Friday 12 July 2013

हिन्दू सनातन धर्म का हर एक कदम ... पुर्णतः वैज्ञानिक है...!

वस्तुतः.... .. हिन्दुसनातन धर्म में ..... "मन्त्र" से तात्पर्य .... एक विशिष्ट प्रकार के संयोजित वर्णों के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि से है... और, वह ध्वनि ही हमारे शरीर के विभिन्न स्थानों में स्थिति अन्तश्चक्रों को ध्वनित कर.... जाग्रत एवं प्रखर ऊर्जावान बनाकर आत्मशक्ति एवं जीवनी शक्ति का विकास करती है.....

जिसके परिणामस्वरूप......... हमारी अन्तस् नस-नाड़ियाँ एवं मस्तिष्क की संवेदनशील तनावयुक्त ग्रन्थियाँ स्फूर्ति का अनुभव करती हैं...... और, तनावमुक्त हो जाती हैं।

ध्यान रखें कि..... मंत्रों की शक्ति असीम है..... क्योंकि, मंत्र एक वैज्ञानिक विचारधारा है.......!

परन्तु.... इसकी शक्ति से वही साधक रूबरू हो सकता है, जिसने अपने गुरू से दीक्षित होने के बाद विधिपूर्वक साधना की हो......!

इस विज्ञान को ठीक से समझने के लिए.... आप किसी गाने का उदाहरण ले सकते हो.....

जिस प्रकार हम किसी रोमांटिक गाने को सुनकर प्यार की...... दुखद गाने को सुनकर दुःख की.... और, देशभक्ति गाने को सुनकर ओज का अनुभव करते हैं......... उसी प्रकार..... विभिन्न मंत्रोच्चार का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होता है...!

असल में..... आधुनिक भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार...... मन्त्रों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं....!

(1) शब्दों की ध्वनि
(2) आंतरिक विद्युत धारा... इसे विज्ञान की पारिभाषित शब्दावली में "अल्फा तरंग" भी कहा जा सकता है।

गौर करने लायक बात यह है कि...... जब किसी मंत्र का उच्चारण किया जाता है..... तो , उस से ध्वनि उत्पन्न होती है... और, उस ध्वनि के उत्पन्न होने पर अंत:करण में कंपन उत्पन्न होता है ... तथा, यह ध्वनि कंपन के कारण तरंगों में परिवर्तित होकर वातावरण में व्याप्त हो जाती है ..... एवं, इसके साथ ही आंतरिक विद्युत भी (तरंगों में) इसमें व्याप्त रहती है।

इस तरह..... यह आंतरिक विद्युत.... जो शब्द उच्चारण से उत्पन्न तरंगों में निहित रहती है........शब्द की लहरों को व्यक्ति विशेष तथा दिशा विशेष की ओर भेजती है .....अथवा , इच्छित कार्य में सिद्धि दिलाने में सहायक होती है।

अब मूर्खों द्वारा यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि..... ..... यह आंतरिक विद्युत किस प्रकार उत्पन्न होती है,...????

तो..... आज यह बात वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा भी मान ली गई है कि ....... ध्यान, मनन, चिंतन आदि की अवस्था में जब रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप शरीर में विद्युत जैसी एक धारा प्रवाहित होती है...... (इसे हम शारीरिक विद्युत कह सकते हैं)......... तथा, मस्तिष्क से विशेष प्रकार का विकिरण उत्पन्न होता है ..... जिसका नाम "अल्फा तरंग" रखा गया है (इसे हम मानसिक विद्युत कह सकते हैं)... .
यही अल्फा तरंग मंत्रों के उच्चारण करने पर निकलने वाली ध्वनि के साथ गमन कर........... दूसरे व्यक्ति को प्रभावित कर या इच्छित कार्य करने में सहायक होती है.... और, वो मंत्र जिस उद्देश्य से जपा जा रहा है, उसमें सफलता दिलाने में यह सहायक सिद्ध होते हैं।

इसे हम वैज्ञानिक भाषा में..... "मानसिक विद्युत" या "अल्फा तरंग" को "ज्ञानधारा" भी कह सकते हैं।

मनोविज्ञान के विद्वानों ने प्रयोगों और परीक्षणों के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि........ मनुष्य के मस्तिष्क में बार-बार जिन विचारों अथवा शब्दों का उदय होता है ......उन शब्दों की एक स्थाई छाप मानस पटल पर अंकित हो जाती है और एक समय ऐसा भी आता है........ जब वह स्वयं ही मंत्रमय हो जाता (मंत्र की लय में खो जाता) है......!

और.... यदि यह विचार आनंददायक हों, मंत्र कल्याणकारी हो,..........तो , इन्हीं के परिणाम मनुष्य को आनंदानुभूति करवाने वाले सिद्ध होते हैं........

क्योंकि, कभी-कभी मनुष्य के जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब उसका मन खिन्न एवं दुखी होता है।.........तो , ऐसा उस मनुष्य के अपने ही पूर्व संचित कर्म के परिणामस्वरूप ही होता है.....!

और...... जिन कर्मों के फलस्वरूप उसे वह परिस्थितियां या संस्कार प्राप्त होते हैं,.........उस प्रकार के संचित कर्म को ..........केवल जप द्वारा ही क्षय किया जा सकता है....... और, ऐसी अवस्था में जप द्वारा ही उसके दुख रूपी कर्मफल का क्षय कर सकता और अच्छे संस्कार डाल सकता है।

मंत्रोच्चार निम्नलिखित तीन तरह के होते हैं :

1. वाचिक जप : जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है..........
अभिचार कर्म के लिए वाचिक रीति से मंत्र को जपना चाहिए।

2. उपाशु जप : जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता ....... तो वह उपांशु जप कहलाता है...
शां‍‍‍ति एवं पुष्‍टि कर्म के लिए उपांशु रीति से मंत्र को जपना चाहिए।

3. मानस जप : मानस जप- यह सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है... और, जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को एवं एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है... तो, वह मानस जप कहलाता है...!
इस जप में वाचक के दंत, होंठ कुछ भी नहीं हिलते है...... मोक्ष पाने के लिए मानस रीति से मंत्र जपना चाहिए।

लेकिन.... मन्त्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मन्त्र का सही उच्चारण.... क्योंकि, जब तक मन्त्र का सही एवं शुद्ध उच्चारण नहीं किया जायेगा तब तक अभीष्ट परिणाम की आशा करना व्यर्थ है...!

साथ ही..... श्रद्धा और विश्वास, साधना के मेरुदण्ड हैं..... जिनके ऊपर ही यह शास्त्र फलित होता है... इसलिए श्रद्धा और विश्वास को निरन्तर बनाये हुए रखकर समान संख्या का जप करना चाहिए.. और, अपनी ओर से मन्त्र की संख्या में सुविधानुसार घट-बढ़ नहीं करनी चाहिए....... और ना ही बार-बार मन्त्र और इष्ट देवता का परिवर्तन करना चाहिए....... अन्यथा कुछ भी हाथ नहीं लगता है।

सिर्फ इतना ही नहीं...... मंत्र से विविध शारीरिक एवं मानसिक रोगों में लाभ मिलता है.... और, यह बात अब विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि ...... मनुष्य के शरीर के साथ-साथ यह समग्र सृष्टि ही वैदिक स्पंदनों से निर्मित है..... इसीलिए, शरीर में जब भी वायु-पित्त-कफ नामक त्रिदोषों में विषमता से विकार पैदा होता है ......तो , मंत्र चिकित्सा द्वारा उसका सफलता पूर्वक उपचार किया जाना संभव है।

आपको यह जानकार काफी ख़ुशी होगी कि...... अमेरिका के ओहियो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार.......... कैंसरयुक्त फेफड़ों, आंत, मस्तिष्क, स्तन, त्वचा और फाइब्रो ब्लास्ट की लाइनिंग्स पर ........ जब सामवेद के मंत्रों और हनुमान चालीसा के पाठ का प्रभाव परखा गया.......... तो , कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि में भारी गिरावट आई............ जबकि, इसके विपरीत तेज गति वाले पाश्चात्य और तेज ध्वनि वाले रॉक संगीत से कैंसर की कोशिकाओं में तेजी के साथ बढ़ोतरी हुई।

सिर्फ इतना ही नहीं............. मंत्र चिकित्सा के लगभग पचास रोगों के पांच हजार मरीजों पर किए गए क्लीनिकल परीक्षणों के अनुसार......... दमा एवं अस्थमा रोग में सत्तर प्रतिशत....... स्त्री रोगों में 65 प्रतिशत.....त्वचा एवं चिंता संबंधी रोगों में साठ प्रतिशत........... उच्च रक्तदाब यानी हाइपरटेंशन से पीड़ितों में पचपन प्रतिशत....... आर्थराइटिस में इक्यावन प्रतिशत........ डिस्क संबंधी समस्याओं में इकतालीस प्रतिशत,...............आंखों के रोगों में इकतालीस प्रतिशत तथा एलर्जी की विविध अवस्थाओं में चालीस प्रतिशत का औसत लाभ हुआ....!

इस तरह हम गर्व से कह सकते हैं कि..... निश्चित ही हमारे हिन्दू सनातन धर्म के मंत्र चिकित्सा उन लोगों के लिए तो वरदान है ...... जो पुराने और जीर्ण क्रॉनिक रोगों से ग्रस्त हैं...!

कहा गया है कि ......... जब भी कोई व्यक्ति गायत्री मंत्र का पाठ करता है......... तो , अनेक प्रकार की संवेदनाएं इस मंत्र से होती हुई व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं...!

यहाँ तक कि.....जर्मन वैज्ञानिक भी कहते हैं कि ...... जब भी कोई व्यक्ति अपने मुंह से कुछ बोलता है ....तो , उसके बोलने में सिर्फ 175 प्रकार के आवाज का जो स्पंदन और कंपन होता है...... जबकि, कोई कोयल पंचम स्वर में गाती है तो उसकी आवाज में 500 प्रकार का प्रकंपन होता है ......लेकिन जब दक्षिण भारत के विद्वानों से जब विधिपूर्वक गायत्री मंत्र का पाठ कराया गया......तो यंत्रों के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि गायत्री मंत्र का पाठ करने से संपूर्ण स्पंदन के जो अनुभव हुए......... वे 700 प्रकार के थे।

इस शोध के बाद..... जर्मन वैज्ञानिकों का कहना है कि........ अगर कोई व्यक्ति पाठ नहीं भी करे... और, सिर्फ पाठ सुन भी ले तो भी उसके शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है........क्योंकि इसके अंदर जो वाइब्रेशन है, वह अदभुत है...!

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