Wednesday 3 December 2014

अंकुरित अनाज के फायदे ------
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अंकुरित अनाज को स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। अंकुरित अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होता है इसीलिए हेल्दी रहने के लिए अंकुरित अनाज का सेवन बहुत जरूरी है। आपको अंकुरित अनाज के फायदों के बारे में भी पता होना चाहिए। यदि आप यह जान जाएंगे कि अंकुरित अनाज आपको कैसे फिट रखता है तो आप खुद-ब-खुद अंकुरित अनाज का सेवन करेंगे। यह जानना भी जरूरी है कि आखिर आपको अंकुरित अनाज के क्या फायदे हो सकते हैं। आपके लिए यह भी जानना जरूरी है कि क्या अं‍कुरित अनाज कैलोरी से भरपूर होता है या नहीं। इतना ही नहीं आपको यह भी पता होना चाहिए कि अंकुरित अनाज के जरिए आप वजन घटा सकते हैं या नहीं। तो आइए जानें अंकुरित अनाज के फायदे क्या -क्या हैं।

अंकुरित अनाज के फायदे

नाश्ता- आमतौर पर अंकुरित अनाज नाश्ते के रूप में लिया जाना चाहिए। आपको नाश्ता हैवी करना चाहिए। ऐसे में आप अंकुरित अनाज से नाश्ता करेंगे तो आपको बहुत फायदा होगा। इतना ही नहीं आप यदि सोयाबीन, काले चने, मूंग दाल, मोंठ, इत्यादि को अंकुरित करके खाएंगे तो इन खाघ पदार्थों में मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी हो जाएगी।

पाचन तंत्र बनता है मजबूत- अंकुरित अनाज खाने से आपकी पेट संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं। फाइबरयुक्त रेशेदार अंकुरित अनाज खाने से आपका पाचनतंत्र मजबूत बनता है।

पोषक तत्वों से भरपूर- अंकुरित अनाज एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन ए,बी,सी, ई से भरपूर होता है। इतना ही नहीं इसमें फास्फोरस, आयरन, कैल्शियम, जिंक और मैग्नीशियम जैसी पौष्टिक तत्व भी होते हैं। एंटीऑक्सीडेंट से जहां व्यक्ति का इम्‍यून सिस्टम मजबूत होता है वहीं कैल्शियम से हडि्डयों में ताकत आती है। आयरन रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाने में सहायक है। अन्य पोषक तत्व व्यक्ति को स्वस्थ और फिट रखने में कारगर है।

प्रोटीन युक्त-अंकुरित अनाज में बहुत सारे प्रोटीन होते हैं जो कि शरीर को मजबूत रखने और बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है।

कम कैलोरी युक्त-अंकुरित अनाज में कैलोरी बहुत कम होती है जो कि मोटे लोगों के लिए बहुत फायदेमंद हैं। इतना ही नहीं जो लोग नहीं चाहते कि उनका वजन बढ़े, उन्हें भी अंकुरित अनाज खाना चाहिए।


अंकुरित अनाज के अन्य फायदे -

यह रक्त को साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह एक प्राकृतिक पौष्टिक आहार है, इसके कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है।

यह वसायुक्त है और व्‍यक्‍ित को मोटापे से बचाता है।

यह बहुत ही स्वादिष्ट फूड है।

इस आसानी से पचाया जा सकता है।

दालों इत्यादि को अंकुरित करने से इनकी पौष्टिकता अधिक बढ़ जाती है।

व्यक्ति को चुस्त-दुरूस्त और स्वस्थ रहने के लिए अंकुरित अनाज से बढि़या कोई उपाय नहीं।

यदि आपको भूख ना लगने की समस्या है तो अंकुरित अनाज खाकर इस समस्या को हल किया जा सकता है।

नवजात शिशु में मानसिक, शारीरिक दुर्बलताओं को दूर किया जा सकता है यदि गर्भवस्था के दौरान महिला अंकुरित अनाज का सेवन करती है।

अंकुरित अनाज को स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें टमाटर,प्याज,धनिया,खीरा,नींबू,काली मिर्च और नमक जैसी चीजों को मिलाया जा सकता है।


अंकुरित गेहूं खाने से होते हैं ये जबरदस्त फायदे, दूर होती है ये प्रॉब्लम्स 

स्वस्थ रहने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो यह बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है। वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन आज हम बताते हैं इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे....
- अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल भी चमकदार बने रहते हैं। किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
- अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया भी सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित गेहूं का सेवन फायदेमंद है। अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन ए, बी, सी, ई पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं।
- अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुध्द करता है। अंकुरित गेहूं के दानों को चबाकर खाने से शरीर की कोशिकाएं शुध्द होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद मिलती है।
- अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन होते हैं तो शरीर को फिट रखते हैं और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है।
- अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स को बेअसर कर देतीं हैं और साथ ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।]

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टमाटर (रक्तवृन्ताक) -
टमाटर मूलतः उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्रों में पाया जाता है,परन्तु अब सर्वत्र भारत में इसकी खेती की जाती है | टमाटर में कई प्रकार के पौष्टिक गुण पाये जाते हैं | टमाटर में पाये जाने वाले विटामिन गर्म करने से ख़त्म नहीं होते हैं | टमाटर में विटामिन A ,B और C तथा B काम्प्लेक्स पाया जाता है | २०० ग्राम टमाटर से लगभग ४० कैलोरी ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है | टमाटर में कैल्शियम भी अन्य फल सब्ज़ियों की तुलना में अधिक पाया जाता है | दांतों व हड्डियों की कमज़ोरी दूर करने के लिए टमाटर का सेवन बहुत उपयोगी है | इसमें लौह,पोटाश,चूना,लवण तथा मैग्नीस जैसे तत्व भी होते हैं इसलिए इसके सेवन से शरीर में रक्त की वृद्धि होती है | टमाटर लीवर,गुर्दा और अन्य रोगों को ठीक करने में लाभकारी है |
टमाटर के कुछ औषधीय प्रयोग -

१- मधुमेह की बीमारी में टमाटर का सेवन अति लाभकारी है | इसके सेवन से रोगी के मूत्र में शक्कर आना धीरे-धीरे कम हो जाता है |

२- टमाटर के सेवन से चिड़चिड़ापन और मानसिक कमज़ोरी दूर होती है | यह मानसिक थकान को दूर करके मस्तिष्क को संतुलित बनाए रखता है |

३- प्रतिदिन लगभग २०० ग्राम टमाटर के सेवन से रतौंधी और अल्पदृष्टि (आँखों से कम दिखाई देना) में लाभ होता है | इस प्रयोग से पेट के कीड़े भी मर जाते हैं |

४- दिन में दो बार टमाटर या उसके रस के सेवन से कब्ज़ ख़त्म होती है तथा आमाशय व आँतों की सफाई हो जाती है |

५- जिन लोगों को मुँह में बार-बार छाले होते हों उन्हें टमाटर का सेवन अधिक करना चाहिए | टमाटर के रस में पानी मिलाकर कुल्ला करें,इससे भी मुँह के छाले ख़त्म होते हैं|

६- अगर चेहरे पर काले दाग या धब्बे हों तो टमाटर के रस में रुई भिगोकर लगाने से काले दाग-धब्बे ख़त्म हो जाते हैं |
टमाटर का उपयोग आमवात,अम्लपित्त,सूजन,संधिवात और पथरी के रोगियों को नहीं करना चाहिए,क्यूंकि यह उनके लिए हानिकारक होता है | मांसपेशियों में दर्द तथा शरीर में सूजन हो तो टमाटर नहीं खाना चाहिए |

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हरी मिर्च

हरी मिर्च लगभग पूरे भारतवर्ष में पाई जाती है | यह कई किस्मों में होती है , इसका पौधा छोटा-सा होता है | हरी मिर्च का स्वाद तीखा होता है और इसकी प्रकृति गर्म होती है | हरी मिर्च का नाम सुनते ही कुछ लोगों को उस का तीखापन याद करके पसीने आ जाते है तो कुछ के मुंह में पानी
हरी मिर्च को यदि तरीके से खाया जाए अर्थात उचित मात्र में खाया जाये तो वो औषधि का भी काम करती है आइये जानते है कैसे

गर्मी के दिनों में यदि हम भोजन के साथ हरी मिर्च खाएं और फिर घर से बाहर जाएँ तो कभी भी लू नहीं लग सकती |

खून में हेमोग्लोबिन की कमी होने पर रोजाना खाने के साथ हरी मिर्च खाए कुछ ही दिन में आराम मिल जायेगा |

मिर्च में अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रीक एसिड, ग्लीसरिक एसिड, मैलिक एसिड जैसे कई तत्व होते है जो हमारे स्वास्थ के साथ – साथ शरीर की त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद होता है

मिर्च के सेवन से भूख कम लगती है और बार बार खाने की इच्छा नहीं होती जिससे वजन बढ़ने का खतरा कम हो जाता है।

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किवी

ऐसे कई पहाड़ी फल जो हमें बहुत स्वादिष्ट लगते हैं किन्तु उनके लाभों की हमें जानकारी ही नहीं होती। आइये इन्हीं फलों में एक की विशेषता आपको बताते हैं। इस फल का नाम है किवी जो एंटीएजिंग से लेकरडायबिटीज़ तक में लाभकारी होता है।
1- इसमें विटामिन ई और एंटीआक्सीडेंट्स की बड़ी मात्रा पायी जाती है और यह त्वचा की कोशिकाओं को लंबे समय तक ठीक रखता है औरप्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है।
2- इसमें विटामिन सी सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है जो संतरेकी अपेक्षा दोगुनी मात्रा में होता है। यह शरीर में आयरन सोखने में सहायता प्रदानकरता है विशेषकर अनीमिया के उपचार मेंइसका सेवन बहुत लाभदायक है।
3- इसमें ग्लाइकेमिक इंडेक्स कम मात्रा मेंहोता है जिससे रक्त में ग्लूकोज़ नहीं बढ़ता।इस कारण यह डायबिटीज़, हृदय रोग और वज़न कम करने में बहुत लाभकारी है।
4- गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 400से 600 माइक्रोग्राम फ़ोलिक एसिडकी आवश्यकता होती है। यह फ़ोलिक एसिड का एक बेहतरीन स्रोत है। गर्भ में बच्चे के मस्तिष्क के विकास में इसकी बहुत बड़ी भूमिका होती है।
5- किवी में मौजूद फ़ाइबर शरीर का पाचन तंत्र ठीक रखने में सहायता प्रदान करता है विशेष कर क़ब्ज़ की समस्या में इसका सेवन बहुत लाभदायक है।
6- इसमें केले जितना ही पोटैशियम पाया जाता है जो ओस्टियोपोरोसिस के रोगियों के लिए लाभदायक होता है और हड्डियों और मांसपेशियों को मज़बूत करने में सहायता प्रदान करता है।
7- किवी को यदि पोषक तत्वों का समूह कहा जाए तो ग़लत न होगा। इसमें 27 से अधिक पोषक तत्व मौजूद हैं। यह फ़ाइबर, विटामिन सी और ई, कैरोटेनाइड्स, एंटीआक्सीडेंट्स और कई प्रकार के मिनिरल्स से भरपूर हैं।

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पीपल 
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है |
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है|
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है |
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है |
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए |
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है|
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा |
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है |
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे |
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है |
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है |
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है |
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है |

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दूब घास (दुर्वा) --------------

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दूब या 'दुर्वा' (वैज्ञानिक नाम- 'साइनोडान डेक्टीलान") वर्ष भर पाई जाने वाली घास है, जो ज़मीन पर पसरते हुए या फैलते हुए बढती है। हिन्दू धर्म में इस घास को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है। इसके नए पौधे बीजों तथा भूमीगत तनों से पैदा होते हैं। वर्षा काल में दूब घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूब सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है। यह घास औषधि के रूप में विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है।

महाकवि तुलसीदास ने दूब को अपनी लेखनी से इस प्रकार सम्मान दिया है-
"रामं दुर्वादल श्यामं, पद्माक्षं पीतवाससा।"

प्रायः जो वस्तु स्वास्थ्य के लिए हितकर सिद्ध होती थी, उसे हमारे पूर्वजों ने धर्म के साथ जोड़कर उसका महत्व और भी बढ़ा दिया। दूब भी ऐसी ही वस्तु है। यह सारे देश में बहुतायत के साथ हर मौसम में उपलब्ध रहती है। दूब का पौधा एक बार जहाँ जम जाता है, वहाँ से इसे नष्ट करना बड़ा मुश्किल होता है। इसकी जड़ें बहुत ही गहरी पनपती हैं। दूब की जड़ों में हवा तथा भूमि से नमी खींचने की क्षमता बहुत अधिक होती है, यही कारण है कि चाहे जितनी सर्दी पड़ती रहे या जेठ की तपती दुपहरी हो, इन सबका दूब पर असर नहीं होता और यह अक्षुण्ण बनी रहती है।
दूब को संस्कृत में 'दूर्वा', 'अमृता', 'अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से जानते हैं। दूब घास पर उषा काल में जमी हुई ओस की बूँदें मोतियों-सी चमकती प्रतीत होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में हरी-हरी ओस से परिपूर्ण दूब पर भ्रमण करने का अपना निराला ही आनंद होता है। पशुओं के लिए ही नहीं अपितु मनुष्यों के लिए भी पूर्ण पौष्टिक आहार है दूब। महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियाँ खाई थीं, वह भी दूब से ही निर्मित थी|अर्वाचीन विश्लेषकों ने भी परीक्षणों के उपरांत यह सिद्ध किया है कि दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है। आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधीय गुणों के कारण दूब को 'महौषधि' में कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। दूब के कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-

1- संथाल जाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।
2 -इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है।
3- दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है।
4- दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है।
5- नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है।
6- इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है।
7- दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन ठीक हो जाता है।
8- इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है।
9- यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है।
10- दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है।
11- इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है।
12- दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है।
13- इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है।

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मुलेठी (यष्टीमधु ) -
मुलेठी से हम सब परिचित हैं | भारतवर्ष में इसका उत्पादन कम ही होता है | यह अधिकांश रूप से विदेशों से आयातित की जाती है| मुलेठी की जड़ एवं सत सर्वत्र बाज़ारों में पंसारियों के यहाँ मिलता है | चरकसंहिता में रसायनार्थ यष्टीमधु का प्रयोग विशेष रूप से वर्णित है | सुश्रुत संहिता में यष्टिमधु फल का प्रयोग विरेचनार्थ मिलता है | मुलेठी रेशेदार,गंधयुक्त तथा बहुत ही उपयोगी होती है | यह ही एक ऐसी वस्तु है जिसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है | मुलेठी वातपित्तशामक है | यह खाने में ठंडी होती है | इसमें ५० प्रतिशत पानी होता है | इसका मुख्य घटक ग्लीसराइज़ीन है जिसके कारण ये खाने में मीठा होता है | इसके अतिरिक्त इसमें घावों को भरने वाले विभिन्न घटक भी मौजूद हैं | मुलेठी खांसी,जुकाम,उल्टी व पित्त को बंद करती है | यह पेट की जलन व दर्द,पेप्टिक अलसर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में भी बहुत उपयोगी है |
आज हम आपको मुलेठी के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- मुलेठी चूर्ण और आंवला चूर्ण २-२ ग्राम की मात्रा में मिला लें | इस चूर्ण को दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह- शाम चाटने से खांसी में बहुत लाभ होता है |

२- मुलेठी-१० ग्राम
काली मिर्च -१० ग्राम
लौंग -०५ ग्राम
हरड़ -०५ ग्राम
मिश्री - २० ग्राम
ऊपर दी गयी सारी सामग्री को मिलाकर पीस लें | इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण सुबह शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी और जुकाम,गले की खराबी,सिर दर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं |

३- एक चम्मच मुलेठी का चूर्ण एक कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |

४- मुलेठी को मुहं में रखकर चूंसने से मुहँ के छाले मिटते हैं तथा स्वर भंग (गला बैठना) में लाभ होता है |

५- एक चम्मच मुलेठी चूर्ण में शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट और आँतों की ऐंठन व दर्द का शमन होता है |

६- फोड़ों पर मुलेठी का लेप लगाने से वो जल्दी पक कर फूट जाते हैं |

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टॉन्सिल [Tonsils ]

गले के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मांस की गांठ सी होती है जिसे हम टॉन्सिल कहते हैं | इनमें पैदा होने वाली सूजन को टॉन्सिलाइटिस कहा है | इसमें गले में बहुत दर्द होता है तथा खाने का स्वाद भी पता नहीं चलता है | चावल , ज्यादा ठन्डे पेय पदार्थों का सेवन , मैदा तथा ज्यादा खट्टी वस्तुओं का अधिक प्रयोग करना टॉन्सिल बढ़ने का मुख्य कारण है | इन सबसे अम्ल (गैस ) बढ़ जाती है जिससे कब्ज़ हो जाती है | सर्दी लगने से , मौसम के अचानक बदल जाने से , जैसे गर्म से अचानक ठंडा हो जाना तथा दूषित वातावरण में रहने से भी कई बार टॉन्सिल बढ़ जाते हैं | इस रोग के होते ही ठण्ड लगने के साथ बुखार भी आ जाता है , गले पर दर्द के मरे हाथ नहीं रखा जाता और थूक निगलने में भी परेशानी होती है | आइये जानते हैं टॉन्सिलाइटिस के कुछ उपचार ---

१- गर्म (गुनगुने ) पानी में एक चम्मच नमक डालकर गरारे करने से गले की सूजन में काफी लाभ होता है |

२-दालचीनी को पीस कर चूर्ण बना लें | इसमें से चुटकी भर चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर प्रितिदिन 3 बार चाटने से टॉन्सिल के रोग में सेवन करने से लाभ होता है | इसी प्रकार तुलसी की मंजरी के चूर्ण का उपयोग भी किया जा सकता है |

३-एक गिलास पानी में एक चम्मच अजवायन डालकर उबाल लें | इस पानी को ठंडा करके उससे गरारे और कुल्ल्ला करने से टॉन्सिल में आराम मिलता है |

४-दो चुटकी पिसी हुई हल्दी, आधी चुटकी पिसी हुई कालीमिर्च और एक चम्म्च अदरक के रस को मिलाकर आग पर गर्म कर लें और फिर शहद में मिलाकर रात को सोते समय लेने से दो दिन में ही टॉन्सिल की सूजन दूर हो जाती है |

५-गले में टॉन्सिल होने पर सिंघाड़े को पानी में उबालकर उसके पानी से कुल्ला करने
से आराम होता है |

भोजन में बिना नमक की उबली हुई सब्ज़ियाँ खाने से टॉन्सिल में जल्दी आराम आ जाता है | मिर्च-मसाले , ज्यादा तेल की सब्ज़ी , खट्टी व ठंडी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए | गर्म पदार्थों के सेवन के पश्चात ठंडे पदार्थों का सेवन कदापि न करें |

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आधासीसी (माइग्रेन) -
आधासीसी या माइग्रेन दर्द अति कष्टकारी होता है | इसमें सिर के आधे भाग में दर्द होता है | माइग्रेन में रोगी की आँखों के सामने अँधेरा सा छा जाता है सुबह उठते ही चक्कर आने लगते हैं | जी मिचलाना,उल्टी होना,अरुचि पैदा होना आदि आधासीसी रोग के लक्षण हैं | मानसिक व शारीरिक थकावट,चिंता करना,अधिक गुस्सा करना,आँखों का अधिक थक जाना,अत्यधिक भावुक होना तथा भोजन का ठीक तरह से न पचना आदि माइग्रेन रोग के कुछ कारण हैं| आज हम आपको माइग्रेन के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के विषय में बताएंगे -

१- एक चौथाई चम्मच तुलसी के पत्तों के चूर्ण को सुबह - शाम शहद के साथ चाटने से आधासीसी के दर्द में आराम मिलता है |

२- दस ग्राम सौंठ के चूर्ण को लगभग ६० ग्राम गुड़ में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें | इन्हे सुबह शाम खाने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |

३- सिर के जिस हिस्से में दर्द हो उस नथुने में ४-५ बूँद सरसों का तेल डालने से आधे सिर का दर्द ठीक हो जाता है |

४- सुबह खाली पेट आधा सेब प्रतिदिन सेवन करने से माइग्रेन में बहुत लाभ होता है |

५- सौंफ,धनिया और मिश्री सबको ५-५ ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें | इसे दिन में तीन बार लगभग ३-३ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |
६- नियमित रूप से सातों प्राणायाम का अभ्यास करें , लाभ होगा |
माइग्रेन से पीड़ित रोगी को स्टार्च,प्रोटीन और अधिक चिकनाई युक्त भोजन नहीं करना चाहिए | फल,सब्जियां और अंकुरित दालों का सेवन लाभकारी होता है |

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फोड़े - फुन्सियाँ -
गर्मी और बरसात के मौसम में फोड़े-फुन्सियाँ निकलना एक आम समस्या है | शरीर के रोम कूपों में 'एसको' नामक जीवाणु इकठ्ठे हो जाते हैं जो संक्रमण पैदा कर देते हैं जिसके कारण शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुन्सियां निकल आती हैं | इसके अलावा खून में खराबी पैदा होने की वजह से,आम के अधिक सेवन से,मच्छरों के काटने से या कीटाणुओं के फैलने के कारण भी फुन्सियां निकल आती हैं| भोजन में गर्म पदार्थों के अधिक सेवन से भी फोड़े-फुन्सियाँ निकल आते हैं |

फोड़े-फुन्सियाँ होने पर भोजन में अधिक गर्म पदार्थ,मिर्च-मसाले,तेल,खट्टी चीज़ें और अधिक मीठी वस्तुएं नहीं खानी चाहियें | फोड़े-फ़ुन्सियों को ढककर या पट्टी बांधकर ही रखना चाहिए |
फोड़े-फुन्सियों का विभिन्न औषधियों से उपचार -

१-नीम की ५-८ पकी निम्बौलियों को २ से ३ बार पानी के साथ सेवन करने से फुन्सियाँ शीघ्र ही समाप्त हो जाती हैं |

२- नीम की पत्तियों को पीसकर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है |

३- दूब को पीसकर लेप बना लें | पके फोड़े पर यह लेप लगाने से फोड़ा जल्दी फूट जाता है |

४- खून के विकार से उत्पन्न फोड़े-फुन्सियों पर बेल की लकड़ी को पानी में पीसकर लगाने से लाभ मिलता है |

५- तुलसी और पीपल के नए कोमल पत्तों को बराबर मात्रा में पीस लें | इस लेप को दिन में तीन बार फोड़ों पर लगाने से फोड़े जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं |

६- फोड़े में सूजन,दर्द और जलन आदि हो तो उसपर पानी निकाले हुए दही को लगाकर ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिए | यह पट्टी दिन में तीन बार बदलनी चाहिए,लाभ होता है |

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कमर दर्द -
प्रायः कमर दर्द से सभी का सामना होता है | आजकल की व्यस्त जीवन शैली में कई बार शरीर में कमर दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है | यह अधिकतर उन लोगों में होता है जो अधिक समय तक खड़े होकर,बैठकर या गलत तरीके से बैठकर और लेटकर कार्य करते हैं | अधिक मुलायम गद्दे पर बैठने और सोने से भी कमर दर्द हो जाता है | कई बार किसी कारण से कमर की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो बहुत कष्टपूर्ण होता है | कमर दर्द के और भी कारण हो सकते हैं जैसे ठण्ड लगने से,पानी में भीगने से अथवा और किसी रोग की वजह से |
कमर दर्द का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -

१- सौंठ के चूर्ण को अलसी के तेल में पका लें | इस तेल से कमर की मालिश करने से कमर दर्द में लाभ होता है |

२- अजवायन को एक पोटली में बाँध लें | फिर इस पोटली को तवे पर गर्म करें तथा इससे कमर की सिकाई करें ,लाभ होगा |

३- आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है |

४- लगभग ५ ग्राम सौंफ,१० ग्राम तेजपात और दस ग्राम अजवायन को एक लीटर पानी में उबालें | जब १०० ग्राम शेष रह जाए तब इसे ठंडा करके पी लें | इससे ठण्ड के कारण उत्पन्न हुए कमर दर्द में राहत मिलती है |

५- अरण्ड के पत्ते पर एक तरफ सरसों का तेल लगाकर तवे पर हल्का सा सेंक लें | फिर इसे तेल की तरफ से कमर पर बाँध लें | यह प्रयोग रात्रि में सोते समय करना चाहिए | सुबह तक कमर दर्द में बहुत आराम मिलता है |

६- आधा लीटर सरसों के तेल में १२५ गर्म लहसुन की पोथियों को कूटकर डालें | फिर उसे लहसुन के जलने तक गर्म करें और ठंडा होने पर छानकर शीशी में भर लें| इस तेल की मालिश से कमर दर्द मिट जाता है |

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