Sunday 5 October 2014

राजमाता जिजाबाई : छत्रपति शिवाजी महाराजकी प्रेरणास्रोत

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हिंदू जनजागृति समिति राजमाता जिजाबाईको प्रणाम करती है, जो इस शताब्दीके सबसे महान राजा छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रेरणास्रोत थीं ।

 राजमाता जिजाबाई छत्रपति शिवाजी महाराजके साथ
एक घडेका आकार, पुष्टि (मजबूती) तथा उसके लक्षण पूर्णतया बनानेवालेके हुनर एवं सृजनशीलतापर निर्भर करता है ।
उसी प्रकार शिवाजी राजेका भरण-पोषण ‘हिंदवी स्वराज’ स्थापनाकी आड आनेवाले शत्रुओंके विरुद्ध लडनेकी दृष्टिसे किया गया था ।
सिंदखेड गांवमें म्हाकसाबाई तथा लखुजी जाधवके यहां जिजाऊका जनम हुआ । जैसे जैसे वे बडी होती गर्इं, मुगलोंद्वारा हिंदुओंका किया जा रहा शोषण उनकी समझमें आता गया ।
छोटी आयुकी लडकियां जहा गुडियोंके साथ खेला करती हैं, जिजाऊ तलवारबाजी सीखनेमें व्यस्त थीं । बहादुरी एवं वीरताकी कथाएं सुनाकर जिजाऊकी माताजीने उनमें साहसकी वृद्धि की ।
उस समय देशकी स्थिति ऐसी थी कि मुगल शासनकर्ताओंकी सेवा करने तथा अपने शत्रुके (अर्थात मुगलोंके) आधिपत्ययमें स्थानीय सरदार बनने हेतु उनकी चापलूसी कर अपनेही लोगोंको लूटना आम बात थी । मुसलमान हिंदु स्त्रियोंपर आक्रमण कर उनकी नीलामी करते थे । सारा समाज एक मूक दर्शक बनकर रह गया था । किसान केवल मुगलों हेतु खेतोंमें खाली पेट मेहनत करते थे । जिजाऊ एक ऐसे व्यक्तिकी तलाशमें थीं, जो इस अन्यायके विरुद्ध लड सके ।
खिस्ताब्द १६०५ में जिजाऊका विवाह शहाजी राजे भोसलेके साथ हो गया । अंतमें उन्हें प्रार्थनाद्वारा राहत मिल गई; उन्होंने भवानी मातासे पराक्रमी, तेजस्वी, कुशल तथा ‘स्वराज्य’ स्थापनाकी प्रचुर क्षमता रखनेवाले पुत्र प्राप्तिकी प्रार्थना की ।
शहाजी राजेसे विवाहके पश्चात जिजाऊके ध्यानमें आया कि आदिलशाह तथा निजामशाह जैसे मुगल शासनकर्ता उनके पतिको नीचा दिखाते हैं । वे जान गर्इं कि उनके पति सामर्थ्यवान होनेके पश्चात भी उनकी कोई पहचान एवं सुरक्षा नहीं थी तथा अपने समाज हेतु उनका कोई लाभ नहीं हो रहा था ।
संपूर्ण मानवजातिके इतिहासमें एकमात्र जिजाऊका उदाहरण होगा, जिसने अपने बच्चेका भविष्य उसके जनमके पूर्व ही निश्चित कर लिया था ।
भवानी माताने जिजाउकी मनोकामना पूरी की; अपनी भूमिपर होनेवाले आक्रमण, धर्म तथा मंदिरोंका टूट जाना; मुगल, आदिलशाह एवं निजामशाह जैसे यवनोंद्वारा मूर्तियोंकी तोड-फोड करना आदि दुखोंमें वह जैसे जिजाऊके साथ थीं । जिजाऊ तथा भवानी देवीने हिंदू स्वराजका एक ही सपना देखा ।
जिजाऊने शिवाजीको अन्यायके विरुद्ध लडकर लोगोंको तानाशाहीसे मुक्त कराने हेतु राजा राम, कृष्ण तथा भीमकी कथाएं सुनार्इं । इन कथाओंने शिवाजी राजेको सिखाया कि स्वराज ही उनके जीवनका एकमात्र उद्देश्य था ।
जिजाऊने अपने पुत्र शिवाजी राजेको राजनीति सिखाई तथा समानताका न्याय, साहस, पराक्रम तथा अन्याय करनेवालोंको कठोर दंड देने जैसे विषयोंमें उनकी मानसिकता सिद्ध की । उन्हें अलगअलग शस्त्रास्त्रोंके लिए दिए जानेवाले प्रशिक्षणकी निगरानी वह स्वयं करती थीं । इस प्रकारका कठोर तथा उचित मार्गदर्शन प्रत्यक्ष अपनी माता जिजाऊसे प्राप्त करनेके कारण ही शिवाजी राजे अपने आपको चमत्कारपूर्ण घटनाओंसे, जैसे शहाजी राजेकी कैद, अफजलखानकी हार तथा आगरासे पलायन आदिसे सुरक्षित बाहर ला सके ।
जिजाऊने एक स्नेहपूर्ण तथा ममतामयी माताकी भूमिकाके साथ जीवनको दिशा देनेवाले एवं ध्येय निश्चित करनेवाले पिताकी भूमिका भी उनकी अनुपस्थितिमें पूरे उत्तरदायित्वके साथ निभाई ।
केवल जिजाऊके प्रशिक्षण तथा मार्गदर्शनके कारण ही शिवाजी राजे सदियोंसे चल रहा मुगल साम्राज्यको पराभूत कर हिंदवी स्वराज्यकी स्थापना कर सके ।
अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी राजेके राज्याभिषेकतक जिजाऊ अपने पतिकी अनुपस्थितिमें हिंदवी स्वराज्यके विकास तथा विस्तार हेतु प्यारसे उत्तेजना देती रहीं । १७ जून १६७४ को राज्याभिषेकके ठीक १२ दिन पश्चात वे स्वर्गलोगकी यात्रापर निकल गर्इं । रायगढ किलेकी तलहटीमें पाचड गांवमें उनकी समाधि है ।

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