Tuesday 4 November 2014

कटहल (Jackfruit )-
कटहल का प्रयोग बहुत से कामों में किया जाता है | कच्चे कटहल की सब्जी बहुत स्वादिष्ट बनती है तथा पक जाने पर अंदर का गूदा खाया जाता है | कटहल के बीजों की सब्जी भी बनाई जाती है | आमतौर पर यह सब्जी की तरह ही प्रयोग में आता है परन्तु कटहल में कई औषधीय गुण भी पाये जाते हैं| कटहल में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स,कार्बोहाइड्रेट्स के अलावा विटामिन्स भी पाये जाते हैं | 
कटहल के औषधीय गुण -

१- पके हुए कटहल के सेवन से गैस और बदहज़मी में लाभ होता है |

२- कटहल की पत्तियों को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण एक छोटी चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पेट के अलसर में आराम मिलता है |

३- कटहल की छाल घिसकर लेप बना लें | यह लेप मुहँ के छालों पर लगाने से छाले दूर होते हैं |

४- कटहल के पत्तों को गर्म करके पीस लें और इसे दाद पर लेप करें | इससे दाद ठीक होता है |

५- कटहल के पत्तों पर घी लगाकर एक्ज़िमा पर बाँधने से आराम मिलता है

६- कटहल के ८-१० बीजों के चूर्ण का क्वाथ बनाकर पीने से नकसीर में लाभ होता है |

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नारियल [Coconut ]

यह मूल रूप से प्रशांत महासागरीय द्वीप एवं म्यांमार , श्रीलंका एवं अन्य उष्णकटिबंधीय समुद्रतटवर्ती प्रदेशों में पाया जाता है | भारत में यह विशेषतः केरल , उड़ीसा , पश्चिम बंगाल , महाराष्ट्र , गुजरात एवं दक्षिण भारत में सर्वत्र पाया जाता है | जिस प्रकार देवताओं में श्री गणेश जी प्रथम प्रतिष्ठित किए गए हैं , ठीक उसी प्रकार फलों में नारियल का स्थान है | आठ यह श्रीफल कहलाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल वर्षपर्यंत तक होता है |
नारियल के पेड़ समुद्र के किनारे पर उगते हैं | लगभग ७ से ८ साल बाद इस पर फल लगते हैं | नारियल का फल और पानी खाने-पीने में शीतल होता है । नारियल में कार्बोहाइड्रेट और खनिज क्षार काफी मात्रा में पाया जाता है | इसमें विटामिन और अनेक लाभदायक तत्व मिलते हैं | नारियल के पानी में मैग्नीशियम और कैल्शियम भी होता है | सूखे नारियल में इन तत्वों की मात्रा कम होती है |
विभिन्न रोगों में नारियल से उपचार ----
१- नारियल-पानी पीने से उलटी आना और अधिक प्यास लगना कम हो जाता है |
२- नारियल के पानी में नमक डालकर पीने से पेट के दर्द में आराम मिलता है |
३-नारियल के तेल की सिर में मालिश करने से बालों का गिरना बंद हो जाता है |
४-प्रतिदिन नारियल पानी चेहरे पर लगाने से चेहरे के कील- मुँहासे , दाग- धब्बे और चेचक के निशान दूर हो जाते हैं |
५ -सूखे नारियल को घिसकर बुरादा बना लें , फिर एक कप पानी में एक चौथाई कप बुरादा भिगो दें | दो घंटे बाद इसे छानकर नारियल का बुरादा निकालकर पीस लें | इसकी चटनी-सी बनाकर भिगोए हुए पानी में घोलकर पी जाएँ | इस प्रकार इसे प्रतिदिन तीन बार पीने से खांसी , फेफड़ों के रोगऔर टी.बी. में लाभ होता है।|
६- नारियल के तेल और कपूर को मिलाकर एग्ज़िमा वाले स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है |
७- शरीर के किसी भाग के जलने पर प्रतिदिन उस स्थान पर नारियल का तेल लगाने से जलन भी शांत होती है तथा निशान भी नहीं पड़ता है |

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कत्था (खदिर, खैर )-
कत्थे का पेड़ भारत में १५०० मीटर की ऊंचाई तक पंजाब, ,उत्तर पश्चिम हिमालय,मध्यभारत,बिहार,महाराष्ट्र,राजस्थान,कोंकण,आसाम,उड़ीसा ,दक्षिण भारत एवं पश्चिम बंगाल में पाया जाता है | इसके पेड़ नदियों के किनारे अधिक होते हैं | कत्थे का पेड़ बबूल के पेड़ की तरह होता है | जब इसके पेड़ के तने लगभग एक फुट मोटे हो जाते हैं तब इन्हें काटकर छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर भट्टियों में पकाकर काढ़ा बनाया जाता है | फिर इसे चौकोर रूप दिया जाता है जिसे कत्था कहते हैं |
आइये जानते हैं कत्थे के कुछ औषधीय प्रयोग -

१- कत्था/खदिर आदि द्रव्यों से निर्मित खदिरादि वटी चूसने से सभी प्रकार के मुखरोगों में लाभ होता है तथा दांतों के दीर्घकाल तक स्थिरता प्रदान करता है |

२- कत्थे को सरसों के तेल में घोलकर प्रतिदिन २ से ३ बार मसूड़ों पर मलने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं तथा मसूड़ों से खून आनाव मुँह से बदबू आना बंद हो जाता है |

३- कत्थे के काढ़े को पानी में मिलाकर प्रतिदिन नहाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है |

४- यदि घाव में से पस निकल रहा हो तो कत्थे को घाव पर बुरकने से पस निकलना बंद हो जाता है तथा घाव सूखने लगता है |

५- सफ़ेद कत्था,माजूफल और गेरू को पीसकर फोड़ों पर लगाने से सिर के फोड़े ठीक होते हैं |

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अमरबेल -
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यह एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है तथा यह वृक्षों के ऊपर फैलती है , भूमि से इसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता अतः आकाशबेल आदि नामों से भी पुकारी जाती है | अमरबेल एक परोपजीवी और पराश्रयी लता है , जो रज्जु [रस्सी ] की भांति बेर , साल , करौंदे आदि वृक्षों पर फ़ैली रहती है | इसमें से महीन सूत्र निकलकर वृक्ष की डालियों का रस चूसते रहते हैं , जिससे यह तो फलती- फूलती जाती है , परन्तु इसका आश्रयदाता धीरे - धीरे सूखकर समाप्त हो जाता है | आज हम अमरबेल के कुछ औषधीय गुणों की चर्चा कर रहे हैं ----

१-अमरबेल को तिल के तेल में या शीशम के तेल में पीसकर सर पर लगाने से गंजेपन में लाभ होता है तथा बालों की जड़ मज़बूत होती हैं | यह प्रयोग धैर्य पूर्वक लगातार पांच से छह सप्ताह करें |
२- लगभग ५० ग्राम अमरबेल को कूटकर १ लीटर पानी में पकाकर , बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते हैं तथा बालों का झड़ना व रुसी की समस्या इत्यादि भी दूर होती हैं |
३- अमरबेल के १०-२० मिलीलीटर रस को जल के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल पीने से मस्तिष्कगत तंत्रिका [Nervous System ] रोगों का निवारण होता है |
४- अमरबेल के १०मिली स्वरस में ५ ग्राम पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर खूब घोटकर नित्य प्रातः काल ही रोगी को पिला दें | तीन दिन में ही ख़ूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है |
५- अमरबेल को पीसकर थोड़ा गर्म कर लेप करने से गठिया की पीड़ा में लाभ होता है तथा सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है । अमरबेल का काढ़ा बनाकर स्नान करने से भी वेदना में लाभ होता है |
६- अमरबेल के २-४ ग्राम चूर्ण को या ताज़ी बेल को पीस कर थोड़ी सी सोंठ और थोड़ा सा घी मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भी भर जाता है |

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पिप्पली (Indian long pepper) -
वैदेही,कृष्णा,मागधी,चपला आदि पवित्र नामों से अलंकृत,सुगन्धित पिप्पली भारतवर्ष के उष्ण प्रदेशों में उत्पन्न होती है | वैसे इसकी चार प्रजातियों का वर्णन आता है परन्तु व्यवहार में छोटी और बड़ी दो प्रकार की पिप्पली ही आती है | बड़ी पिप्पली मलेशिया,इंडोनेशिया और सिंगापुर से आयात की जाती है,परन्तु छोटी पिप्पली भारतवर्ष में प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होती है | इसका वर्ष ऋतू में पुष्पागम होता है तथा शरद ऋतू में इसकी बेल फलों से लद जाती है | बाजारों में इसकी जड़ पीपला मूल के नाम से मिलती है | यह सुगन्धित,आरोही अथवा भूमि पर फैलने वाली,काष्ठीय मूलयुक्त,बहुवर्षायु,आरोही लता है | इसके फल २.-३ सेमी लम्बे,२. मिमी चौड़े,कच्चे शहतूत जैसे,किन्तु छोटे व बारीक,पकने पर लाल रंग के व सूखने पर धूसर कृष्ण वर्ण के होते हैं | इसके फलों को ही पिप्पली कहते हैं |
पिप्पली के विभिन्न औषधीय गुण -

१- पिप्पली को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |

२- पिप्पली और वच चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर ३ ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से दो बार दूध या गर्म पानी के साथ सेवन करने से आधासीसी का दर्द ठीक होता है |

३- पिप्पली के १-२ ग्राम चूर्ण में सेंधानमक,हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांत पर लगाने से दांत का दर्द ठीक होता है |

४- पिप्पली,पीपल मूल,काली मिर्च और सौंठ के समभाग चूर्ण को २ ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से जुकाम में लाभ होता है |

५- पिप्पली चूर्ण में शहद मिलाकर प्रातः सेवन करने से,कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियमित होती है तथा हृदय रोगों में लाभ होता है |

६-पिप्पली और छोटी हरड़ को बराबर-बररबर मिलाकर,पीसकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह- शाम गुनगुने पानी से सेवन करने पर पेट दर्द,मरोड़,व दुर्गन्धयुक्त अतिसार ठीक होता है |

७- आधा चम्मच पिप्पली चूर्ण में बराबर मात्रा में भुना जीरा तथा थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रातः खाली पेट सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है |
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कढ़ी पत्ता (मीठा नीम,कैडर्य) -
अत्यन्त प्राचीन काल से भारत में मीठे नीम का उपयोग किया जा रहा है | कई टीकाकारों ने इसे पर्वत निम्ब तथा गिरिनिम्ब आदि नाम दिए हैं | इसके गीले और सूखे पत्तों को घी या तेल में तल कर कढ़ी या साग आदि में छौंक लगाने से ये अति स्वादिष्ट,सुगन्धित हो जाते हैं | दाल में इसके पत्तों का छौंक देने से दाल स्वादिष्ट बन जाती है,चने के बेसन में मिलाकर इसकी उत्तम रुचिकर पकौड़ी बनाई जाती है| आम,इमली आदि के साथ इसके पत्तों को पीसकर बनाई गई चटनी अत्यंत स्वादिष्ट व सुगन्धित होती है | इसके बीजों तथा पत्तों में से एक सुगन्धित तेल निकला जाता ही जो अन्य सुगन्धित तेलों के निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल क्रमशः फ़रवरी से अप्रैल तक तथा अप्रैल से अगस्त तक होता है | इसकी पत्तियों में ओक्सालिक अम्ल,कार्बोहाइड्रेट,कैल्शियम,फॉस्फोरस,अवाष्पशील तेल,लौह,थाइमिन,राइबोफ्लेविन,तथा निकोटिनिक अम्ल पाया जाता है |
कढ़ी पत्ते के औषधीय प्रयोग-

१- मीठे नीम के पत्तों को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिर दर्द ठीक होता है |

२- मीठे नीम के पत्तों को पानी में उबालकर गरारे करने से छाले ठीक होते हैं तथा २-४ पत्तियों को चबा कर खाने से मुँह की दुर्गन्ध दूर होती है |

३- पांच से दस मिली मीठे नीम के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर पीने से कफ विकारों का शमन होता है |

४- मीठे नीम के २-४ फलों को पीसकर खिलाने से अतिसार में लाभ होता है |

५- कढ़ी पत्ते के ५-१० पत्तों को पानी में पीसकर पिलाने से उल्टी में लाभ होता है |

६- मीठे नीम के पत्तों के रस में नींबू का रस मिलकर लेप करने से पित्ती तथा दाद में लाभ होता है |
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ईसबगोल (Spogel seeds) -
ईसबगोल का मूल उत्त्पत्ति स्थान ईरान है और यहीं से इसका भारत में आयात किया जाता है | इसका उल्लेख प्राचीन वैद्यक शास्त्रों व निघण्टुओं में अल्प मात्रा में पाया जाता है| 10वीं शताब्दी पूर्व के अरबी और ईरान के अलहवीं और इब्नसीना नामक हकीमों ने अपने ग्रंथों में औषधि द्रव्य के रूप में ईसबगोल का निर्देश किया था | तत्पश्चात कई यूनानी निघण्टुकारों ने इसका खूब विस्तृत विवेचन किया | फारस में मुगलों के शासनकाल में इसका प्रारम्भिक प्रचार यूनानी हकीमों ने इसे ईरान से यहां मंगाकर किया | तब से जीर्ण प्रवाहिका और आंत के मरोड़ों पर सुविख्यात औषधोपचार रूप में इसका अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा और आज भी यह आंत्र विकारों की कई उत्तमोत्तम औषधियों में अपना खास दर्जा रखती है |इनके बीजों का कुछ आकार प्रकार घोड़े के कान जैसा होने से इसे इस्पगोल या इसबगोल कहा जाने लगा | आजकल भारत में भी इसकी खेती गुजरात,उत्तर प्रदेश,पंजाब और हरियाणा में की जाती है| औषधि रूप में इसके बीज और बीजों की भूसी प्रयुक्त की जाती है | बीजों के ऊपर सफ़ेद भूसी होती है | भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुआव बना लेती है जो गंधरहित और स्वादहीन होती है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल दिसम्बर से मार्च तक होता है |
ईसबगोल के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव -
१- ईसबगोल को यूकलिप्टस के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |

२- ईसबगोल को दही के साथ सेवन करने से आंवयुक्त दस्त और खूनी दस्त के रोग में लाभ मिलता है |

३- एक से दो चम्मच ईसबगोल की भूसी सुबह भिगोई हुई शाम को तथा शाम की भिगोई हुई सुबह सेवन करने से सूखी खांसी में पूरा लाभ मिलता है |

४- चार चम्मच ईसबगोल भूसी को एक गिलास पानी में भिगो दें और थोड़ी देर बाद उसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |

५- ईसबगोल को पानी में लगभग दो घंटे के लिए भिगोकर रखें | इस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ले करने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं |

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अनानास (Pineapple) -
अनानास ब्राज़ील का आदिवासी पौधा है | क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1493 AD में कैरेबियन द्वीप समूह के ग्वाडेलोप नाम के द्वीप में इसे खोजा था और इसे 'पाइना दी इंडीज' नाम दिया | कोलंबस ने यूरोप में अनानास की खेती की शुरुआत की थी | भारत में अनानास की खेती की शुरुआत पुर्तगालियों ने 1548 AD में गोवा से की थी | अनानास की डालियाँ काटकर बोने से उग आती हैं |
अनानास का फल बहुत स्वादिष्ट होता है | इसके कच्चे फल का स्वाद खट्टा तथा पके फल का स्वाद मीठा होता है । इसके फल में थाइमिन,राइबोफ्लेविन,सुक्रोस,ग्लूकोस,कैफीक अम्ल,सिट्रिक अम्ल,कार्बोहाईड्रेट तथा प्रोटीन पाया जाता है | आज हम आपको अनानास के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- अनानास फल के रस में मुलेठी, बहेड़ा और मिश्री मिलाकर सेवन करने से दमे और खाँसी में लाभ होता है|

२- यदि शरीर में खून की कमी हो तो अनानास खाने व रस पीने से बहुत लाभ होता है | इसके सेवन से रक्तवृद्धि होती है और पाचनक्रिया तेज़ होती है |

३- अनानास के पके फल के बारीक टुकड़ों में सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर खाने से अजीर्ण दूर होता है |

४- अनानास के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें बहेड़ा और छोटी हरड़ का चूर्ण मिलाकर देने से अतिसार और जलोदर में लाभ होता है |

५- अनानास के पत्तों के रस में थोड़ा शहद मिलाकर रोज़ २ मिली से १० मिली तक सेवन करने से पेट के कीड़े ख़त्म हो जाते हैं |

६- पके हुए अनानास का रस निकालकर उसे रूई में भिगो कर मसूड़ों पर लगाने से दांतों का दर्द ठीक होता है |
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आलू -
आलू को अनाज के पूरक आहार का स्थान प्राप्त है | यह सब्जियों का राजा माना जाता है क्योंकि दुनिया भर में सब्जियों के रूप में आलू का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है | आलू में कैल्शियम,लोहा,विटामिन -बी तथा फॉस्फोरस बहुत अधिक मात्रा में होता है |
आलू के छिलके निकाल देने पर उसके साथ कुछ पोषक तत्व भी चले जाते हैं अतः आलू का छिलके सहित सेवन अधिक लाभप्रद है | आइए जानते हैं आलू के कुछ औषधीय गुण -

१- आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है | आलू को तलकर,तीखे मसाले,घी आदि लगाकर खाने से मोटापा बढ़ता है | आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख पर भूनकर खाना लाभकारी है |

२- चोट लगने पर यदि शरीर में नील पड़ जाए तो उसपर कच्चा आलू पीसकर लगाने से लाभ होता है |

३- कच्चे आलू का आधा-आधा कप रस दिन में दो बार पीने से पेट की गैस में आराम मिलता है |

४- शरीर के जले हुए भाग पर आलो पीस कर लगाएं | ऐसा करने से जलन ख़त्म होकर आराम आ जाता है |

५- चेहरे पर कच्चा आलू रगड़ने से झाँइयों व मुहाँसों आदि के दाग मिटकर चेहरा कान्तियुक्त बनता है |
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पान

पान का प्रयोग भारतवर्ष में सिर्फ़ खाने के लिए ही नहीं अपितु पूजन , यज्ञ तथा अतिथियों के स्वागत इत्यादि में भी किया जाता है , पान को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है , जिससे आज हम आपका परिचय करने जा रहे हैं -------

१- मुँह के छालों के लिए पान के पत्तों के रस में शहद मिलाकर लगाने से लाभ होता है , यह प्रयोग दिन में दो -तीन बार किया जा सकता है | 

२-घाव के ऊपर पान के पत्ते को गर्म करके बांधें तो सूजन और दर्द शीघ्र ही ठीक होकर घाव भी ठीक हो जाता है |

३-शरीर में होने वाली पित्ती होने पर , एक चम्मच फिटकरी को थोड़े से पानी में डालें , तीन खाने वाले पान के पत्ते लें | फिटकरी वाले पानी में मिलाकर इन पत्तों को पीस लें | इस मिश्रण को पित्ती के चिकत्तों पर लेप करें , लाभ होगा |

४ - मोच आने पर पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर गर्म करें , फिर इसे मोच पर बांधें शीघ्र लाभ होगा |
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नौसादर (SALLAMONIAC ) -
१- नौसादर-४ ग्राम,सुहागा-४ ग्राम और सौंफ-२ ग्राम को अच्छी तरह बारीक पीसकर उसमें ४ ग्राम मीठा सोडा मिलाकर रख लें| इसमें से आधे से दो ग्राम की मात्रा में सुबह,दोपहर और शाम को रोगी को देने से पेट की बीमारियों में आराम होता है |
२- फिटकरी,सेंधानमक तथा नौसादर बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें | इसे प्रतिदिन सुबह-शाम मसूड़ों व दाँतों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं |
३- नौसादर को पानी में घोलकर ,उसमें एक साफ़ कपड़ा भिगोकर गांठ के ऊपर रखने से लाभ होता है |
४- एक कप पानी में एक चुटकी नौसादर डालकर दिन में तीन बार पीने से खांसी ठीक हो जाती है |
५- नौसादर और कुटकी को जल में मिलाकर माथे पर लेप की तरह लगाने से आधासीसी के दर्द में लाभ होता है |
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चना (चणक,GRAM ) -
समस्त भारत में मुख्यतः उत्तर प्रदेश ,पश्चिम बंगाल एवं गुजरात में इसकी खेती की जाती है| चने का प्रयोग मुख्यतः शाक के रूप में किया जाता है | इसकी प्रकृति गर्म होती है | चने की दो प्रजातियां होती है -१ काला चना २-काबुली चना | 
आज हम आपको काले चने के विषय में बताएंगे | चना शरीर में ताकत लाने वाला और भोजन में रूचि पैदा करने वाला होता है | सूखे भुने हुए चने वात तथा कुष्ठ को नष्ट करने वाले होते हैं | उबले हुए चने कोमल,रुचिकारक,शीतल,हल्के,कफ तथा पित्तनाशक होते हैं |
विभिन्न रोगों में चने से उपचार -

१- रात को सोते समय थोड़े भुने हुए चने खाकर ऊपर से गुड़ खा लें,इससे खांसी में लाभ होता है |

२- चने को छः गुने जल में भिगोकर दूसरे दिन प्रातःकाल उसका पानी छानकर १०-१२ मिली की मात्रा में पीने से उलटी में लाभ होता है |

३- एक या दो मुट्ठी चने धोकर रात को भिगो दें | सुबह पिसा हुआ जीरा और सौंठ चनों पर डालकर खाएं,घंटे भर बाद चने भिगोए हुए पानी को भी पी लें, इस प्रयोग से कब्ज दूर होती है |

४- चने और जौं को बराबर मात्रा में पीस लें | इस आटे की रोटी के सेवन से मधुमेह में बहुत लाभ होता है |

५- चने को दही के साथ पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से तुरंत आराम आ जाता है |

६- चने के आटे का उबटन बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की काँति बढ़ती है तथा मुहांसे व झाँईं मिटती हैं |

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प्याज़ 
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हम सभी प्रायः प्याज़ का प्रयोग सलाद के रूप में तथा दाल -सब्ज़ी का स्वाद बढ़ाने के लिए करते हैं , आइये आज जानते हैं इसके कुछ सरल औषधीय प्रयोग -
१- यदि जी मिचला रहा हो तो प्याज़ काटकर उसपर थोड़ा काला -नमक व थोड़ा सेंधा -नमक डालकर खाएँ , लाभ होगा | 
२-पेट में अफ़ारा होने पर दिन में तीन बार निम्न औषधि का प्रयोग किया जा सकता है - प्याज़ का रस -२० ml ; काला -नमक -१ ग्राम व हींग -१/४ ग्राम लें ,इन सबको मिलाकर रोगी को पिलाएँ |
३-हिचकी की समस्या होने पर १० ग्राम प्याज़ के रस में थोड़ा सा काला -नमक व सेंधा -नमक मिलकर लेने से लाभ होता है |
४- प्रातःकाल उठकर खाली पेट १ चम्मच प्याज़ का रस पीने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है |
५- यदि किसी के चेहरे पर काले दाग़ हों तो उनपर प्याज़ का रस लगाने से कालापन दूर होता है तथा चेहरे की चमक भी बढ़ती है |
६-एसिडिटी की समस्या में भी प्याज़ उपयोगी है | ३० ग्राम दही लें , उसमे ६० ग्राम सफ़ेद प्याज़ का रस मिलाकर खाएँ , यह प्रयोग दिन में तीन बार करें तथा कम से कम लगातार सात दिन तक करें , लाभ होगा |

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जुक़ाम (COLD)-
जुक़ाम होना एक आम समस्या है | जुक़ाम का रोग किसी मौसम में हो सकता है परन्तु यह अक्सर दो मौसमों के बीच में होता है जैसे गर्मी और सर्दी | जुक़ाम प्रदूषण के कारण भी हो सकता है | किसी गर्म जगह से एकदम ठंडी जगह पर चले जाने के कारण,पेट में कब्ज,गर्म के ऊपर एकदम ठंडी वस्तुओं का सेवन,बारिश में अधिक भीगने तथा कसरत करने के तुरंत बाद नहाने से जुक़ाम हो जाता है |
जुक़ाम का विभिन्न औषधियों से उपचार -

१- दस तुलसी के पत्ते तथा पांच काली मिर्च पानी में चाय की भांति उबालें तथा थोड़ा सा गुड़ डालें | इसे छानकर पीने से जुक़ाम में बहुत लाभ होता है |

२- अजवायन को पीसकर एक पोटली बना लें ,उसे दिन में कई बार सूंघने से बंद नाक खुल जाती है|

३- एक कप गर्म पानी में नींबू और चुटकी भर सेंधानमक डालकर सुबह खालीपेट और शाम को पीने से जुक़ाम ठीक हो जाता है |

४- लगभग १०० मिली पानी में तीन लौंग डालकर उबाल लें | उबलने पर जब पानी आधा रह जाए तब इसके अंदर थोड़ा सा नमक मिलाकर पीने से जुक़ाम दूर होता है |

५- पांच ग्राम अदरक के रस में पांच ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन ३-४ बार चाटने से जुक़ाम में बहुत आराम मिलता है |
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नाशपाती के कुछ औषधीय प्रयोग -

१- दस से बीस मिली नाशपाती फल के रस में शक़्क़र डालकर पीने से सिर के दर्द में लाभ होता है |

२- नाशपाती के फलों का सेवन करने से फेफड़ों के विकारों में लाभ होता है |

३- नाशपाती का सेवन करने से पाचनतंत्र से सम्बंधित बीमारियों में लाभ होता है |

४- दस से बीस मिली नाशपाती रस में एक से दो ग्राम बेलगिरी चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खूनी दस्त में लाभ होता है

५- पंद्रह से बीस नाशपाती फल स्वरस में सेंधानमक,काली मिर्च तथा भुना हुआ जीरा मिलाकर पिलाने से अरुचि में लाभ होता है |

६- नाशपाती के मुरब्बे में २५० ग्राम नागकेशर चूर्ण मिलाकर सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है |

७- नाशपाती के पत्रों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा विकारों में लाभ होता है तथा घाव में लगाने से घाव जल्दी भरता है |
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इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम) -
बड़ी इलायची के फल एवं सुगन्धित कृष्ण वर्ण के बीजों से भला कौन अपरिचित हो सकता है | भारतीय रसोई में यह इस तरह से रची बसी है कि इसका प्रयोग मसालों से लेकर मिष्ठानों तक में किया जाता है |इसकी एक प्रजाति मोरंग इलायची भी होती है| यह पूर्वी हिमालय प्रदेश में विशेषतः नेपाल,पश्चिम बंगाल,सिक्किम,आसाम आदि में पायी जाती है | इसका छिलका मोटा तथा मटमैले रंग का धारीदार होता है | इसके बीज कृष्ण वर्ण के शर्करायुक्त गाढ़े गूदे के कारण आपस में चिपके हुए होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है |
इसके बीजों में ग्लाइकोसाइड,सिनिओल,लिमोनीन,टर्पिनिओल,फ्लेवोनोन आदि रसायन तथा वाष्पशील तेल पाया जाता है | इसके तेल में सिनिओल की अधिकता पायी जाती है |
आज हम आपको बड़ी इलायची के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- बड़ी इलायची को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से एवं बीजों को पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है |

२- बड़ी इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर छालों पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं |

३- यदि दांत में दर्द हो रहा हो तो बड़ी इलायची और लौंग के तेल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीड़ायुक्त दांत पर लगाएं ,दर्द में शांति मिलेगी |

४- यदि अधिक थूक या लार आती हो तो बड़ी इलायची और सुपारी को बराबर-बराबर पीसकर ,१-२ ग्राम की मात्रा में लेकर चूसते रहने से यह कष्ट दूर हो जाता है |

५- पांच से दस बूँद बड़ी इलायची तेल में मिश्री मिलाकर नियमित सेवन करने से दमा में लाभ होता है |

६- दो ग्राम सौंफ के साथ बड़ी इलायची के ८-१० बीजों का सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है |

७- एक ग्राम बड़ी इलायची बीज चूर्ण को दस ग्राम बेलगिरी के साथ मिलाकर प्रातः सायं सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है |

८- पिसी हुई राई के साथ बड़ी इलायची चूर्ण मिलाकर २-३ ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से लीवर सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |

९- एक से दो बड़ी इलायची के चूर्ण को दिन में तीन बार नियमित सेवन करने से शरीर का दर्द ठीक होता है |
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प्राकृतिक दिनचर्या [भाग - १ ]
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प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है | हमें प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करना चाहिये क्योंकि इसी से हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं | 
आज हम आपको प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों से अवगत कराएंगे --
१-प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए । सुबह उठते समय बायीं करवट लेकर उठना चाहिए | 
२-उठने के बाद तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी , तीन-चार गिलास की मात्रा में बासी मुँह पीना चाहिए | सुबह के समय , खाली पेट ,चाय का सेवन नहीं करना चाहिए |
३-शौच के लिए जाने में किसी प्रकार का आलस्य नहीं करना चाहिए तथा शौच के समय दांतों को दबाकर रखना चाहिए , इससे हमारे दांत मजबूत होते हैं । सूर्य की ओर मुख करके मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए |
४-दांतों की सफ़ाई के लिए नीम की दातुन का प्रयोग करना चाहिए |
५-सुबह के समय हमें अवश्य ही टहलना चाहिए तथा प्राणायाम व आसन का अभ्यास भी अवश्य करना चाहिए |
प्राकृतिक दिनचर्या [भाग - २ ]
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प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है | हमें प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करना चाहिये क्योंकि इसी से हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं |
आज हम आपको प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों से अवगत कराएंगे ----
१-स्नान करने से पहले १० मिनट के लिए शरीर की मालिश करनी चाहिए | यदि प्रतिदिन यह संभव न हो तो सप्ताह में एक दिन ऐसा अवश्य करें |
२- भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए तथा भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए , इससे पाचन सम्बन्धी विकार नहीं होते हैं |
३-भोजन करने के बाद थोड़ी देर वज्रासन में अवश्य बैठना चाहिए | रात्रि के भोजन के पश्चात 10-15 मिनट अवश्य टहलना चाहिए |
४-स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए | यदि हम प्रतिदिन चार - पांच तुलसी और नीम की पत्तियों का सेवन करें तो इससे शरीर में रोग नहीं होते हैं |
५-दिन में नहीं सोना चाहिए क्योंकि यह स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है |
६- रात को सोने से पूर्व पैर धोकर सोने से नींद अच्छी आती है | हमेशा पश्चिम या उत्तर दिशा की ओर पैर करके ही सोना चाहिए अथवा पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर सर करके ही सोना चाहिए | विशषकर विद्यार्धियों को पूर्व दिशा की ओर सर करके सोना चाहिए |
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पुदीना -
गर्मी में पुदीना खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। ये एक बहुत अच्छी औषधि भी है साथ ही इसका सबसे बड़ा गुण यह है कि पुदीने का पौधा कहीं भी किसी भी जमीन, यहां तक कि गमले में भी आसानी से उग जाता है। यह गर्मी झेलने की शक्ति रखता है। इसे किसी भी उर्वरक की आवश्यकता नहीं पडती है।
थोड़ी सी मिट्टी और पानी इसके विकास के लिए पर्याप्त है। पुदीना को किसी भी समय उगाया जा सकता है। इसकी पत्तियों को ताजा तथा सुखाकर प्रयोग में लाया जा सकता है।

- हरा पुदीना पीसकर उसमें नींबू के रस की दो-तीन बूँद डालकर चेहरे पर लेप करें। कुछ देर बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें। कुछ दिनों के प्रयोग से मुँहासे दूर हो जाएँगे तथा चेहरा निखर जाएगा।

-अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और -आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।

- पेट में अचानक दर्द उठता हो तो अदरक और पुदीने के रस में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करे।
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तुलसी के कुछ स्वानुभूत प्रयोग -

1. तुलसी रस से बुखार उतर जाता है। इसे पानी में मिलाकर हर दो-तीन घंटे में पीने से बुखार कम हो जाता है।

2. जुकाम में इसके सादे पत्ते खाने से भी फायदा होता है।

3. तुलसी के तेल में विटामिन सी,कैरोटीन,कैल्शियम और फोस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं।

4. साथ ही इसमें एंटीबैक्टेरियल,एंटीफंगल और एंटीवायरल गुण भी होते हैं।

5. यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।साथ ही यह पाचन क्रिया को भी मज़बूत करती हैं।

6. तुलसी के प्रयोग से हम स्वास्थय और सुंदरता दोनों को ही ठीक रख सकते हैं।
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जीरा (जीरक) -
जीरा श्वेत,श्याम और अरण्य (जंगली) तीन प्रकार का होता है | श्वेत या सफ़ेद जीरे से सब परिचित हैं क्यूंकि इसका प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है | औषधियों के रूप में भी जीरे का बहुत उपयोग किया जाता है | सफ़ेद जीरा दाल-सब्जी छौंकने के काम आता है तथा शाह जीरे का उपयोग विशेष रूप से दवा के रूप में किया जाता है | जीरे की खेती समस्त भारत,विशेषकर उत्तर प्रदेश,राजस्थान और पंजाब में की जाती है |
जीरे के औषधीय गुण -

१- जीरा,धनिया और मिश्री तीनों को बराबर मात्रा में मलाकर पीस लें | इस चूर्ण की २-२ चम्मच सुबह-शाम सादे पानी से लेने पर अम्लपित्त या एसिडिटी ठीक हो जाती है |

२- जीरा,सेंधा नमक,काली मिर्च,सौंठ और पीपल सबको समान मात्रा में लेकर पीस लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में भोजन के बाद ताजे पानी से लेने पर अपच में लाभ होता है |

३- पांच ग्राम जीरे को भूनकर तथा पीसकर दही की लस्सी में मिलाकर सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है |

४- १५ ग्राम जीरे को ४०० मिली पानी में उबाल लें | जब १०० ग्राम शेष रह जाये तब २०-४० मिली की मात्रा में प्रातः-सांय पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं |

५- एक चम्मच भुने हुए जीरे के बारीक़ चूर्ण में एक चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन भोजन के बाद सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है |

६- जीरे को बारीक़ पीस लें | इस चूर्ण का ३-३ ग्राम गर्म पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करने से पेट के दर्द तथा बदन दर्द से छुटकारा मिलता है |
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परवल (पटोल ) -
परवल उत्तर भारत के मैदानी प्रदेशों में आसाम ,पूर्व बंगाल में पाया जाता है | इसकी दो प्रजातियां होती हैं १-पटोल २- कटु पटोल | मधुर परवल का प्रायः शाक बनाया जाता है व कड़वे परवल का प्रयोग औषधि कार्य के लिए किया जाता है |
परवल में प्रोटीन, वसा,खनिज,लवण,कार्बोहाइड्रेट निकोटिनिक अम्ल,राइबोफ्लेविन,विटामिन C ,थायमिन तथा ट्राइकोजेंथिन पाया जाता है | परवल की सब्जी खाने से भोजन पचाने की क्रिया बढ़ जाती है | इसके प्रयोग से पित्तज्वर,पुराना बुखार,पीलिया व पेट के रोग दूर होते हैं |
विभिन्न रोगों का परवल से उपचार -

१- परवल की सब्जी को घी में पकाकर खाने से आँखों की बीमारियों में लाभ होता है |

२- पांच मिली परवल के पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है |

३- परवल की सब्जी खाने से खाज-खुजली तथा कोढ़ का रोग दूर होता है |

४- परवल की हरी पत्तियों का रस २ चम्मच की मात्रा में पीने से जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) में लाभ होता है |

५- परवल पाचक,हृदय के लिए हितकारी,हल्का,पाचन शक्ति बढ़ाने वाला तथा गर्म है | यह खांसी,बुखार,कृमि तथा त्रिदोषनाशक है |
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फालसा [परुषक] -
फालसा भारत में साधारणतया गंगा के मैदानी भागों एवं पूर्वी बंगाल को छोड़कर पंजाब, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, महाराष्ट्र एवं आंध्र प्रदेश में पाया जाता है | इसका फल पीपल के फल के बराबर होता है | यह मीठा होता है तथा गर्मी के दिनों में इसका शरबत भी बनाकर पीते हैं | फालसा में प्रोलिन ,लायसिन, ग्लूटेरिक अम्ल,शर्करा,खनिज,कैरोटीन तथा विटामिन C पाया जाता है | 

१- फालसे के सेवन से गैस और एसिडिटी के रोगियों को बहुत लाभ होता है |

२- फालसे और शहतूत का शरबत पीने से लू से बचा जा सकता है | फालसे के साथ सेंधानमक खाने से लू नहीं लगती है |

३- सुबह-शाम फालसे का शर्बत पीने से गर्मी के कारण होने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है |

४- दस मिली फालसे के रस को पिलाने से पेट के दर्द में लाभ होता है |

५- फालसे की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से गीली खुजली ठीक हो जाती है |

६- फालसे का शरबत बनाकर पीने से दाह का शमन होता है |

७- खून की कमी होने पर फालसे का सेवन करना चाहिए,इसे खाने से खून बढ़ता है |
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चकोतरा -
चकोतरा संतरे की प्रजाति का फल है | यह सभी रसदार फलों में सबसे बड़े आकार का फल है | चकोतरे में संतरे की अपेक्षा सिट्रिक अम्ल अधिक तथा शर्करा कम होती है | इसका छिलका पीला तथा अंदर का भाग लाल रंग का होता है | इसमें नींबू और संतरे के सभी गुण मिलते हैं | चकोतरा शीतल प्रकृति का होता है तथा इसका स्वाद खट्टा और मीठा होता है | यह प्यास को रोकता है तथा भूख बढ़ाता है | इसके सेवन से चेहरे का रंग साफ़ होता है |
विभिन्न रोगों में चकोतरे का उपयोग -

१- चकोतरे के पत्तों का दस- बीस मिली रस प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से उँगलियों का कांपना ठीक हो जाता है |

२- चकोतरे के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से शरीर की थकावट दूर होती है |

३- मलेरिया में चकोतरे का रस पीने से लाभ होता है क्यूंकि इसके रस में कुनैन होता है |

४- चकोतरे के रस में पानी मिलकर पीने से बुखार में लाभ होता है तथा अधिक प्यास लगना बंद हो जाता है |

५- चकोतरे के सेवन से जुकाम से भी बचा जा सकता है |
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फिटकरी -
फिटकरी आमतौर पर सब घरों में प्रयोग होती है | यह लाल व सफ़ेद दो प्रकार की होती है | अधिकतर सफ़ेद फिटकरी का प्रयोग ही किया जाता है | यह संकोचक अर्थात सिकुड़न पैदा करने वाली होती है | फिटकरी में और भी बहुत गुण होते हैं | आज हम आपको फिटकरी के कुछ गुणों के विषय में बताएंगे -

१- यदि चोट या खरोंच लगकर घाव हो गया हो और उससे रक्तस्त्राव हो रहा हो तो घाव को फिटकरी के पानी से धोएं तथा घाव पर फिटकरी का चूर्ण बनाकर बुरकने से खून बहना बंद हो जाता है |

२- आधा ग्राम पिसी हुई फिटकरी को शहद में मिलाकर चाटने से दमा और खांसी में बहुत लाभ मिलता है |

३- भुनी हुई फिटकरी १-१ ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेने से खून की उलटी बंद हो जाती है |

४- प्रतिदिन दोनों समय फिटकरी को गर्म पानी में घोलकर कुल्ला करें ,इससे दांतों के कीड़े तथामुँहकी बदबू ख़त्म हो जाती है |

५- एक लीटर पानी में १० ग्राम फिटकरी का चूर्ण घोल लें | इस घोल से प्रतिदिन सिर धोने से जुएं मर जाती हैं |

६- दस ग्राम फिटकरी के चूर्ण में पांच ग्राम सेंधा नमक मिलाकर मंजन बना लें | इस मंजन के प्रतिदिन प्रयोग से दाँतो के दर्द में आराम मिलता है |
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चोकर -
सभी प्रकार के अन्न के रेशों में गेहूँ के चोकर को आदर्श स्थान मिलता है अर्थात गेहूँ का चोकर आदर्श रेशा है | गेहूँ के चोकर में स्वास्थ्य रक्षा के लिए बहुत सी धातुएं,लवण एवं विटामिन्स होते हैं |स्वस्थ रहने के लिए चोकर युक्त आटे की रोटी का सेवन ही करना चाहिए |

१- चोकर से कब्ज दूर होती है | यह आँतों में से आसानी से मल का निस्तारण करता है अतः इसके सेवन से मरोड़ की समस्या दूर हो जाती है |

२- मोटापा घटाने में भी चोकर सहायता करता है क्यूंकि चोकर युक्त रोटी के सेवन से भोजन में कमी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और वजन कम हो जाता है |

३- चोकर के सेवन से आँतों की बीमारी नहीं होती तथा यह भगंदर व बवासीर आदि रोगों से भी शरीर की रक्षा करता है |

४- यह आमाशय के घाव ठीक करता है तथा हृदय रोगों और कोलेस्ट्रोल से भी शरीर की रक्षा करता है |

५- चोकर पेट के अंदर के मल को भी साफ़ करता है,इसी कारण से चोकर का सेवन करने वाले का मन तथा दिमाग शांत रहता है |
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छाछ (मठ्ठा ,तक्र )-
दही को मथकर छाछ बनाया जाता है | छाछ अनेक शारीरिक दोषों को दूर करता है तथा आहार के रूप में महत्वपूर्ण है | छाछ या मठ्ठा शरीर के विजातीय तत्वों को बाहर निकालकर रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता की वृद्धि करता है | गाय के दूध से बानी छाछ सर्वोत्तम होती है | छाछ में घी नहीं होना चाहिए तथा यह खट्टी नहीं होनी चाहिए | 
जिन्हे भूख न लगती हो या भोजन न पचता हो,खट्टी-खट्टी डकारें आती हों या पेट फूलता हो उनके लिए छाछ का सेवन अमृत के सामान लाभकारी होता है | छाछ गैस को दूर करती है,अतः मल विकारों और पेट की गैस में छाछ का सेवन लाभकारी होता है | यह पित्तनाशक होती है और रोगी को ठंडक और पोषण देती है |
विभिन्न रोगों में छाछ से उपचार-

१- छाछ में काला नमक और अजवायन मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है |

२- अपच में छाछ एक सर्वोत्तम औषधि है | गरिष्ठ वस्तुओं को पचाने में भी छाछ बहुत लाभकारी है | छाछ में सेंधानमक,भुना हुआ जीरा तथा काली मिर्च पीसकर , मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण दूर हो जाता है |

३- छाछ में शक्कर और काली मिर्च मिलाकर पीने से पित्त के कारण होने वाला पेट दर्द ठीक हो जाता है |

४- छाछ में नमक डालकर पीने से लू लगने से बचा जा सकता है |

५- एक गिलास छाछ में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन पीने से पीलिया में लाभ होता है |
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चूना -

१- ५०-५० मिली चूने का पानी और नारियल का तेल मिलाकर खूब फेंटे | इसके गाढ़ा होने पर आग से जले स्थान पर इसे लगाने से दर्द और जलन ठीक होकर घाव भी ठीक हो जाते हैं | 

२- दस ग्राम बुझा हुआ चूना तथा दस ग्राम आमा हल्दी मिलाकर गुमचोट पर लगाने से सूजन उतर जाती है | 

३- बुझे हुए चूने को शहद के साथ मिलाकर गिल्टी पर बाँधने से गिल्टी में आराम मिलता है |

४- चूने के पानी में भीगा हुआ कपड़ा फोड़ों पर रखने से फोड़े ठीक हो जाते हैं







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