Thursday 27 November 2014

पिछले लगभग चार वर्ष से भारत के कम से कम पाँच गाँव ऐसे हैं, जहाँ की पूरी आबादी सिर्फ संस्कृत में बात करती है, मजे की बात ये है कि इस दौरान ना तो मुरली मनोहर जोशी HRD मंत्री थे और ना ही प्रगतिशीलों(?) के "भौंकात्मक निशाने" पर रहीSmriti Zubin Irani. जी हाँ, चौंकिए मत!!! हमारे मध्यप्रदेश के तीन गाँव (झिरी, मोहद, बघुवार) तथा कर्नाटक के दो गाँव मुत्तूर और होसहल्ली) भारत के ऐसे अनूठे गाँव हैं जहाँ "सभी जातियों के लोग" आपस में संस्कृत में बातचीत करते हैं...

वामपंथियों, सेकुलरों एवं प्रगतिशीलों के लिए इससे भी ज्यादा दुःख की खबर ये है, कि संस्कृत में बातचीत करने के बावजूद इन गाँवों में अभी तक, कोई व्यक्ति बेरोजगारी या भूख से नहीं मरा. दिन भर संस्कृत में बातचीत करने के बावजूद न तो किसी को हैजा हुआ और ना ही विज्ञान की पढ़ाई में कोई बाधा उत्पन्न हुई... क्योंकि बाहरी व्यक्ति से वे लोग हिन्दी या कन्नड़ में बात कर लेते हैं और विज्ञान की पढ़ाई अंग्रेजी में कर लेते हैं...

चूँकि "प्रगतिशीलता" का अर्थ हिन्दू संस्कृति, संस्कृत, वंदेमातरम, सरस्वती पूजा, सूर्य नमस्कार आदि का विरोध करना तथा "किस ऑफ लव" का समर्थन करना होता है... इसलिए मैं कोशिश करता हूँ कि ऐसे बदबूदार दिमागों से दूर ही रहा जाए... हो सकता है कल वे मेरे हाथ से भोजन करने की आदत को भी दकियानूसी बता दें...  

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