Wednesday 3 December 2014

मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है। 

मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए।
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।

दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।

अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।

मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।

मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।

मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।

रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।

पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।

गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।

गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।

मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।

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बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना -
बच्चों का थोड़ा बड़े होने पर पेशाब करना एक आम समस्या है | इस समस्या के बहुत से कारण हो सकते हैं | कई अनुभवियों के अनुसार स्नायु विकृति के कारण या पेट में कीड़े होने पर भी बच्चे सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं | पेशाब की नली में रोग के कारण भी बच्चा सोते हुए पेशाब कर देता है | कई बार कुछ गरिष्ठ भोजन व ठंडे पदार्थों के अधिक सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है | इस समस्या को समाप्त करने के लिए कोई भी औषधि देने से पूर्व माता-पिता को बच्चे के भोजन की कुछ आदतें सुधारनी जरूरी हैं | बच्चों को सोने से एक घंटा पहले भोजन करा देना चाहिए और सोने के बाद उसे जगाकर कुछ भी खाने-पीने को नहीं देना चाहिए | बच्चे को बिस्तर पर जाने से पहले एक बार पेशाब अवश्य करा देना चाहिए |
कुछ औषधियों द्वारा भी इस समस्या का समाधान सम्भव है -

१- पचास ग्राम अजवायन का चूर्ण कर लें | प्रतिदिन एक ग्राम चूर्ण को रात को सोने से पूर्व बच्चे को खिलाएं | ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से यह रोग ठीक हो जाता है |

२- दो मुनक्कों के बीज निकालकर उसमें १-१ काली मिर्च डालकर बच्चों को रात को सोने से पहले खिला दें | ऐसा दो हफ़्तों तक नियमित रूप से सेवन करने से यह बीमारी दूर हो जाती है |

३- प्रतिदिन दो अखरोट और बीस किशमिश बच्चों को खिलाने से बिस्तर में पेशाब करने की समस्या दूर हो जाती है |

४- रात को सोते समय बच्चों को शहद खिलाने से यह रोग समाप्त हो जाता है |

५- जामुन की गुठलियों को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें | इस चूर्ण का २-२ ग्राम दिन में दो बार पानी के साथ सेवन करने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं |

६- २५० मिली दूध में एक छुहारा डालकर उबाल लें | इसे दो घंटे तक रखा रहने दें | इसके बाद इसमें से छुहारा निकाल कर बच्चे को खिला दें और इस दूध को हल्का गर्म करके ऊपर से पिला दें | ऐसा प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है |

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जैतून (OLIVE ) -
जैतून भूमध्य सागरीय क्षेत्रों,एशिया एवं सीरिया में पाया जाता है | भारत में यह उत्तर पश्चिमी हिमालय ,जम्मू कश्मीर,आंध्र-प्रदेश,कर्नाटक एवं तमिलनाडु में पाया जाता है | इन वृक्षों के फलों से तेल निकाला जाता है । यह तेल उत्तम,स्वच्छ,सुनहरे रंग का तथा हल्की गंधयुक्त होता है | इसके फल अंडाकार,गोलाकार,१.३ -३.५ सेमी लम्बे ,प्रथमतया हरित वर्ण के पश्चात में रक्त एवं पक्वावस्था में बैंगनी-नील कृष्ण वर्ण के होते हैं | कच्चे फलों का प्रयोग अचार एवं साग बनाने के लिए किया जाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अक्टूबर से अप्रैल तक होता है |
इसके बीज में अवाष्पशील तेल पाया जाता है | इसके पुष्प अरसोलिक अम्ल पाया जाता है । इसके फल में तेल ,ऑलिक अम्ल एवं मैसलिनिक अम्ल पाया जाता है | आईये जानते हैं जैतून के विभिन्न औषधीय गुण -

१- जैतून के कच्चे फलों को जलाकर,उसकी राख में शहद मिलाकर,सिर में लगाने से सिर की गंज तथा फुंसियों में लाभ होता है |

२-पांच मिली जैतून पत्र स्वरस को गुनगुना करके उसमें शहद मिलाकर १-२ बूँद कान में डालने से कान के दर्द में आराम होता है |

३- जैतून के कच्चे फलों को पानी में पकाकर उसका काढ़ा बना लें | इस काढ़े से गरारा करने पर दांतों तथा मसूड़ों के रोग मिटते हैं तथा इससे मुँह के छाले भी ख़त्म होते हैं |

४- जैतून के तेल को छाती पर मलने से सर्दी,खांसी तथा अन्य कफज-विकारों का शमन होता है |

५- जैतून के तेल की मालिश से आमवात,वातरक्त तथा जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है |

६- जैतून के पत्तों के चूर्ण में शहद मिलाकर घावों पर लगाने से घाव जल्दी भरते हैं |

७- जैतून के कच्चे फलों को पीसकर लगाने से चेचक तथा दुसरे फोड़े फुंसियों के निशान मिटते हैं| अगर शरीर का कोई भाग अग्नि से जल गया हो तो यह लेप लगाने से छाला नहीं पड़ता |

८- जैतून के पत्तों को पीसकर लेप करने से पित्ती,खुजली और दाद में लाभ होता है |

९- जैतून के तेल को चेहरे पर लगाने से रंग निखरता है तथा सुंदरता बढ़ती है |

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तोरई -
तोरई से हम सब अच्छी तरह से परिचित हैं| यह एक प्रकार की सब्जी है और इसकी खेती भारत में सभी स्थानों पर की जाती है | इसकी प्रकृति ठंडी व तर होती है | ग्रीष्म और वर्षा ऋतू में तोरई की सब्जी का प्रयोग में अधिक किया जाता है | 
विभिन्न रोगों का तोरई से उपचार -

१- तोरई के टुकड़ों को छाया में सुखाकर कूट लें | इसके बाद इन टुकड़ों को नारियल के तेल में चार दिन तक डालकर रखें | फिर इसे उबालें और छानकर बोतल में भर लें | इस तेल से सिर की मालिश करने से बाल काले हो जाते हैं |

२- तोरई के पत्तों को पीस लें | यह लेप कुष्ठ पर लगाने से लाभ मिलता है |

३- तोरई की सब्जी के सेवन से कब्ज दूर होती है और बवासीर में आराम मिलता है |

४- तोरई पेशाब की जलन और पेशाब की बिमारी दूर करने में लाभकारी है |

५- तोरई की जड़ को ठन्डे पानी में घिसकर फोड़े की गाँठ पर लगाने से जल्दी ही गाँठ ख़त्म होने लगती है |

६- तोरई के सेवन से घुटनों के दर्द में आराम मिलता है |

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पसीना -
पसीना आना शरीर की स्वाभाविक क्रिया है | यह शरीर को उसके सामान्य तापमान को बनाये रखने में मदद करता है | हमारे शरीर का सामान्य तापमान ३७ डिग्री सेन्टीग्रेड होता है और सारे कार्यों को संपादित करने हेतु शरीर को यह तापमान बना कर रखने की आवश्यकता होती है | किसी भी कारण से हमारे शरीर के गर्म होने से उसमे मौजूद खून भी ऊष्मा पाकर गर्म हो जाता है और जब यह गर्म खून दिमाग के हाइपोथैलेमस भाग में पहुंचता है तो उसे उत्तेजित कर देता है | इसके फलस्वरूप परानुकम्पी तंत्रिकाओं के माध्यम से शरीर के ताप को सामान्य और काबू में रखने वाली क्रियाएँ जैसे पसीने का स्वेदग्रंथियों में बनना शुरू हो जाता है,जो शरीर के अलग-अलग हिस्सों में उत्सर्जित होने लगता है | पसीना स्वेद ग्रंथियों में बनता है,जो हमारे शरीर की त्वचा के नीचे खासतौर पर हाथों की हथेलियों,पैरों के तलवों और सिर की खाल के नीचे होती हैं | ज्यादा पसीना बहने से शरीर में पानी और लवणों की कमी हो जाती है जिससे सिर में दर्द,नींद और कभी-कभी उल्टी भी आने लगती है | गर्म वातावरण में ज्यादा देर तक खाली पेट काम नहीं करना चाहिए|

१- अधिक पसीना आने पर कभी-कभी रोगी का शरीर ठंडा पड़ने लगता है और उसकी नाड़ी तथा सांस की रफ़्तार बहुत तेज़ हो जाती है | ऐसे में रोगी को टमाटर के रस में नमक और पानी मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहने से लाभ होता है |

२- हरड़ को बारीक पीस लें | जहाँ पसीना अधिक आता हो , इसको मल लें और दस मिनट बाद नहा लें | इससे ज़्यादा पसीना आना बंद हो जाता है |

३- कुछ लोगों को पैरों में अधिक पसीना आता है | ऐसे में पहले पैरों को गर्म पानी में रख लें,फिर ठंडे पानी में रखें और दोनों पैरों को आपस में रगड़ लें | फिर पैरों को बाहर निकालकर किसी कपडे से पौंछ लें | एक हफ्ते तक यह क्रिया लगातार करने से बहुत लाभ होता है |

४- यदि पसीने में बदबू आती हो तो भोजन में नमक का सेवन कम करना चाहिए |

५- गर्मियों में पसीने के साथ- साथ शरीर में घमौरी भी निकल आती हैं | इसके लिए नहाते समय एक बाल्टी पानी में गुलाबजल की २० बूँदें डालकर स्नान करें | रात को ४ चम्मच गुलकंद खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से भी लाभ होता है 

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बिवाई (फटी एड़ियां )- 

पैरों में बिवाई फटना एक आम समस्या है | अधिक चलने फिरने या फिर खुश्की के कारण पैरों की एड़ियों या अंगूठे की जड़ में चमड़ी में दरार सी पढ़ जाती है जिसे हम बिवाई कहते हैं | इसमें बहुत दर्द होता है और चलने भी कठिनाई होती है | हमें पूरे शरीर के साथ ही पैरों की भी पूरी देखभाल करनी चाहिए| अधिकतर यह रोग हमारी अपनी ही लापरवाही और अनदेखी के कारण होता है | आइये आज हम आपको बिवाई फटने पर आजमाए जाने वाले सरल उपचार बताएंगे -
१- अधिक गर्मी या अधिक सर्दी दोनों ही मौसम में अक्सर एड़ियां फट जाती हैं| इसके लिए रात को सोते समय गुनगुने पानी में नींबू निचोड़कर थोड़ी देर उसमें पैर डुबो कर बैठ जाएँ | फिर अच्छी तरह से पैर साफ़ करके उनपर ग्लिसरीन या पतंजलि आयुर्वेद द्वारा निर्मित क्रैक हील क्रीम लगाएं ,लाभ होगा |

२- पपीते के छिलकों को सुखा लें | इसका चूर्ण बनाकर उसमे ग्लिसरीन मिलाकर दो बार फटी एड़ियों पर लगाने से बहुत जल्दी लाभ होता है |

३- थोड़ा सा देसी मोम गर्म करके उसमें थोड़ा सरसों का तेल मिलाकर फटी एड़ियों पर रात को सोते समय लगा लें | इससे बिवाई जल्दी भर जाती हैं |

४- रात को सोने से पहले एड़ियों पर सरसों का तेल लगा लें | सुबह एड़ियों को रगड़कर धो लें | ऐसा लगातार १५ दिन तक करने से फटी एड़ियां ठीक हो जाती हैं |

५- पैरों को गर्म पानी से धोकर अरण्ड का तेल लगाने से बिवाई (फटी एड़ियां ) ठीक हो जाती हैं |

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मसूर -
मसूर का प्रयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है | इससे सभी अच्छी तरह परिचित हैं | समस्त भारत में मुख्यतः शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में, तक उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्णकटिबन्धीय १८०० मीटर ऊंचाई तक इसकी खेती की जाती है | 
यह १५-७५ सेमी ऊँचा,सीधा,मृदु-रोमिल,शाकीय पौधा होता है | इसके पुष्प छोटे,श्वेत,बैंगनी अथवा गुलाबी वर्ण के होते हैं | इसकी फली चिकनी,कृष्ण वर्ण की,६-९ मिलीमीटर लम्बी ,आगरा भाग पर नुकीली तथा हरे रंग की होती है | प्रत्येक फली में २,गोल,चिकने,४ मिमी व्यास के,चपटे तथा हलके गुलाबी से रक्ताभ वर्ण के बीज होते हैं | इन बीजों की दाल बनाकर खायी जाती है | इसका पुष्पकाल दिसंबर से जनवरी तथा फलकाल मार्च से अप्रैल तक होता है |
इसके बीज में कैल्शियम,फॉस्फोरस,आयरन,सोडियम,पोटैशियम,मैग्नीशियम,सल्फर,क्लोरीन,आयोडीन,एल्युमीनियम,कॉपर,जिंक,प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट एवं विटामिन D आदि तत्व पाये जाते हैं | मसूर के औषधीय गुण -

१- मसूर की दाल को जलाकर,उसकी भस्म बना लें,इस भस्म को दांतों पर रगड़ने से दाँतो के सभी रोग दूर होते हैं |

२- मसूर के आटे में घी तथा दूध मिलाकर,सात दिन तक चेहरे पर लेप करने से झाइयां खत्म होती हैं |

३- मसूर के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गले की सूजन तथा दर्द में लाभ होता है |

४- मसूर की दाल का सूप बनाकर पीने से आँतों से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |

५- मसूर की भस्म बनाकर,भस्म में भैंस का दूध मिलाकर प्रातः सांय घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है |

६- मसूर दाल के सेवन से रक्त की वृद्धि होती है तथा दौर्बल्य का शमन होता है |

७- मसूर की दाल खाने से पाचनक्रिया ठीक होकर पेट के सारे रोग दूर हो जाते हैं |

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भृंगराज (भांगरा)-
घने मुलायम काले केशों के लिए प्रसिद्ध भृंगराज के स्वयंजात शाक १८०० मीटर की ऊंचाई तक आर्द्रभूमि में जलाशयों के समीप बारह मास उगते हैं |सुश्रुत एवं चरक संहिता में कास एवं श्वास व्याधि में भृंगराज तेल का प्रयोग बताया गया है | इसके पत्तों को मसलने से कृष्णाभ, हरितवर्णी रस निकलता है, जो शीघ्र ही काला पड़ जाता है | इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं | इसके फलकृष्ण वर्ण के होते हैं | इसके बीज अनेक, छोटे तथा काले जीरे के समान होते हैं| इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से जनवरी तक होता है | आज हम आपको भृंगराज के आयुर्वेदिक गुणों से अवगत कराएंगे -

१- भांगरे का रस और बकरी का दूध समान मात्रा में लेकर उसको गुनगुना करके नाक में टपकाने से और भांगरा के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सिर पर लेप करने से आधासीसी के दर्द में लाभ होता है |

२- जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंह के हो जाते हैं उन्हें सिर में भांगरा के पत्तों के रस की मालिश करनी चाहिए | इससे कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं |

३- भृंगराज के पत्तों को छाया में सुखाकर पीस लें | इसमें से १० ग्राम चूर्ण लेकर उसमें शहद ३ ग्राम और गाय का घी ३ ग्राम मिलाकर नित्य सोते समय रात्रि में चालीस दिन सेवन करने से कमजोर दृष्टी आदि सब प्रकार के नेत्र रोगों में लाभ होता है |

४- दो-दो चम्मच भृंगराज स्वरस को दिन में २-३ बार पिलाने से बुखार में लाभ होता है |

५- दस ग्राम भृंगराज के पत्तों में ३ ग्राम काला नमक मिलाकर पीसकर छान लें | इसका दिन में ३-४ बार सेवन करने से पुराना पेट दर्द भी ठीक हो जाता है |

६- भांगरा के पत्ते ५० ग्राम और काली मिर्च ५ ग्राम दोनों को खूब महीन पीसकर छोटे बेर जैसी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें| सुबह -शाम १ या २ गोली पानी के साथ सेवन करने से बादी बवासीर में शीघ्र लाभ होता है |

७- दो चम्मच भांगरा पत्र स्वरस में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप कुछ ही दिनों में सामान्य हो जाता है |

८- यदि बच्चा मिट्टी खाना किसी भी प्रकार से न छोड़ रहा हो तो भांगरा के पत्तों के रस १ चम्मच सुबह शाम पिला देने से मिट्टी खाना तुरंत छोड़ देता है |

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मोटापा [Obesity]
मोटापा एक बीमारी है जो अनेक कारणों से होती है यथा व्यायाम न करना , हर समय आराम करना , अधिक मात्रा में चिकने व मीठे पदार्थों का सेवन आदि | कुछ लोगों में मोटापा वंशानुगत भी होता है | मोटापे के कारण रक्तचाप बढ़ जाता है और वायु संचरण में रुकावट महसूस होती है| मोटापे के कारण त्वचा फूल जाती है जिससे शरीर पूर्ण रूप से वायु ग्रहण नहीं कर पाता | अधिक चर्बी के कारण हृदय पर भी प्रभाव पढता है जिससे हृदय की गति धीमी हो जाती है|
मोटापे से छुटकारा पाने के लिये जीवनशैली में परिवर्तन की आवश्यकता होती है | आईये जानते हैं इससे छुटकारा पाने के कुछ सरल उपाय -

१- मोटापे से पीड़ित व्यक्ति को प्रातःकाल उठकर टहलना चाहिए तथा आसान व प्राणायाम का अभ्यास नियमित रूप से करना चाहये | ऐसा करने से वजन बहुत तेज़ी से घटता है |

२- २५ मिलीलीटर में नींबू के रस में २५ ग्राम शहद मिलाकर १०० मिलीलीटर गुनगुने पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से मोटापा दूर होता है |

३- सूखा धनिया,मिश्री और मोटी सौंफ को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच सुबह पानी के साथ लेने से अधिक चर्बी कम होकर मोटापा दूर होता है | मधुमेह के रोगी यह प्रयोग न करें |

४- तुलसी के पत्तों का रस १० बूँद और शहद २ चम्मच को एक गिलास पानी में मिलाकर प्रतिदिन पीने से मोटापा कम होता है |

५- टमाटर और प्याज में थोड़ा सा सेंधा नमक और थोड़ी सी पीसी हुई काली मिर्च डालकर भोजन से पहले सलाद के रूप में खाने से भूख कम लगती है और मोटापा कम होता है |

६- रात को सोने से पहले १५ ग्राम त्रिफला चूर्ण को हल्के गर्म पानी में भिगोकर रख दें और सुबह इस पानी को छानकर एक चम्मच शहद मिलकर पी लें | इससे मोटापा जल्दी दूर होता है |

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मानसिक तनाव [Mental Tension ]
अधिकांश लोगों में धर्म के अतिरिक्त जीवन के सम्बन्ध में भी गलत धारणाएँ विद्यमान हैं | अतिमहत्वाकांक्षा ,बौद्धिक प्रतिस्पर्धा , अतिश्रम तथा आंतरिक प्रवृतियाँ ,ये सभी मानसिक शांति के लिए हानिकारक हैं | यही सब कारण जन्म देते हैं मानसिक तनाव को | मानसिक तनाव दूर करने के लिए मनुष्य को अपने अस्तित्व के सम्बन्ध में संतुलित दृष्टिकोण पैदा करना होगा | अतीत के प्रति पश्चाताप या भविष्य को लेकर चिंतित होने के स्थान पर मनुष्य को अपना ध्यान वर्तमान पर केंद्रित करना होगा | जीवन में किसी चीज़ की कमी के कारण मनुष्य में मानसिक तनाव उत्पन्न हो सकता है |
मनुष्य को चिंता कम ,चिंतन अधिक करना चाहिए | प्रतिदिन प्रातःकाल योग व प्राणायाम के अभ्यास द्वारा मानसिक तनाव से पूर्ण रूप से छुटकारा पाया जा सकता है | आज हम आपको मानसिक तनाव दूर करने के कुछ उपाय बताएँगे --

१-दालचीनी को पानी के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिरदर्द और तनाव दूर होता है |

२-एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर सोते समय पीने से मानसिक तनाव दूर होता है |

३-मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु भ्रामरी व उद्गीत प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए |

४-प्रतिदिन चुकंदर का रस पीने और सलाद खाने से मानसिक कमजोरी दूर होती है और स्मरण शक्ति बढ़ती है |

५-लगभग 250 ml गाजर का रस प्रतिदिन पीने से मानसिक तनाव दूर होता है |

६- प्रतिदिन आंवले का मुरब्बा सेवन करने से मानसिक तनाव या उदासी दूर हो जाती है |

७- आश्रम द्वारा निर्मित औषधि मेधावटी का सेवन भी लाभप्रद है , इसे वैद्य के परामर्श अनुसार लें |

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लीची-
लीची समस्त भारत में मुख्यतयः उत्तरी भारत,बिहार,आसाम,पश्चिम बंगाल,उत्तराखंड,आंध्र प्रदेश एवं नीलगिरि क्षेत्रों में इसको घरों व बगीचों में लगाया जाता है | इसके फल गोल,कच्ची अवस्था में हरे रंग के,पकने पर मखमली लाल रंग के होते हैं | फल के अंदर का गूदा सफ़ेद रंग का व मीठा होता है | फल के अंदर एक भूरे रंग का बड़ा सा बीज होता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है |
इसके फल में शर्करा, मैलिक अम्ल,साइट्रिक अम्ल,टार्टरिक अम्ल,विटामिन A ,B ,C तथा खनिज पदार्थ पाये जाते हैं | गर्मियों में जब शरीर में पानी व खनिज लवणों की कमी हो जाती है तब लीची का रस बहुत फायदेमंद रहता है |लीची के औषधीय उपयोग -

१- लीची के फल का सेवन करने से आँतों की बिमारी तथा पेट दर्द में लाभ होता है |

२- लीची का सेवन करने से कमजोरी दूर होती है तथा शरीर पुष्ट होता है |

३- लीची खाने से पित्त की अधिकता कम होती है तथा कब्ज भी ख़त्म होती है |

५- गर्मी के मौसम में आधा कप लीची का रस प्रतिदिन पीने से हृदय को बल मिलता है |

६- बवासीर के रोगियों के लिए लीची का सेवन बहुत लाभकारी है |

७- लीची जल्दी पच जाती है| यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाने वाली तथा लीवर के रोगों में लाभकारी है |
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मसूड़ों की सूजन (GINGIVITIS) -
मसूड़ों पर चोट लगने या अधिक गर्म पदार्थ व सख्त चीज़ें खाने से मसूड़ों पर दबाव पड़ता है,जिससे मसूड़ों में सूजन उत्पन्न हो जाती है | सूजन होने से मसूड़े ढीले पड़ जातें हैं जिससे दांतों का नुकसान होता है | इसका इलाज न होने पर दांत हिलकर गिरने लगते हैं | आज हम आपको मसूड़ों की सूजन के लिए कुछ सरल उपचार बताएंगे -

१- भुनी फिटकरी,सेंधा नमक,काली मिर्च तथा हरड़ का छिलका इन सबको १०-१० ग्राम की मात्रा में लें | इन्हें अच्छी तरह कूट कर छान लें | प्रतिदिन सुबह-शाम इस मंजन को मसूड़ों पर मलने से मसूड़ों का ढीलापन,सूजन व दर्द ख़त्म हो जाता है |
२- सौंठ को पीसकर चूर्ण बना लें | इस ३ ग्राम चूर्ण को पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से मसूड़ों की सूजन में लाभ होता है |

३- सुपारी को जलाकर इसका बारीक चूर्ण बना लें | इसे मसूड़ों पर मंजन की तरह मलने से मसूड़ों का ढीलापन ख़त्म हो जाता है |

४- एक ग्राम पिसा हुआ सेंधा नमक और एक ग्राम मीठे सोडे को १०० मिलीलीटर पानी में उबालें | इस हलके गर्म पानी से प्रतिदिन सुबह- शाम कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन ठीक हो जाती है |

५- प्याज में नमक मिलाकर खाने से एवं प्याज को पीसकर मसूड़ों पर दिन में २-३ बार मलने से मसूड़ों की सूजन ख़त्म हो जाती है और मसूड़े स्वस्थ बन जाते हैं |

६- हरड़,बहेड़ा और आंवला को १०-१० ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर रख लें | इसको ८०० मिलीलीटर पानी में पकाएं ,जब यह २०० मिलीलीटर बच जाए तब इसमें से ३०-६० मिलीलीटर पानी से दिन में दो से तीन बार गरारे करने से मसूड़ों की सूजन ठीक हो जाती है |
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हरा धनिया

हरा धनिया मसाले के रूप में व भोजन को सजाने या सुंदरता बढ़ाने के साथ ही चटनी के रूप में भी खाया जाता है। हमारे बड़े-बुजूर्ग इसके औषधिय गुणों को जानते थे इसीलिए प्राचीन समय से ही धनिए का उपयोग भारतीय भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं हरे धनिए के कुछ ऐसे ही औषधीय गुणों के बारे में...
- इसमें एंटीसेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है इसीलिए अगर चेहरे पर मुंहासे हो तो धनिए की हरी पत्तियों को पीसकर उसमें चुटकीभर हल्दी पाउडर मिलाकर लगाने से लाभ होता है। यह त्वचा की विभिन्न समस्याओं जैसे एक्जीमा, सूखापन और एलर्जी से राहत देता है।
- हरा धनिया वातनाशक होने के साथ-साथ पाचनशक्ति भी बढ़ाता है। धनिया की हरी पत्तियां पित्तनाशक होती हैं। पित्त या कफ की शिकायत होने पर दो चम्मच धनिया की हरी-पत्तियों का रस सेवन करना चाहिए।
- धनिया की पत्तियों में एंटी टय़ुमेटिक और एंटी अर्थराइटिस के गुण होते हैं। यह सूजन कम करने में बहुत मददगार होता है, इसलिए जोड़ों के दर्द में राहत देता है।
- आयरन से भरपूर होने के कारण यह एनिमिया को दूर करने में मददगार होता है। एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ए, सी और कई मिनिरल्स से भरपूर धनिया कैंसर से बचाव करता है।
- हरे धनिया की चटनी बनाकर भी खाई जाती है , इसको खाने से नींद भी अच्छी आती है। डायबिटीज से पीडि़त व्यक्ति के लिए तो यह वरदान है। यह इंसुलिन बढ़ाता है और रक्त का ग्लूकोज स्तर कम करने में मदद करता है।
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हींग (ASAFOETIDA )-
हींग का उपयोग आमतौर पर दाल-सब्जी में छौंक लगाने के लिए किया जाता है इसलिए इसे 'बघारनी 'के नाम से भी जाना जाता है । यह भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों से कश्मीर एवं पंजाब में पायी जाती है | हींग आहार में रूचि उत्पन्न करके अग्नि को प्रदीप्त करती है | 
हींग फेरूला फोइटिस नामक पौधे का चिकना रस है | इसके पौधे के पत्तों और छाल में हलकी चोट देने से दूध निकलता है और वही दूध पेड़ पर सूख कर गोंद बनता है,उसे निकालकर सुखा लिया जाता है,जिसे बाद में हींग के नाम से जाना जाता है |
हींग एक गुणकारी औषधि है | यह हलकी,गर्म और पाचक है | आईये जानते हैं हींग के औषधीय गुणों के विषय में -

१- हींग को पानी में पीसकर पेट पर (नाभी के आसपास) लेप करने से उलटी बंद हो जाती है और पेट दर्द में भी आराम मिलता है |

२- हिंगाष्टक चूर्ण ६ ग्राम को पानी के साथ खाने से हर प्रकार की वायु की बीमारियां मिट जाती हैं |

३- शुद्ध हींग को चम्मच भर पानी में गर्म करके रुई भिगोकर दर्द वाले दांत के नीचे रखें | ऐसा करने से दांत के दर्द में आराम मिलता है |

४- कालीखांसी में बच्चों के सीने पर हींग का लेप करने से लाभ मिलता है |

५- यदि पेट में गैस बन रही हो तो हींग,काला नमक और भुनी हुई अजवायन को पीस कर चूर्ण बना लें | इसे दिन में दो बार गुनगुने पानी से लें ,गैस में लाभ होगा |

६- हींग को तिल के तेल में पकाकर उस तेल की बूँदें कान में डालने से तेज कान का दर्द दूर होता है |

७- अचार की सुरक्षा के लिए बर्तन में पहले हींग का धुंआ दें | उसके बाद उसमे अचार भरें | इस प्रयोग से अचार खराब नहीं होता है |

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टिंडा (डिण्डिश )-
समस्त भारत में पंजाब,उत्तर प्रदेश ,राजस्थान एवं महाराष्ट्र में सब्जी के रूप में इसकी खेती की जाती है | आयुर्वेदीय प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता | इसके फलों में प्रोटीन,वासा,खनिज द्रव्य तथा कार्बोहायड्रेट पाया जाता है | आईये जानते हैं टिंडे के कुछ औषधीय गुणों के बारे में -

१- टिंडे के डण्ठल की सब्जी बनाकर खाने से कब्ज में लाभ होता है |

२- टिंडे की सब्जी बनाकर सेवन करने से मूत्रदाह तथा मूत्राशय शोथ का शमन होता है |

३- टिंडे का रस निकालकर मिश्री मिलाकर पीने से प्रदर तथा प्रमेह में लाभ होता है |

४- टिंडे को पीसकर लगाने से आमवात में लाभ होता है |

५- टिंडे के बीज तथा पत्तों को पीसकर सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है |

६- पके हुए टिंडे के बीजों को निकालकर मेवे के रूप में सेवन करने से यह पौष्टिक तथा बलकारक होता है |

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सौंफ प्रतिदिन घर में प्रयुक्त किए जाने वाले मसालों में से एक है। इसका नियमित उपयोग सेहत के लिए लाभदायक है। प्रायः गर्मियों की सब्ज़ियों में इसका उपयोग किया जाता है क्योंकि इसकी तासीर ठंडी है | 

* सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आँखों की कमजोरी दूर होती है त
था नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।

* सौंफ का अर्क दस ग्राम शहद मिलाकर लें। खाँसी में तत्काल आराम मिलेगा।

* बेल का गूदा 10 ग्राम और 5 ग्राम सौंफ सुबह-शाम चबाकर खाने से अजीर्ण मिटता है और अतिसार में लाभ होता है।

* यदि आपको पेटदर्द होता है, तो भुनी हुई सौंफ चबाइए, तुरंत आराम मिलेगा। सौंफ की ठंडाई बनाकर पीजिए, इससे गर्मी शांत होगी और जी मिचलाना बंद हो जाएगा।

* हाथ-पाँव में जलन की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया कूट-छानकर मिश्री मिलाकर खाना खाने के पश्चात 5-6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।

* सौंफ रक्त को साफ करने वाली एवं चर्मरोग नाशक है।

*मोटी सौंफ को भोजन के बाद प्रतिदिन चबाने से एसिडिटी की समस्या से भी छुटकारा मिल जाता है |

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करौंदा-
करौंदे के विषय में हम सब जानते हैं | इसके कच्चे फल खट्टे होते हैं तथा पके हुए फल कुछ मीठे होते हैं | इसकी हमेशा हरी-भरी रहने वाली झाड़ी होती है| इसके कंटक अत्यंत तीक्ष्ण तथा मजबूत होते हैं | आयुर्वेदीय संहिताओं में दो प्रकार के करौंदों का वर्णन प्राप्त होता है (१)करौंदा तथा (२)करौंदी | करौंदे के फल पकने के बाद काले पड़ जाते हैं इसलिए इनको कृष्णपाक फल कहते हैं | आइये जानते हैं करौंदे के कुछ औषधीय प्रयोगों के विषय में -

१- करौंदे के फल की चटनी बनाकर खाने से मसूड़ों के रोग मिटते हैं |

२- पांच मिलीलीटर करौंदा पत्र स्वरस में शहद मिलाकर चटाने से सूखी खांसी में लाभ होता है |

३- करौंदे के पके हुए फलों को खाने से अरुचि तथा पित्त विकारों में लाभ होता है |

४- जलोदर के रोगी को करौंदे के पत्तों का स्वरस पहले दिन ५ मिली,दुसरे दिन १० मिली,इस तरह प्रतिदिन ५-५ मिली बढ़ाते हुए ५० मिली तक सेवन कराएं तथा पुनः घटाते हुए ५ मिली तक प्रयोग करें| इस प्रकार नित्य प्रातःकाल पिलाने से जलोदर में लाभ होता है |

५- पांच ग्राम करौंदे के पत्तों को पीसकर दही के साथ मिलाकर खिलाने से मिर्गी में लाभ होता है |

६- करौंदे के बीजों को पीसकर पैरों पर लगाने से बिवाई (पैरों का फटना ) में लाभ होता है 

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गुलाब 
गुलाब की सुन्दरता के कारण से गुलाब को फूलों का राजा कहा जाता है | इसका मूल उत्पत्तिस्थान सीरिया है | लेकिन यह भारत में भी प्रायः सर्वत्र बग़ीचों तथा घरों में कलम बनाकर लगाया जाता है | इसके अतिरिक्त समस्त भारत में मुख्यतः उत्तर-प्रदेश , मध्य-प्रदेश तथा गुजरात में इसकी खेती की जाती है | देशी गुलाब लाल रंग का होता है , गुलाब द्वारा बने जाने वाले दो पदार्थ अधिक प्रसिद्ध हैं एक तो गुलकंद और दूसरा गुलाबजल | पुष्प के रंगों के आधार पर इसके कई प्रजातियां होती हैं |
गुलाबी संग का गुलाब का फूल अधिक मात्रा में होता है तथा इसके अलावा गुलाब के फूल सफ़ेद और पीले रंग के भी होते हैं ,इसके फूलों का इत्र भी बनता है | गुलाब की प्रकृति ठंडी होती है |
आयुर्वेद में गुलाब के गुणों की चर्चा अधिक की जाती है क्योँकि इसके उपयोग से कई प्रकार के रोग ठीक हो सकते हैं |
१- यह वात -पित्त को नष्ट करता है,यह शरीर की जलन , अधिक प्यास तथा कब्ज़ को भी नष्ट करता है |
२- गुलाब में विटामिन सी बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है | गर्मी के मौसम में इसके फूलों को पीसकर शरबत में मिलाकर पीना बहुत लाभकारी होता है तथा इसको पीने से ह्रदय व मस्तिष्क को शक्ति मिलती है |

३- अतिसार (दस्त ) होने पर १० ग्राम गुलाब के फूल की पत्ती को ०५ ग्राम मिश्री मिलाकर दिन में ३ बार खाने से लाभ होता है |

४- दो चम्मच गुलकन्द रात को सोते समय गुनगुने दूध या पानी के साथ सेवन करने से कब्ज़ पूरी तरह से नष्ट हो जाती है | गुलकन्द से पेट की गर्मी भी शांत होती है |

५- गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ चबाकर खाने से मसूड़े और दांत मज़बूत होते हैं | इसके सेवन से मुंह की बदबू दूर होकर पायरिया की बीमारी ठीक हो जाती है |

६- गुलाब के फूलों का निकाला हुआ ताज़ा रस कानों में डालने से कान का दर्द ठीक होता है |

७- हैज़ा होने पर आधा कप गुलाबजल में एक निम्बू निचोड़कर उसमें थोड़ी-सी मिश्री मिला लें और ३-३ घंटे के अंतर पर इसे रोगी को पिलायें , इससे हैजे में लाभ होता है |

८- निम्बू का रस व गुलाब का रस बराबर मात्रा में लेकर मिला लें | इस रस को प्रतिदिन दाद पर लगाने से लाभ होता है |

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अंजनहारी (गुहेरी )- 
आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं,उसे ही अंजनहारी,गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के अनुसार विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं |
अंजनहारी का विभिन्न औषधियों से उपचार-

१- छुहारे के बीज को पानी के साथ घिस लें | इसे दिन में २-३ बार अंजनहारी पर लगाने से लाभ होता है |

२- तुलसी के रस में लौंग घिस लें | अंजनहारी पर यह लेप लगाने से आराम मिलता है |

३- हरड़ को पानी में घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से लाभ होता है |

४- आम के पत्तों को डाली से तोड़ने पर जो रस निकलता है,उस रस को गुहेरी पर लगाने से गुहेरी जल्दी समाप्त हो जाती है |

५- प्रतिदिन सुबह-शाम ३-३ ग्राम त्रिफला चूर्ण को,हलके गर्म पानी के साथ सेवन करने से अंजनहारी निकलनी बंद हो जाती हैं |

६- इमली के बीज को पानी में घिस लें | इस लेप को अंजनहारी पर लगाने से बहुत लाभ होता है |

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नकसीर (Epistaxis)-
नाक में से खून बहने के रोग को नकसीर कहते हैं| नकसीर के रोग में अचानक पहले सिर में दर्द होता है और चक्कर आने लगते हैं,इसके बाद नाक से खून आने लगता है | यह रोग सर्दी की अपेक्षा गर्मी में अधिक होता है | नकसीर रोग ज़्यादा समय तक धूप में रहने से हो जाता है | कुछ लोग गर्म पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं जिसकी वजह से भी नाक से खून निकल सकता है | 
नकसीर का उपचार विभिन्न औषधियों द्वारा किया जा सकता है -

१- तुलसी के पत्तों का रस ३-४ बूँद दिन में २-३ बार नाक में डालने से नकसीर में लाभ मिलता है |

२- आधे कप अनार के रस में दो चम्मच मिश्री मिलाकर प्रतिदिन दोपहर के समय पीने से गर्मी के मौसम में नकसीर ठीक हो जाती है | |

३- प्रतिदिन केले के साथ मीठा दूध पीने से नकसीर में लाभ होता है | यह प्रयोग लगातार दस दिन तक अवश्य करना चाहिए |

४- बेल के पत्तों का रस पानी में मिलाकर पीने से नकसीर में लाभ मिलता है |

५- लगभग १५-२० ग्राम गुलकंद को प्रतिदिन सुबह-शाम दूध के साथ खाने से नकसीर का पुराने से पुराना रोग भी ठीक हो जाता है |

६- अगर ज़्यादा तेज़ धूप में घूमने की वजह से नाक से खून बह रहा हो तो सिर पर लगातार ठंडा पानी डालने से नाक का खून बहना बंद हो जाता है |

७- गर्मियों के मौसम में सेब के मुरब्बे में इलायची (कुटी हुई) डालकर खाने में नकसीर में बहुत लाभ होता है |

सावधानियां - नकसीर रोग में रोगी को भोजन में गर्म तासीर वाले पदार्थ तथा मिर्च मसालों का सेवन नहीं करना चाहिए तथा रोगी को धूप में घूमने और आग के पास बैठने से भी बचना चाहिए |

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कढ़ी पत्ता या मीठी नीम
अक्सर हम भोजन में से कढ़ी पत्ता निकाल कर अलग कर देते है | इससे हमें उसकी खुशबु तो मिलती है पर उसके गुणों का लाभ नहीं मिल पाता |कढ़ी पत्ते को धो कर छाया में सुखा कर उसका पावडर इस्तेमाल करने से बच्चे और बड़े भी भी इसे आसानी से खा लेते है ,इस पावडर को हम छाछ और निम्बू पानी में भी मिला सकते है | इसे हम मसालों में , भेल में भी डाल सकते है | इसकी छाल भी औषधि है | हमें अपने घरों में इसका पौधा लगाना चाहिए |
- कढ़ी पत्ता पाचन के लिए अच्छा होता है ,यह डायरिया , डिसेंट्री,पाइल्स , मन्दाग्नि में लाभकारी होता है | यह मृदु रेचक होता है |
- यह बालों के लिए बहुत उत्तम टॉनिक है , कढ़ी पत्ता बालों को सफ़ेद होने से और झड़ने से रोकता है |
- इसके पत्तों का पेस्ट बालों में लगाने से जुओं से छुटकारा मिलता है |
- कढ़ी पत्ता पेन्क्रीआज़ के बीटा सेल्स को एक्टिवेट कर मधुमेह को नियंत्रित करता है |
- हरे पत्ते होने से आयरन , जिंक ,कॉपर , केल्शियम ,विटामिन ए और बी , अमीनो एसिड ,फोलिक एसिड आदि तो इसमें होता ही है |
- इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होते है जो बुढापे को दूर रखते है और कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने नहीं देते .
- जले और कटे स्थान पर इसके पत्ते पीस कर लगाने से लाभ होता है .
- जहरीले कीड़े काटने पर इसके फलों के रस को निम्बू के रस के साथ मिलाकर लगाने से लाभ होता है |
- यह किडनी के लिए लाभकारी होता है |
- यह आँखों की बीमारियों में लाभकारी होता है इसमें मौजूद एंटी ओक्सीडेंट केटरेक्ट को शुरू होने से रोकते है ,यह नेत्र ज्योति को बढाता है .
- यह कोलेस्ट्रोल कम करता है |
- यह इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करता है |
- वजन कम करने के लिए रोजाना कुछ मीठी नीम की पत्तियाँ चबाये|
प्रतिदिन भोजन में कढ़ी पत्ते को दाल , सब्ज़ी में डालकर या चटनी बनाकर प्रयोग किया जा सकता है , जिस प्रकार दक्षिण भारत में किया जाता है |
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अशोक -
यह भारतीय वनौषधियों में एक दिव्य रत्न है | भारतवर्ष में इसकी कीर्ति का गान बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है | प्राचीनकाल में शोक को दूर करने और प्रसन्नता के लिए अशोक वाटिकाओं एवं उद्यानों का प्रयोग होता था और इसी आश्रय से इसके नाम शोकनाश ,विशोक,अपशोक आदि रखे गए हैं| सनातनी वैदिक लोग तो इस पेड़ को पवित्र एवं आदरणीय मानते ही हैं ,किन्तु बौद्ध भी इसे विशेष आदर की दॄष्टि से देखते हैं क्यूंकि कहा जाता है की भगवानबुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष के नीचे हुआ था | अशोक के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र बाग़ बगीचों में तथा सड़कों के किनारे सुंदरता के लिए लगाए जाते हैं | भारत के हिमालयी क्षेत्रों तथा पश्चिमी प्रायद्वीप में ७५० मीटर की ऊंचाई पर मुख्यतः पूर्वी बंगाल, बिहार,उत्तराखंड,कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में साधारणतया नहरों के किनारे व सदाहरित वनों में पाया जाता है| मुख्यतया अशोक की दो प्रजातियां होती हैं ,जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है |
आज हम आपको अशोक के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- श्वास - ६५ मिलीग्राम अशोक बीज चूर्ण को पान के बीड़े में रखकर खिलने से श्वास रोग में लाभ होता है |

२- रक्तातिसार- अशोक के तीन-चार ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त ) में लाभ होता है |

३- रक्तार्श ( बवासीर )- अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में ले कर दस ग्राम मात्रा को रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें , सुबह पानी छान कर पी लें इसी प्रकार सुबह का भिगोया हुआ शाम को पी लें ,इससे खूनी बवासीर में शीघ्र लाभ मिलता है |
४- अशोक के १-२ ग्राम बीज को पानी में पीस कर दो चम्मच की मात्रा में पीस कर पीने से पथरी के दर्द में आराम मिलता है |

५-प्रदर - अशोक छाल चूर्ण और मिश्री को संभाग खरल कर , तीन ग्राम की मात्रा में लेकर गो-दुग्ध प्रातः -सायं सेवन करने से श्वेत -प्रदर में लाभ होता है |
अशोक के २-३ ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है |

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