Monday 18 August 2014

संविधान में कहीं नहीं लिखा गया है कि ’अल्पसंख्यक’ कौन है और किस आधार पर उसकी पहचान की जाय!
संविधान में केवल अल्पसंख्यकों के हितों को भी सुरक्षित रखने की बात कही गयी है, न कि अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के नाम पर उन्हें बहु-संख्यकों को उपलब्ध नागरिक अधिकारों से ज्यादा अधिकार देने की बात कही गयी है।

पर, संविधान के इस प्रावधान के आड़ में शुरूआती कांग्रेसी सरकारों ने चार सम्प्रदायों के अनुयायियों को अल्पसंख्यक मानने का सरकारी आदेश पारित करके असंवैधानिक कार्य में जुट गयी!

जब इससे बहुसंख्यक वर्ग आहत होने लगा और उस सरकारी आदेश को चुनौती पेश होने की सम्भावना बनने लगी तो तात्कालिक कांग्रेसी सरकार ने एक नया कानून "अल्पसंख्यक आयोग कानून" ही बना डाला और उस कानून के अन्तर्गत कार्यकारी अधिकार हासिल कर ली गयी।

लेकिन ये कानून भी असंवैधानिक हो जाता है, अगर इस कानून के तहत भी सरकार सम्प्रदाय निरपेक्ष होते हुए साम्प्रदायिक सोच के तहत ’अल्पसंख्यक’ वर्ग का चयन करती है तो।

अतः, अल्पसंख्यक आयोग को कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है कि वो सम्प्रदाय के अनुयायियों की संख्या के आधार पर अल्पसंख्यक वर्ग को चिन्हित करे। यदि वो ऐसा करती है तो ये आयोग ही असंवैधानिक हो जाता है!

कोई है, जो इस बात को सरकार के संज्ञान में लाये?

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