Friday 5 April 2013


मोक्ष्यपातं : सांप-सीढी का खेल

आपको बचपन में खेले गए सांप-सीढी के खेल की तो अवश्य याद होगी। इस खेल का एक कमाल है, इसमें जितनी सीढियां हैं उतने ही सांप, फिर भी खेल में शामिल हर कोई ये मानता है की वो अपने हाथ के कमाल से इस बाज़ी को जीत सकता है। अब हम और आप में से जिसने भी ये खेल खेला होगा, उसका उदेश्य तो कुछ समय के लिए मनोरंजन करना ही रहा होगा।किन्तु इस खेल के निर्माता/आविष्कारकर्ता नें इसके जरिए मनोरंजन के साथ साथ खेल-खेल में ही कर्म फल के महत्व को दर्शाने का भी प्रयास किया है।
सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्दीे में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्वर करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्छेस काम लोगों को स्वंर्ग की ओर ले जाते जबकि बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप जीव को पुन: पुन: जन्म -मृ्त्यु के चक्र में उलझना पडता है।

मूल खेल में इन वर्गों में सीढीयां थी वर्ग 12 विश्वास के लिये , 51 विश्वसनीयता के लिये, 57 उदारता के लिये, 76 ज्ञान के लिये, और 78वा वर्ग संन्यास के लिये था !! 41वा वर्ग अवज्ञा के लिए, 44वा अहंकार के लिये, अशिष्टता के लिए 49, चोरी के लिए 52 , झूठ बोलने के लिए 58, मादकता के लिए 62, 69 ऋण के लिए, क्रोध के लिए 84, 92 लालच के लिए, 95 अभिमान के लिए, हत्या के लिए 73 और वासना के लिए 99 वर्ग रखा गया था. इन वर्गों में साँप थे.

100 वा वर्ग निर्वाण या मोक्ष का प्रतिनिधित्व था, 1892 में ब्रिटिश इस खेल को इंग्लैंड ले गये और वहा विक्टोरियन मूल्यों के हिसाब से यह सांप और सीढ़ी के नाम बदला.
 

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