Wednesday 10 April 2013

संतान" -
मैं तकरीबन २० साल के बाद विदेश से अपने शहर लौटा था ! बाज़ार में घुमते हुए सहसा मेरी नज़रें
सब्जी का ठेला लगाये एक बूढे पर जा टिकीं,बहुत कोशिश के बावजूद भी मैं उसको पहचान
नहीं पा रहा था ! लेकिन न जाने बार बार ऐसा क्यों लग रहा था की मैं उसे बड़ी अच्छी तरह से जनता हूँ !
मेरी उत्सुकता उस बूढ़ेसे भी छुपी न रही , उसके चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से मैंसमझ
गया था कि उसने मुझे पहचान लिया था !
काफी देर की जेहनी कशमकश के बाद जब मैंने उसे पहचाना तो मेरे पाँवके नीचे से मानो ज़मीन
खिसक गई ! जब मैं विदेश गया था तो इसकी एक बहुत बड़ी आटा मिल हुआ करती थी नौकर चाकर
आगे पीछे घूमा करते थे !धर्म कर्म, दान पुण्य में सब से अग्रणी इस दानवीर पुरुष को मैं
ताऊजी कह कर बुलाया करता था !
वही आटा मिल का मालिक और आज सब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर? मुझ से
रहा नहीं गया और मैं उसके पास जा पहुँचा और बहुत मुश्किल से रुंधे गले से पूछा :
"ताऊ जी, ये सब कैसे हो गया ?"

भरी ऑंखें लिए मेरे कंधे पर हाथ रख उसने उत्तर
दिया:
"बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा !"

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