Sunday 5 October 2014

नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान

गोडसे का अंतिम बयान दोस्तों, हमारे एक फेसबुक मित्र ने नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान हमारे साथ शेयर किया है, कहा जाता है की इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो कीआँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे। एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्थित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमतसे नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते!
नाथूराम जी ने अपने बयानमें कहा था -"सम्मान,कर्तव्यऔर अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है.में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्यायपूर्णभी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रुको बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये.वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।
महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे.गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया।गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे।जो कांग्रेस अपनी देशभक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी.उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तानको स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया।
मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है।और, किसका बलिदान? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है ,तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया.मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए।उन्होंने स्वयंको पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला।ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे।जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना।
नोट - अपनी कहानी ने इस बयान की सत्यता की जांच नहीं की है, अगर किसी मित्र को इसमें कुछ आपत्तिजनक लगे तो हमें बताएं।

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