Monday 19 August 2013

गुलामी की आदत-

गुलामी की आदत-

सूखे हुए एक शापित पेड़ की डाल पर बैठा बूढा जटायु कहानी सुना रहा था. आस-पास बहुत से पशु-पक्षी ध्यान से सुन रहे थे.

एक जंगल था. हजारों वर्षों से इस जंगल के पशुओं पर बाहर के भेड़िये जुल्म करते आए थे. कुछ वर्ष पहले भी सैंकड़ों भेड़िये चालबाजी से उस जंगल में घुस आए थे और सारे पशु-पक्षियों पर बहुत अत्याचार किया था. उन्होंने खूब नोच-खसोट की और जो कुछ अच्छा लगा, उसे अपने जंगल में भिजवा दिया. 

गुलामी के दंश से पीड़ित सभी पशु-पक्षियों ने एक साथ विद्रोह कर दिया. भेड़िये अंतत: भाग खड़े हुए लेकिन जाते-जाते वे एक धूर्त लकड़बग्गे को वन राज की गद्दी सौंप गए. साथ ही अपना राजनीति का मूल मंत्र " फूट डालो और राज करो " भी दे गए.
इस मंत्र के आधार पर धूर्त लकड़बग्गे को जंगल पर राज करने में कोई समस्या नहीं हुई. उसकी कई पीढी आसानी से राज करती चली गईं. जनता को गुलामी की आदत सी जो हो गयी थी.

इसी बीच विरासत में बने राजा को दुसरे जंगल की एक सुनहरी लोमड़ी ने सम्मोहित कर लिया. उसने एक दिन षड्यंत्र कर राजा लकड़बग्गे को मरवा डाला. धीरे-धीरे उसने ऐसे हालात कर दिये कि अब उसके इशारे के बिना जंगल में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था. सबसे बड़ा आश्चर्य यह था कि जंगल के पशु-पक्षियों को आज भी यह पता नहीं था कि वे अब गुलाम हैं या आज़ाद??

इतना कह कर जटायु ने बेबसी में छलक आईं आँखें पोंछी.
एक युवा श्रोता ने पूछा- " दद्दू ! आप के मन में इतनी पीड़ा क्यों है.....आप कौन हैं ? "
गहरी सांस लेते हुए जटायु ने कहा- " मैंने भेड़ियों के विरुद्ध विद्रोह में भाग लिया था. मेरे जैसे हजारों परिवारों ने आजादी हेतु अपना सर्वस्व होम कर दिया था. इन आँखों ने सारे जंगल को आजादी की खुशियाँ मनाते हुए देखा है. अफ़सोस तो यह है कि उस बार तो सैंकड़ों भेड़ियों ने गुलाम बनाया था और इस बार मात्र एक लोमड़ी ने. ??"
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