Monday 9 January 2012

योरोप का उद्देश्य है --सबका नाश करके स्वयं अपने को बचाए रखना...


तुम्हारे यूरोपीय पंडितों का यह कथन क़ी आर्य लोग किसी अन्य देश से आकर भारत पर झपट पड़े और वे यहाँ के मूल निवासियों का समूल नाश कर उनकी भूमि को बलपूर्वक छीन कर यहाँ  पर बस गये ,निरी मूर्खता और वाहियात बात है..आश्चर्य तो इस बात का है क़ी हमारे भारतीय विद्वान् भी उन्ही के स्वर में स्वर मिलाते हैं और यही सब झूट हमारे बाल बच्चों को पढाई जाती है..यह घोर अन्याय है..मैंने पेरिस क़ी कांग्रेस में इसका प्रतिवाद किया था ,मैं अनेक भारतीय एवं योरोपीय नेताओं से इस विषय क़ी चर्चा कर रहा हूँ और आशा  करता हूँ क़ी समय मिलने पर मैं इस मिथ्या सिद्धांत क़ी अनेक आंतरिक असंगतियों को दर्शा सकूंगा..मेरा आप लोगों से यही अनुरोध है ,कृपया अपने प्राचीन ग्रन्थों शास्त्रों क़ी अच्छी प्रकार से छान बीन कीजिये और स्वतंत्र निष्कर्ष निकालिए ...
योरोपियनों को जिस देश में मौका मिलता है वे वहां के आदिम निवासियों का नाश करके स्वयम मौज से रहने लगते हैं, इसलिये वे समझते हैं क़ी आर्य लोगों ने भी वैसा ही किया होगा.. 
यदि ये पश्चिमवासी अपने स्वदेश में केवल सीमित साधनों पर ही पूर्णतया जीवन यापन करते रहते, तो उनका वह दरिद्र जीवन उनकी अपनी सभ्यता क़ी कसौटी पर ही घृणित आवारों का जीवन कहलाता,अतः उन्हें दुनिया भर में उन्मत्तों के समान यह खोजते घूमना पड़ता है क़ी वे लूट पाट एवं हत्या के द्वारा दूसरों क़ी भूमि के शोषण एवं स्वयम सुखोप भोग कर सकें ...इस लिये उन्हों ने निष्कर्ष निकला क़ी आर्य लोगों ने भी वैसा ही किया होगा..यह केवल उनका अनुमान है ,कल्पना क़ी उडान मात्र , तो कल्पना क़ी इस उडान को अपने पास ही रखो ...
   किस वेद अथवा सूत्र में तुमने पढ़ा है क़ी आर्य किसी दुसरे देश से भारत में आये ?..इस बात का प्रमाण तुमें कहाँ मिला है क़ी उन लोगों ने जंगली जातियों को मार काट कर यहाँ निवास किया ? 
 --स्वामी विवेकानन्द    (प्राच्य और पाश्चयात्य) 
-- संकलन --विवेक सुरंगे 

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