Saturday 18 January 2014

क्या अमेरिका अरविंद केजरीवाल की जरूरत

नई दिल्ली | क्या अमेरिका अरविंद केजरीवाल की जरूरत ठीक उसी तरह समझ रहा है, जैसी पाकिस्तान में उसे इमरान खान की थी? यह समझने के लिए अरविंद की पृष्ठभूमि को जानना होगा।

कबीर, शिमिरित ली और फोर्ड के अलावा कुछ भारतीय उद्योगपति भी इस मुहिम में शामिल हैं। इंफोसिस के मुखिया और फोर्ड फाउंडेशन के सदस्य नारायण मूर्ति ने भी 2008-2009 में हर साल 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद केजरीवाल की संस्था को दी थी। 2010 में जब शिमिरित कबीर से जुड़ीं तो नारायणमूर्ति ने मदद 25 लाख रुपए से बढाकर 37 लाख रुपए कर दी।

एक-एक कर तार जुड़ रहे हैं। भारत सहित पूरे एशिया में फोर्ड की सियासी सक्रियता को समझने की बात कही जा रही है। इसकी पहचान एक अमेरिकी संस्था की है। दक्षिण एशिया में फोर्ड की प्रमुख कविता एन. रामदास हैं। वह एडमिरल रामदास की सबसे बड़ी बेटी हैं।

एडमिरल रामदास अरविंद केजरीवाल के गॉडफादर हैं। केजरीवाल के नामांकन के समय भी एडमिरल रामदास केजरीवाल के साथ थे। एडमिरल रामदास की पत्नी लीला रामदास ‘आप’ के विशाखा गाइडलाइन पर बनी कमेटी की प्रमुख बनाई गई हैं।

रामदास को भी मैगसेसे पुरस्कार मिला है। यहां सवाल उठता है कि क्या एडमिरल रामदास और उनका परिवार फोर्ड के इशारे पर अरविंद केजरीवाल की मदद कर रहा है? एशिया की सियासत में फोर्ड की सक्रियता इस उदाहरण से भी समझी जा सकती है। फोर्ड फाउंडेशन के अधिकारी रहे गौहर रिजवी अब बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं।

कबीर, शिमिरित ली और फोर्ड के अलावा कुछ भारतीय उद्योगपति भी इस मुहिम में शामिल हैं। इंफोसिस के मुखिया और फोर्ड फाउंडेशन के सदस्य नारायण मूर्ति ने भी 2008-2009 में हर साल 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद केजरीवाल की संस्था को दी थी। 2010 में जब शिमिरित कबीर से जुड़ीं तो नारायणमूर्ति ने मदद 25 लाख रुपए से बढाकर 37 लाख रुपए कर दी।

यही नहीं, इंफोसिस के अधिकारी रहे बालाकृष्णन ‘आम आदमी पार्टी’ में शामिल हो गए। इनफोसिस से ही नंदन नीलेकणी भी जुड़े हैं। नीलेकणी ‘बायोमेट्रिक आधार’ परियोजना के अध्यक्ष भी हैं। आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार बनते ही ‘आधार’ को जरूरी बनाने के लिए केजरीवाल ने कदम बढ़ा दिया है। ‘आधार’ और उसके नंदन को कुछ इस तरह समझा जा सकता है।

जानकारी के मुताबिक नवंबर 2013 में न्यूयार्क की कंपनी मोंगाडीबी नंदन नीलेकणी के ‘आधार’ से जुडती है। इस कंपनी को आधार के भारतीय नागरिकों का डाटाबेस तैयार करने का काम दिया गया है। मैंगाडीबी की पड़ताल से कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। इस कंपनी में इन-क्यू-टेल नाम की एक संस्था का पैसा लगा है। इन-क्यू-टेल सीआईए का ही वित्तीय संगठन है।

यहां अब नंदन नीलेकणी और दिल्ली चुनाव के बीच संबंध को देखने की भी जरूरत है। दिल्ली चुनाव के दौरान अमेरिका से भारत एक मिलयन फोन आए। कहा गया कि यह आम आदमी पार्टी के समर्थन में आए। लेकिन यहां कई सवाल उठते हैं। पहला सवाल, इसे भारत से जुड़े लोगों ने किए या फिर किसी अमेरिकी एजेंसी ने किए? दूसरा सवाल है दिल्ली के लोगों के इतने फोन नंबर अमेरिका में उपलब्ध कैसे हुए? यहीं नंदन नीलेकणी की भूमिका संदेह के घेरे में आती है।

दरअसल नंदन नीलेकणी जिस ‘आधार’ के अध्यक्ष हैं, उसमें फोन नंबर जरूरी है। इतने ज्यादा फोन नंबर सिर्फ नंदन नीलेकणी के पास ही संभव हैं। यही कारण है कि केजरीवाल की सरकार बनने के बाद दिल्ली के लोगों से ‘आधार’ नंबर मांगे जा रहे हैं। जब अदालत ‘आधार’ को जरूरी न मानते हुए अपना फैसला सुना चुकी है तो केजरीवाल सरकार आधार नंबर क्यों मांग रही है। आखिर उसकी मजबूरी क्या है? इस मजबूरी को इंफोसिस प्रमुख और फोर्ड के रिश्ते से समझा जा सकता है।

(राकेश सिंह की यह रपट यथावत पत्रिका से साभार है।)

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