Thursday 22 August 2013

Jitendra Pratap Singh
आखिर सीरिया में कत्लेआम क्यों मचा है ?? जबकि सीरिया में गरीबी बिलकुल नही है 

मित्रो, सीरिया की जनसंख्या में 80% सुन्नी मुसलमान है और सिर्फ 15% शिया मुसलमान है 5% अन्य जिसमे कुर्द, ईसाई आदि है |

असद परिवार करीब ३० सालो से सीरिया पर शासन कर रहा है .. और ये असद परिवार शिया है |
वर्तमान राष्ट्रपति डा.बशर अल असद लन्दन में आई सर्जन थे जो अपने पिता हाफिज अल असद के मृत्यु के बाद सीरिया लौट आये और शुरा के द्वारा राष्ट्रपति चुने गये |

असल में सीरिया का बहुसंख्यक सुन्नी मुसलमान इसे अपना अपमान मानता है की एक अल्पसंख्यक शिया उनके उपर राज करे |
जबकि असद परिवार को आज के सीरिया का कुशल शिल्पी माना जाता है .. असद परिवार ने सीरिया में कभी कट्टरपंथी कठमुल्लों को पनपने नही दिया और जितने भी कट्टरपंथी गुट से सबका खात्मा कर दिया,

सीरिया की राजधानी दमिश्क जिसे अंग्रेजी में दमाश्क्स कहते है विश्व के खुबसूरत शहरों में सुमार हो गया था | सीरिया ओलिव ओयल, क्रुड, आदि चीजो का बड़ा उत्पादक बनकर उभरा था |

फिर इजिप्त की क्रांति जिसमे लोगो ने होस्नी मुबारक हो सत्ता से बेदखल कर दिया उससे प्रेरणा लेकर सीरिया के कट्टरपंथी सुन्नी मुल्ले एकजुट होकर बशर के खिलाफ विद्रोह कर दिए |

लेकिन मजे की बात ये की इस लड़ाई में ईरान सीरिया सरकार के साथ है और साथ ही लेबनान का हिज्बुलाह भी दो गुटों में बट गया . हिजबुल्लाह का शिया गुट बशर के साथ है |
सीरिया की लड़ाई में अरब देशो के मुसलमानों में शिया सुन्नी को लेकर और ज्यादा कटुता बढने लगी है और जल्द ही ये लड़ाई पड़ोसी जार्डन को भी अपने चपेट में लेने वाली है

लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर मुसलामन किसी देश में शांति से क्यों नही रहते ?? विश्व के हर ऐसे देश में जहाँ दंगे या लड़ाई होती है तो एक पक्ष मुस्लिम ही क्यों होता है ?

सीरिया में इन्हें शिया का शासन स्वीकार नही है

भारत में इन्हें हिन्दू का शासन स्वीकार नही है

पाकिस्तान में इन्हें ताकतवर गुट पंजाबी सुन्नी का शासन स्वीकार नही है
म्यांमार में इन्हें बौद्ध का शासन स्वीकार नही है
चेचेन्या और लेबनान, बोस्निया, हर्जेगोविना, सर्विया में इन्हें ईसाई शासन स्वीकार नही है

अफगानिस्तान में इन्हें दुसरे कबीले के मुसलमान का शासन स्वीकार नही है

और मजे की बात ये की पुरे विश्व में सबसे खुशहाल और शांति से जिस भी देश में मुसलमान है वहाँ मुसलमान अल्पसंख्यक है ... लेकिन जिस देश में ये बहुसंख्यक है उस देश में दुसरे धर्मो के मानने वालो को खत्म कर देते है |

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************** स्व मूल्यांकन ***************

एक चौदह पंद्रह साल का लड़का एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक नंबर लगाता है और किसी के साथ बात करता है, बूथ मालिक उस लड़के की बात को ध्यान से सुनता रहता है ;
लड़का : किसी महिला से कहता है कि, मैंने बैंक से कुछ क़र्ज़ लिया है और मुझे उसका क़र्ज़ चुकाना है, इस कारण मुझे पैसों की बहुत जरुरत है, मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की घास काटने की नौकरी दे सकती हैं..? महिला : (दूसरी तरफ से) मेरे पास तो पहले से ही घास काटने वाला माली है..
लड़का : परन्तु मैं वह काम आपके माली से आधी तनख्वाह पर कर दूंगा..
महिला : तनख्वाह की बात ही नहीं है मैं अपने माली के काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ..
लड़का : (और निवेदन करते हुए) घास काटने के साथ साथ मैं आपके घर की साफ़ सफाई भी कर दूंगा वो भी बिना पैसे लिए..
महिला : धन्यवाद और ना करके फोन काट दिया..लड़का चेहरे पर विस्मित भाव लिए फोन रख देता है..
बूथ मालिक जो अब तक लड़के की सारी बातों को सुन चूका होता है,लड़के को अपने पास बुलाता है..
दुकानदार : बेटा मेरे को तेरा स्वभाव बहुत अच्छा लगा, मेरे को तेरा सकारात्मक बात करने का तरीका भी बहुत पसंद आया..अगर मैं तेरे को अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र दूं तो क्या तू मेरे यहाँ काम करेगा..??
लड़का : नहीं, धन्यवाद.
दुकानदार : पर तेरे को नौकरी की सख्त जरुरत है और तू नौकरी खोज भी रहा है.
लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!!

इसे कहते हैं ''स्व मूल्यांकन''

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नेहरू खान दान को काफी लोग मुग़ल खानदान से जोड़कर देखते है | ऐसा कहने का उनके पास अपना तर्क भी है, और वे लोग तर्क का आधार है बताते है नेहरू के सेक्रेटरी एम ओ मथाइ पुस्तक “रेमेनिसेंसेस ऑफ़ नेहरू एज” (जो भारत में प्रतिबंधित है) तथा के एन राव की पुस्तक “द नेहरू डायनेस्टी” | ये पुस्तके नेहरू के करीबियों ने लिखी है. हमारे पास ऐसा मानने के अलग तर्क है |
(१)-मुग़ल खानदान को भारत के इतिहास में इतना महत्वपूर्ण और विस्तृत रूप से क्यों पढाया जाता है क्यों ? मुग़ल कक्षा ६ से शुरू होकर बीए, एमए और फिर पीसीएस आईएएस की सर्वोच्च परीक्षाओ तक छात्रो और अभ्यर्थियों का पीछा नहीं छोड़ते है | यदि हम ज्यादा पीछे भी न जाएँ तो भी महाराजा परिक्षत से लेकर सम्राट पृथवीराज चौहान तक हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है | इस कालखंड में हम सोने की चिड़िया और जगतगुरु रहे | पर पाठ्यक्रमो से सब गायब है |

(२)-८नवम्बर २०१० में भारत दौरे पर आये अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा को क्या हुमायूँ का मकबरा ही मिला था दिखाने के लिए ? दिल्ली में तो पुराना किला जैसी एक से एक हजारो वर्ष पुरानी इमारते है |

(३)- अफगानिस्तान स्थित बाबर की मजार पर बार- बार नेहरू खानदान के लोग क्यों जाते है ? २००४ में राहुल और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह गए | इंदिरा गाँधी भी अपने कार्यकाल में गई | ये लोग प्रोटोकोल तोड़ कर गए, अफगान सरकार के मना करने पर गए, वह क्षेत्र तालिबानी आतंकवाद ग्रसित है तब भी गए क्यों ?

(४)– विश्व संस्था यूनेस्को ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है की “भारत में एक से बढ़ कर एक गैर मुगलकालीन बेहतरीन ऐतिहासिक स्म्मारक स्थित है | पर न जाने क्यों यहाँ की सरकार मुगलकालीन स्मारकों की ही सिफारिश विश्व धरोहर की सूचि के लिए करती हैं | यहाँ की सरकारों को अपना नजरिया बदलना चाहिए | और गैर मुग़ल स्मारकों को भी सूचि के लिए भेजना चाहिए | फ़िलहाल भारत की २७ स्मारक विश्व धरोहर सूचि में शामिल है लालकिला इनमे सबसे अंत में शामिल हुआ |” ये विचार एक कार्यक्रम के दौरे पर भारत आयी यूनेस्को की संस्कृति कार्यक्रम विशेषज्ञ मोइचिबा ने कहे | अब प्रश्न ये उठता है की मुग़ल स्मारकों से ही इतना मोह क्यों ? वो भी ये विश्व संस्था कह रही है |

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