Wednesday 27 March 2013

हमें अपने देश को बचान है तो

मित्रों,आज एक ओर जहाँ पूरा विश्व अपनी-अपनी संस्कृति व् सभ्यता की रक्षा के लिए सक्रीय रूप से कार्य कर रहा है वहीँ दूसरी ओर हमारा अपना भारत देश उलटी दिशा में जा रहा है,यहाँ होड़ मची है की कैसे अल्पसंख्यको को अपने नीजी स्वार्थ के लिए खुश किया जाए,और इस चक्कर में हमारे कुछ नेता हमारी संस्कृति को ख़त्म करने में लगे हुए हैं...विश्व के बड़े से बड़े देश जो अब तक सेकुलरिज्म का गाना गाते थे,वे भी अपनी संस्कृति को बचाने हेतु सक्रीय हो रहे हैं,और हमारे नेता हमारी वो संस्कृति जो विश्व की सबसे महान संस्कृति है उसे केवल अपने वोट बैंक के चक्कर में लगभग ख़त्म करने की राह पकड़ चुके हैं,अगर समय रहते इस ओर कड़े कदम नहीं उठाये गए तो परिणाम गंभीर होंगे ये निश्चित है...

ऐसा ही एक कदम रूस के राष्ट्रपति पूतिन ने उठाया और उनके देश में रह रहे अल्पसंख्यकों को कड़ा सन्देश दिया

पढ़िए क्या कहा उन्होंने..

"रूस में रूसी रहते हैं,कोई भी अल्पसंख्यक समुदाय चाहे वो कहीं का भी हो,अगर उन्हें रूस में रहना है,काम करना है,अपना पेट भरना है तो उसे रूसी भाषा बोलनी होगी एवं रूस के कानूनों का पूरी तरह सम्मान करना होगा,
अगर उन्हें शरियत कानून (इस्लामिक कानून) चाहिए तो मेरी उन्हें सलाह है की वो किसी ऐसे देश में चले जाएँ जहाँ उनके इस कानून को मान्यता प्राप्त हो,

अप्ल्संख्यको को रूस की जरूरत है ना की रूस को अल्पसंख्यकों की,हम अल्पसंख्यको को कोई विशेष सुविधा नहीं देंगे, न ही हम अपने कानून में किसी तरह का बदलाव करेंगे उनकी इच्छानुसार,चाहे वो कितना ही जोर जोर से चीखें की ये अन्याय है,
अगर हमें अपने देश को बचान है तो हमें अमेरिका,इंग्लैंड,फ्रांस और हॉलैंड जैसे देशों से सीखना होगा,
कानून बनाने वालों को भी मेरी सलाह है की जब भी वे कोई कानून बनाएं तो उसमे राष्ट्र सर्वोपरि की भावना का ख्याल रखें और इतना याद रखे की अल्पसंख्यक रूसी नहीं हैं"

पुतिनजी के इस भाषण पर वहां मौजूद सभी नेता इतने प्रभावित हुए की सारे नेताओं ने करीब ५ मिनट तक उनके सम्मान खड़े होकर तालियाँ बजाई...

आज सम्पूर्ण विश्व में अगर इस प्रकार आक्रमक रुख अपनाने की जरुरत सबसे ज्यादा किसी देश को है तो वो हैं हमारा भारत देश,लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है की देश की सत्ता उन चंद भूखे और नीच लोगों के हाथ में है जिन्हें हमारी संस्कृति से न तो कोई मतलब है न ही उन्हें इसकी महानता का ज्ञान है...
और उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण है आम जनता का सुस्त रवैया और हर ज़ुल्म को चुपचाप सहना...

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