Sunday 5 October 2014


एशियाई खेलों में सरिता देवी के साथ जो अन्याय हुआ, उस पर तो खैर अब बहस करने का कोई फायदा नहीं है, साफ़ दिखाई दे रहा था कि दक्षिण कोरियाई मुक्केबाज के पक्ष में "फिक्सिंग" फैसला दिया गया है. . . . .

सरितादेवी को अपील करने के लिए एक पत्रकार से पाँच सौ डॉलर उधार लेने पड़े. जिस समय सरितादेवी के साथ तीनों जज ये नौटंकी कर रहे थे, उस समय कुलदीप वत्स वहीं बैठे हुए थे, लेकिन अपनी खिलाड़ी की सहायता की बजाय वे चुपके से बाहर निकल गए...

सरिता देवी और उनके पति उधर रेफरी से झगड़ा करते रहे, और इधर IOA के अधिकारी राजीव मेहता अपनी वीआईपी सीट पर पसरे हुए थे. . . उन्होंने उठकर मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत भी नहीं समझी. . . .

लेकिन मैं सर्वश्री Narendra Modi, Amit Shah, Rajnath Singh, Sushma Swaraj, Prakash Javadekar, सहित अन्य सभी मंत्रियों से अपील करता हूँ कि वे भारतीय मुक्केबाजी संघ के काहिल, नाकारा एवं घुमंतू टाईप के अधिकारियों, जिन्होंने सरिता देवी की कोई मदद नहीं की, उन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें, उन्हें निलंबित करें, उन पर जाँच बैठाई जाए. . . .

सवाल ये भी है कि इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण खेलों में एथलेटिक्स का क ख ग भी नहीं जानने वाले थुलथुल और निकम्मे अधिकारियों को भेजा ही क्यों जाता है?? क्या सुरेश कलमाडी के अभिशाप से हम मुक्त नहीं हुए अभी तक ?

http://www.bbc.co.uk/hindi/sport/2014/10/141001_sarita_asian_games_vs

"सरिता देवी, अपना कांस्य पदक वहीं मंच पर ठुकराकर तुमने हमारा हृदय जीत लिया है, तुम्हारे आंसू व्यर्थ नहीं जाएँगे"
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