Tuesday 20 May 2014

अंग्रजोंने ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथपर प्रकाशनपूर्व बंदी

वर्ष १८५७ के भारतीयोंके स्वातंत्र्यसंग्रामको अंग्रेजों द्वारा दिए गए `शिपायांचे बंड’ (सैनिकोंका विद्रोह), `शिपायांची भाऊगर्दी’,( सैनिकोंकी भीड ) आदि सारे नाम ठुकराकर स्वातंत्र्यवीर सावरकरजीने ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर ’ यह नाम प्रचलित किया । उन्होंने इंग्लैंडमें यह ग्रंथ २५ वर्षकी आयुमें लिखा ।

स्वातंत्र्यवीर सावरकरजीने `१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ ग्रंथकी लिखाई हेतु पूरा ब्रिटिश ग्रंथालय छान मारा तथा सारे संदर्भ ढूंढ निकाले । संदर्भ ढूंढनेका उनका उद्देश्य जान जानेपर वहांके ग्रंथपालने उन्हें ग्रंथालयमें आनेसे मना किया; किंतु तबतक सावरकरजी सारे दस्तावेजोंके स्थान जान गए थे । उसीसे मराठीमें लिखा ग्रंथ पूरा हुआ । उन्होंने अल्पावधिमें ही इस ग्रंथका अंग्रेजी अनुवाद कर, हॉलैंड तथा जर्मनीमें छपवाया । तत्पश्चात वे ग्रंथ ‘अंकल टॉम्स केबिन’ तथा `पिकविक पेपर्स’ ये तत्कालीन लोकप्रिय उपन्यासोंके वेष्टन चढाकर भारत भेज दिए ।

 प्रकाशनपूर्व बंदी लगाया गया पूरे विश्वका पहला ग्रंथ !

अंग्रजोंने ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथपर प्रकाशनपूर्व बंदी लगाई । इस प्रकारकी बंदी, पूरी दुनियाका पहला उदाहरण था । प्रकाशनसे पहले ही ग्रंथमें क्या लिखा है, यह बात प्रशासनको कैसे पता चली, ऐसा स्वातंत्र्यवीर सावरकरजीने अंग्रेज प्रशासनसे पूछा । उसका उत्तर नहीं मिला; क्योंकि बंदी लगाने हेतु ग्रंथका नाम ही पर्याप्त था ।

 क्रांतिकारियोंकी स्फूर्तिगीता

‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ यह ग्रंथ क्रांतिकारियोंके लिए स्फूर्तिगीता सिद्ध हुआ । बाबाराव सावरकरजीने भारतभरमें इस ग्रंथका  वितरण किया । तदनंतर भगतसिंह तथा नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा इस ग्रंथका संस्करण प्रसिद्ध किया गया ।

. ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथकी मराठीका मूल हस्तलिखित ४० वर्ष अपनी जानसे अधिक संभालनेवाले डॉ.कुटिह्नोके कारण ही  यह ग्रंथ मराठीमें प्रसिद्ध हो सका ।

‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथका मराठी मूल हस्तलिखित डॉ.कुटिह्नो नामक गोमंतकियके पास था । वे अभिनव भारत संगठनके सदस्य थे । अंग्रेजी ग्रंथकी बंदीकी घटना देखकर अमरिका जाते समय हस्तलिखित अपने साथ लेकर गए । भारत स्वतंत्र होनेके बाद उन्होंने ग्रंथका मूल हस्तलिखित सावरकरजीके पास भेज दिया । इस प्रकार वह ग्रंथ वर्ष १९४९में, अर्थात ग्रंथलेखनके चालीस वर्ष बाद प्रकाशित हुआ । दुनियाकी यह एकमेव घटना होगी !
- डॉ.सच्चिदानंद शेवडे (ग्रंथ निवडक मुक्तवेध)

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