जो एक लंबे पुल द्वारा मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है. यह मंदिर द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना है, इसे स्वामीनाथ मंदिर भी कहते हैं .

जिस स्थान पर यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है. शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था. बताया जाता है, कि बहुत पहले धनुष्कोटि से मन्नार द्वीप तक पैदल चलकर भी लोग जाते थे. लेकिन 1480 ई. में एक चक्रवाती तूफान ने इसे तोड़ दिया. बाद में आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने उस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया. अंग्रेज़ों के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल का पुल बनाने का विचार हुआ. उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर से हिलकर टूट चुका था. एक जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल के लिए एक सुंदर पुल बनवाया गया. इस समय यही पुल रामेश्वरम् को भारत की मुख्य भूमि से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है. यह पुल पहले बीच में से जहाजों के निकलने के लिए खुला करता था.
बारहवीं सदी में श्रीलंका के राजा पराक्रमबाहु ने इस मंदिर का गर्भगृह बनवाया था. इसके बाद अनेक राजा समय समय पर इसका निर्माण करवाते रहे. भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ.
रामेश्वरम् का मंदिर भारतीय शिल्प कला का अद्भुत उदाहरण है. इसका प्रवेशद्वार चालीस फीट ऊंचा है. प्राकार में और मंदिर के अंदर सैंकड़ौं विशाल खंभें है, जो देखने में एक जैसे लगते हैं परंतु पास जाकर बारीकी से देखा जाए तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेलबूटे की अलग- कारीगरी है. रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है. इसके बरामदे 4,000 फीट लंबे हैं. प्रत्येक बरामदा 700 फीट लंबा है. बरामदे के स्तंभों पर की गई उत्तम कोटि की सुंदरतम नक्काशी दर्शनीय है.
रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है. इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ. इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है. दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है. चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़ेबड़े खंभो की लम्बी कतारे खड़ी है. प्राकार के एक सिरे पर खडे होकर देखने पर ऐसा लगता है मारो सैकड़ों तोरणद्वार का स्वागत करने के लिए बनाए गये है. इन खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है
रामनाथ मंदिर के चारों और दूर तक कोई पहाड़ नहीं है, जहां से पत्थर आसानी से लाये जा सकें. रामेश्वरम् के मंदिर में जो कई लाख टन पत्थर लगे हैं, वे सब बहुत दूर-दूर से नावों में लादकर लाये गये है. कहते हैं, ये सब पत्थर श्रीलंका से लाये गये थे. कथा

रामेश्वरम् के विख्यात मंदिर की स्थापना के बारे में यह रोचक कहानी कही जाती है. सीताजी को छुड़ाने के लिए भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की थी. उन्होने लड़ाई के बिना सीताजी को छुड़वाने का बहुत प्रयत्न किया, पर जब श्रीराम को सफलता न मिली तो विवश होकर उन्होने युद्ध किया. इस युद्ध में रावण और उसके सब साथी राक्षस मारे गये. रावण भी मारा गया और अन्ततः सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस लौटे. इस युद्ध हेतु राम को वानर सेना सहित सागर पार करना था, जो अत्यधिक कठिन कार्य था.
रावण भी साधारण राक्षस नहीं था. वह चारों वेदों को जानने वाला और शिवजी का बड़ा भक्त था. इस कारण श्रीराम को उसे मारने के बाद बड़ा खेद हुआ. ब्रह्मा-हत्या का पाप उन्हें लग गया. इस पाप को धोने के लिए उन्होने रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना करने का निश्चय किया. यह निश्चय करने के बाद श्रीराम ने हनुमान को आज्ञा दी कि काशी जाकर वहां से एक शिवलिंग ले आओ. हनुमान पवन-सुत थे. बड़े वेग से आकाश मार्ग से चल पड़े. लेकिन शिवलिंग की स्थापना की नियत घड़ी पास आ गई. हनुमान का कहीं पता न था. जब सीताजी ने देखा कि हनुमान के लौटने मे देर हो रही है, तो उन्होने समुद्र के किनारे के रेत को मुट्ठी में बांधकर एक शिवलिंग बना दिया. यह देखकर श्रीराम बहुत प्रसन्न हुए और शुभ मुहुर्त पर इसी शिवलिंग की स्थापना कर दी. छोटे आकार का शिवलिंग रामनाथ कहलाता है.
बाद में हनुमान के आने पर पहले छोटे प्रतिष्ठित शिवलिंग के पास ही श्रीराम ने काले पत्थर के उस बड़े शिवलिंग को स्थापित कर दिया. ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं. यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है.
कैसे पहुँचें

रामेश्वरम् तक पहुँचने के लिए रेल और परिवहन सेवाएँ उपलब्ध हैं. रामेश्वरम् धाम भारत की मुख्य भूमि से अलग है. मंडप और पभवन रेलवे स्टेशनों के बीच देश का सबसे बड़ा रेलपुल है. मदुरै से रेल या बस द्वारा रामेश्वरम् आसानी से पहुँचा जा सकता है. रामेश्वरम् का निकटतम हवाई अड्डा रामेश्वरम् से 173 कि. मी. की दूरी पर मदुरै है.प्रेषित समय :14:22:27 PM / Sun, Dec 28th, 2014
पलपलइंडिया के अनुसार<< सूर्य की किरण >>

बगदाद को बसाया था भगदत्त ने ..?

600 ईसा पूर्व के बाबिल के एक ब्राह्मण राजा भागदत्त पर पड़ा है।
भगवान, भगवती आदि शब्द भग उपसर्ग लगाकर बने हैं, उसी तरह भगदत्त भी बना। पौराणिक काल के एक राजा का नाम भगदत्त था जिसका अर्थ हुआ (भग) देवता से प्राप्त। पुरानी फारसी, ईरानी और अवेस्ता में यह भग लफ्ज बग या बेग के रूप में परिवर्तित हो गया। बग या बेग बाद में रसूखदार लोगों की उपाधि भी हो गई।

मध्य एशिया के शक्तिशाली कबीलों की जातीय पहचान यह बेग शब्द बना। कुछ विद्वान इसमें उद्यान के अर्थ वाला बाग भी देखते हैं जिसकी व्याख्या समृद्ध भूमि, ऐश्वर्य भूमि के रूप में है। बगीचा इसका ही रूप है। बगराम, बगदाद, बागेवान जैसे शहरों के नामों के पीछे यही अर्थ छुपा है। बख्श का अर्थ भी अंश, खंड, भाग्य, हिस्सा, देने वाला होता है।
मेसोपोटेमिया के उपजाऊ भाग में स्थित बगदाद अरब विश्व का एक प्रमुख नगर एवं इराक की राजधानी है। इसका नाम 600 ईसा पूर्व के बाबिल के एक ब्राह्मण राजा भागदत्त पर पड़ा है। हालांकि यह नगर 4,000 वर्ष पहले से ही अस्तित्व में रहा है। यह शहर प्राचीन सिल्क रूट के प्रमुख शहरों में से एक है। नदी के किनारे स्थित यह शहर पश्चिमी यूरोप और सुदूर पूर्व के देशों के बीच, समुद्री मार्ग के आविष्कार के पहले कारवां मार्ग का प्रसिद्ध केंद्र था।
राजा भागदत्त से पहले एक ओर राजा हुए हैं जो प्राग्ज्योतिष (असम) देश के अधिपति नरकासुर के पुत्र और इंद्र के मित्र थे। वे अर्जुन का बहुत बडा़ प्रशंसक थे, लेकिन कृष्ण के कट्टर प्रतिद्वंद्वी।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में वह कौरव सेना की ओर से लड़े और अपने विशालकाय हाथी के साथ उसने बहुत से योद्धाओं का वध किया। अपने 'सौप्तिक' नामक हाथी पर उसने भीम को भी परास्त किया था।
भगदत्त के पास शक्ति अस्त्र और वैष्णव अस्त्र जैसे दिव्यास्त्र थे। उसके पुत्र का वध नकुल ने किया। 12वें दिन के युद्ध में उसके वैष्णव अस्त्र को श्रीकृष्ण द्वारा विफल किया गया और फिर अर्जुन ने उसका वध किया।
एक बार भौमासुर ने इंद्र के कवच और कुंडल छीन लिए। इस पर कृष्ण ने क्रुद्ध होकर भौमासुर के 7 पुत्रों का वध कर डाला। भूमि ने कृष्ण से भगदत्त की रक्षा के लिए अभयदान मांगा।
भौमासुर की मृत्यु के पश्चात भगदत्त प्राग्ज्योतिष के अधिपति बने। भगदत्त ने अर्जुन, भीम और कर्ण के साथ युद्ध किया। हस्ति युद्ध में भगदत्त अत्यंत कुशल थे। कृतज्ञ और वज्रदत्त नाम के इनके दो पुत्र थे, इनमें कृतज्ञ की मृत्यु नकुल के हाथ से हुई। वज्रदत्त राजा होने पर अर्जुन से पराजित हुआ।
वेबदुनिया हिंदी के अनुसार<< सूर्य की किरण >>
पैनिक बटन करेगा आपकी सुरक्षा :
मोबाइल में 9 दबाते ही पुलिस-रिश्तेदारों को मिलेगी सूचना
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मोबाइल फोन में यह फीचर मार्च से मिलना शुरू
क्राइम के लगातार बढ़ते ग्राफ को देखते हुए केंद्र सरकार एक अहम कदम उठाने जा रही है। मार्च से सभी मोबाइल यूजर्स के फोन में पैनिक बटन होगा, जिसकी सहायता से आप अपने करीबी रिश्तेदारों और पुलिस को आसानी से सूचित कर सकते हैं। इसके लिए यूजर को अपने फोन में 9 नंबर प्रेस करके रखना होगा, इसके बाद यूजर लोकेशन डिटेल तुरंत पुलिस और नौ रिश्तेदारों को पहुंचेगी।
पैनिक बटन कैसे होगा सफल
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इस प्रोग्राम के तहत फीचर फोन में डेडिकेटेड पैनिक बटन होने की भी बात चल रही है। दरअसल, फीचर फोन में इंटरनेट नहीं होने से इनमें जीपीएस काम ही नहीं करता है। जाहिर है, ऐसे मोबाइल से खतरे की स्थि‍ति में अपनी लोकेशन भेज पाना मुश्किल है। हां, अगर मोबाइल और टेलिकॉम कंपनियां मिलकर खास पैनिक बटन पर काम करें तो यह इमरजेंसी में लोगों के काफी काम आ सकता है। बशर्ते इसके लिए इंटरनेट और स्मार्टफोन की जरूरत ना हो।
महिलाओं की सुरक्षा बढ़ेगी
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इस पैनिक बटन का मकसद देश में महिला सुरक्षा लाना है। कई देशों में पैनिक सिस्टम ने महिलाआ सुरक्षा बहाल करने में काफी मदद की है। मेनका गांधी ने इस प्लान के बारे में जानकारी देते हुआ कहा कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हालात ठीक नहीं हैं। में ऐसे फीचर हालात सुधारने में मदद करेंगे।
haribhoomi.com Dec 29, 2015 के अनुसार <<सूर्य की किरण >>
पुनर्जन्म के क़िस्से, जिन्‍हें सुनकर आप रह जाएंगे दंग 
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हम अक़्सर पुनर्जन्म के क़िस्से सुनते-पढ़ते रहते हैं और हमेशा ही इन्हें कोरी कल्पना कहकर ख़ारिज कर देते हैं लेकिन हम यहां आपको कुछ ऐसे क़िस्से बताने जा रहे हैं जिन्हें पढ़कर आप ये सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या वाक़ई कोई दोबारा जन्म ले सकता है? प्रेरक वक्ता डॉ. वैन डायर और उनके सहायक डी गार्नेस ने एक किताब लिखी है मेमोरीज़ ऑफ़ हैवन जिसमें इस तरह के कई क़िस्सों का ज़िक्र है।
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1 : शैली पिछले जन्‍म में जोसफ थी
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शैली सिर्फ तीन साल की थी जब एक दिन अचानक उसने कहा कि उसका असली नाम जोसफ़ है। बेटी की बात सुनकर उसके मां-बाप ने इसे हंसी में उड़ा दिया। लेकिन सेली ने फिर कहा कि वह लड़का थी और वो (एना और रिचर्ड) उसके माता-पिता नहीं हैं और ये घर उसका घर नही है।
शैली ने बताया कि वह समंदर के किनारे एक छोटे से घर में रहती थी और उसके बहुत सारे भाई-बहन थे।
सेली की मां एनी ने कहा कि पहले तो उन्हें लगा कि वह मज़ाक कर रही है लेकिन धीरे-धीरे मामला गंभीर होता गया। सेली हमेशा जहाज़ देखने की ज़िद करती थी जबकि हम कभी भी उसे समंदर किनारे नहीं ले गये थे।
आपको बता दें कि शैली का जन्म भी किसी चमत्कार से कम नहीं था। बहुत कोशिश के बाद सेली इस दुनियां में आई थी। पिता को जहां शैली की बात बक़वास लगती थी वहीं एना को भरोसा होने लगा था कि शैली की बात में कोई न कोई सच्चाई है।
बहरहाल एना को सुझाव दिया गया कि वह परेशान न हो और इंतज़ार करें। छह महीने के बाद सेली ने जोसफ के बारे में बात करनी बंद कर दी और सब कुछ भूल गई।
प्रेरक वक्ता डॉ. वैन डायर और उनके सहायक डी गार्नेस ने एक किताब लिखी है मेमोरीज़ ऑफ़ हैवन जिसमें इस तरह के कई क़िस्सों का ज़िक्र है।
ऐसा ही एक क़िस्सा है चेस्टर की ज़िबी गेस्ट का। उन्होंने बताया कि उनका बेटा रोनी 16 माह का था जब वह ‘दूसरे घर’ की बात करने लगा था जहां वह मम्मी और डैडी के साथ रहता था।
India TV News Desk 28 Dec 2015 के अनुसार
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5: ट्रिस्टैन जो कभी जॉर्ज वाशिंग्टन का ख़ानसामा था

अमेरिका में चार साल का ट्रिस्टैन टीवी पर टॉम एण्ड जेरी कार्टून देख रहा था और उसकी मां रैशेल मार्टिन किचन में खाना बना रही थी। ट्रिस्टैन अचानक किचन में आया और बोला: ‘क्या आपको याद है कि बहुत पहले मैं जॉर्ज वाशिंग्टन (अमेरिकी राष्ट्रपति) के घर खाना बनाता था?’

रैशेल ने भी मज़ाक में कहा कि क्या वो भी वहां थीं। उसने जवाब दिया: ‘हां। हम सांवले रंग के थे लेकिन बाद में मेरी मृत्यु हो गई थी— मैं सांस नहीं ले पा रहा था।’
बेटे की बात से हैरान रैशेल ने पता किया तो पाया कि हरक्यूलिस जॉर्ज वाशिंग्टन का बावर्ची था और उसके तीन बच्चे रिचमंड, ईवी और डेलिया थे। जब उन्होंने अपने बेटे से इन तीनों के बारे में पूछा तो उसे रिचमंड और ईवी की तो याद थी लेकिन डेलिया के बारे कुछ याद नहीं था।
दिलचस्प बात ये है कि बच्चे जब पुनर्जन् के बारे में बात करते हैं तो मरने की भी बात करते है जबकि इतनी कम उम्र में बच्चों को मृत्यु के बारे में पता भी नहीं होता।
India TV News Desk 28 Dec 2015 के अनुसार <<सूर्य की किरण >>