Thursday 6 February 2014

वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ

द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका और यूरोप की अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी थी, यूरोप को बहुत जादा नुकसान हुआ था अमेरिका को कुछ कम नुकसान हुआ था | तो इस तबाह हुए अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने के लिए दो संस्था का जन्म हुआ वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के नाम से ब्रेटन वुड्स नामका एक जगह है अमेरिका में उहाँ पर एक समझौता हुआ था जहाँ पर ४४ देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति शामिल हुए थे, उन्लोगोने एक समझौता किया था जिसका नाम था 'ब्रेटन वुड्स समझौता' |

इस ब्रेटन वुड्स समझौता के आधार पर वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ का जन्म हुआ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और इन दो संस्था में जो सदस्य देश है उनमे बिलकुल भी डेमोक्रेसी नहीं है ! एक सदस्य एक वोट कभी नही होता आईएमएफ में और ना वर्ल्ड बैंक में | उहाँ अमेरिका के पास सबसे जादा वोट्स है और अमेरिका का जो वोटिंग शेयर है वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ में वो करीब २०% है और बाकि ८०% वोट ११७ देश के है | तो वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ में कभी डेमोक्रेसी आ नही पाई है और आनेवाली भी नही है क्योंकि वे हमेशा से संरचना वैसे ही बना कर रखना चाहते है !

ये जो वर्ल्ड बैंक बना था यह इसलिए बना था के दुनिया के तमाम देशों को द्वितीय युद्ध के बाद बहुत शोर्ट टर्म की लोन माने तात्कालिक कोई ऋण की जरुरत पड़े बैलेंस ऑफ़ पेमेंट की क्राइसिस हो जाये तो आईएमएफ उसके लिए लोन बांटेगा और किसी देशको अपने इंफ्रास्ट्रक्चर की डेवलपमेंट के लिए लोन की जरुरत पड़े तो वर्ल्ड बैंक उसको बांटेगा | पर आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जुड़वाँ संस्था है .. अगर कोई देश वर्ल्ड बैंक से कर्जा लेने के लिए जाये तो वर्ल्ड बैंक की तरफ से यह कहा जाता है की आप आईएमएफ की शर्तों को पूरा करिए | इसी तरह से अगर कोई देश आईएमएफ के पास कर्ज लेने के लिए जाये तो वो कहते है की आप वर्ल्ड बैंक की शर्तों को पूरा करिए .. माने cross conditionalities का सिस्टम चलता है इन दोनों संस्था में और परोक्ष रूपसे ये दोनों अपनी शर्ते लागु करवा देते है इन गरीब देशों के ऊपर | और वर्ल्ड बैंक / आईएमएफ की तरफ से दिए गए conditionalities का कभी रिफर्म नही हो सकता, यह दोनों संस्था बना ही है अमेरिका और यूरोप की वर्चस्व को बनाये रखने के लिए !

वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ की शर्ते क्या क्या होती है जब कोई गरीब देश उनसे कर्जा मांगने जाती है ? सबसे पहला शर्त वो लगाते है के आप अपने मुद्रा का अवमूल्यन करिए तो हम आपको लोन दे देंगे और इस बात को पेश करने का तरीका अलग है | वो कहते है के आप अपने मुद्रा का अवमूल्यन इसलिए करिए ताकि आपका निर्यात (Export) जादा हो जाये, क्योंकि आपका निर्यात (Export) जादा होगा तो आप जादा डॉलर्स कमा सकेंगे और आप जादा डॉलर कमा सकेंगे तभी आप हमारे लिए हुए कर्ज को वापस कर सकेंगे | कुल मिलाके वे कहते है की आप Export oriented development करना शुरू करिए |

उनका दूसरा शर्त होता है के आप जब Export oriented development करना शुरू कर देंगे तो आप अपना दरवाजा खोलिए ताकि बहुराष्ट्रीय कंपनिया आसानी से आपकी देश में आ सके और उन बहुराष्ट्रीय कंपनी पर आप जो पावंधियाँ लगाते है उनको आप कम से कम कर दीजिये या पूरी तरह से ख़तम कर दीजिये ताकि आपके मार्केट में उनको व्यापार करने में कोई असुविधा ना हो | आप अगर बहुराष्ट्रीय कंपनीयों को बुलाएँगे तो उनके साथ हाई टेक आयेगा टेक्नोलॉजी बहुत आएगी, और जब टेक्नोलॉजी बहुत आएगी तो आपके उहाँ क्वालिटी का माल बनना शुरू हो जायेगा, और जब क्वालिटी का माल बनना शुरू हो जायेगा तो जादा से जादा आप निर्यात कर सकेंगे | तो बहुराष्ट्रीय कंपनी भी आके Export करेंगे और आपके निर्यात को भी बढ़ाएंगे |

तीसरा शर्त उनका यह रहता है के आप अपने घरेलु मार्केट में जो Domestic industry को Protection देते है वो Protection देना बंध करिए और बहुराष्ट्रीय कंपनी को खुली छुट दे दीजिये पूंजी लाने की और पूंजी ले जाने की भी, उनके ऊपर किसी तरह की पावंदी नही होनी चाहिए | और आप सबके सब ‘फ्री ट्रेड’ के लिए अपने आपको तैयार कर लीजिये | आपके देश के बाज़ार में कॉम्पिटीशॉन बड़े और उपभोक्ता को जादा फ़ायदा मिले इसके लिए बड़े बहुराष्ट्रीय कंपनी को आप अपने बाज़ार में आने की खुली छुट दीजिये |

ऐसे ऐसे करके वो बताते चले जाते है और दुनिया के बहुत सारे देश है जो उनको लागु करते चले जाते है ! वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के जो शर्ते होती है वो सिर्फ तीसरी दुनिया के देशो पर ही लागु होती है, अमेरिका और यूरोप के देश भी वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ से कर्ज लेते है और जो शर्ते हमारे ऊपर लगाई जाती है वो कभी अमेरिका और यूरोप के ऊपर नही लगाई जाती | क्यों कि वो दो संस्थाएं यह मानके चलती है के अमेरिका और यूरोप के इकॉनमी Globalized, Competitive और Free है जो दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है |

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